गहलोत के हाथों दो बार धोखा खा चुकी मायावती अब कांग्रेस से दो-दो हाथ करने के मूड में हैं
बेंगलुरू। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही है। गहलोत की हालत सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने वाली दिख रही है, क्योंकि गहलोत के खिलाफ उनके सारे राजनीतिक दुश्मन एकतरफ हो गए दिखते हैं। इसमें नई एंट्री बसपा सुप्रीमो मायावती ने ली है। मायावती ने सीएम गहलोत को दगाबाज करार देते हुए कांग्रेस में BSP के 6 विधायकों के कथित विलय पर सवाल उठाए हैं, जिससे पहले से हलकान गहलोत खेमे में बेचैनी बढ़ गई है।
जानिए,
कोरोना
इलाज
के
ऐसे
10
दावों
की
हकीकत,
जो
अब
तक
खोखेले
साबित
हुए
हैं?
मुख्यमंत्री गहलोत ने दल-बदल कानून का खुल्लम- खुला उल्लंघन किया
मायावती के मुताबिक राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत ने पहले दल-बदल कानून का खुला उल्लंघन किया और बसपा के साथ लगातार दूसरी बार दगाबाजी करके पार्टी के विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराया। उन्होंने आगे कहा कि जिस प्रकार राजस्थान में लगातार जारी राजनीतिक गतिरोध, आपसी उठापटक व सरकारी अस्थिरता के हालात हैं, वहां के राज्यपाल को प्रभावी संज्ञान लेकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करनी चाहिए, ताकि राज्य में लोकतंत्र की और ज्यादा दुर्दशा न हो।
2008 राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद 6 बीएसपी MLA का विलय किया
वर्ष 2008 और 2018 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद बहुमत के लिए संघर्ष कर रही थी कांग्रेस ने बीएसपी के 6 विधायकों का कांग्रेस में विलय कर लिया था, जिसकी टीस मायावती के तीखे बयानों से समझा जा सकता है। हालांकि 2018 विधानसभा चुनाव में बीएसपी चीफ मायावती ने खुद कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया था, लेकिन कांग्रेस ने मायावती को बड़ा झटका देते हुए 6 बीएसपी का कांग्रेस में विलय करवा लिया ताकि सियासी दवाबों से बचा जा सके।
2018 में पार्टी के 6 विधायकों के विलय लेकर आगबबूला हुईं थीं मायावती
मायावती ने 2018 में पार्टी के 6 विधायकों के विलय लेकर आगबबूला हुईं थीं और उस समय कांग्रेस को धोखेबाज करार दिया था, लेकिन जैसी अशोक गहलोत की सरकार बागी सचिन पायलट समेत 19 कांग्रेसी विधायकों की बगावत से मझधार में फंसी, तो मायावती का पुराना घाव फिर हरा हो गया और उन्होंने गहलोत के खिलाफ कानूनी लड़ाई का मन बना चुकी है। मायावती ने व्हिप जारी करते हुए सभी विधायकों को कांग्रेस के खिलाफ वोट करने को कहा है।
बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने विलय पर उठाए संवैधानिक सवाल
बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने कांग्रेस के दांव-पेंच पर संवैधानिक सवाल उठाते हुए कहा है कि उनकी पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी है और संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा चार के तहत पूरे देश में हर जगह समूची पार्टी का विलय हुए बिना राज्य स्तर पर विलय नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस में कथित विलय से शामिल हुए पार्टी छह विधायक व्हिप के खिलाफ जाकर मतदान करते हैं, तो वो विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य हो जाएंगे।
मायावती की एंट्री से सीएम अशोक गहलोत खेमा बेचैन हो गया है
निः संदेह बसपा प्रमुख मायावती की एंट्री से सीएम अशोक गहलोत खेमा बेचैन हो गया है। पार्टी पहले ही सचिन पायलट और उनके साथ 18 विधायकों की बगावत का सामना कर रही है और सरकार पर अविश्वास प्रस्ताव का ग्रहण लगा हुआ। हालांकि बावजूद इसके सीएम गहलोत 102 विधायकों के साथ होने का दम भर रहे हैं, लेकिन राज्यपाल को सौंपी चिट्ठी में शक्ति परीक्षण का उल्लेख नहीं होने से तीसरी बार विधानसभा सत्र बुलाने की उनकी मांग रद्द हो गई है।
CM गहलोत को डर है कि सदन में अगर शक्ति परीक्षण की नौबत आती है तो
दरअसल, सीएम अशोक गहलोत को डर है कि सदन में अगर शक्ति परीक्षण की नौबत आती है तो मामला उनके खिलाफ जा सकता है। यही कारण है कि वो विधानसभा सत्र बुलाना तो चाहते हैं, लेकिन शक्ति परीक्षण से अपनी सरकार का बहुमत साबित करने के बजाय सत्र के दौरान ही किसी पेडिंग बिल के जरिए विश्वास मत हासिल करने की व्यूह तैयार किया है।
3 बार विधानसभा सत्र बुलाने का सीएम गहलोत का प्रस्ताव खारिज हुआ
तीन बार विधानसभा सत्र बुलाने की सीएम गहलोत के प्रस्तावों को राज्यपाल कलराज मिश्र ने यह कहकर लौटा दिया है कि विधानसभा सत्र बुलाने की वजहों को स्पष्टीकरण राजस्थान सरकार द्वारा नहीं किया गया है। अब तक राज्यपाल के पास कुल तीन प्रस्तावों में गहलोत सरकार ने विधानसभा सत्र बुलाने के लिए कोरोना महामारी और राजनीतिक संकट का उल्लेख किया है, लेकिन किसी भी प्रस्ताव में शक्ति परीक्षण के उल्लेख से बचती आई है।
सीएम गहलोत सदन में शक्ति परीक्षण से बचना चाहते है?
सीएम गहलोत सदन में शक्ति परीक्षण से बचना चाहते है। यह उनके तीनों प्रस्तावों से स्पष्ट हो चुका है। गहलोत विधानसभा सत्र बुलाकर किसी बिल पर वोटिंग के जरिए विश्वास मत हासिल करने की जुगत में हैं, क्योंकि सत्र आहूत होते ही कांग्रेस सरकार बिल पास कराने के लिए व्हिप जारी कर सकता है। ऐसी स्थिति में सचिन पायलट और बागी विधायकों के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी।
बागी विधायकों को मजबूरन सरकार के पक्ष में वोट करना पड़ेगा वरना
कांग्रेस पार्टी द्वारा सदन में व्हिप जारी करने से सभी बागी विधायकों को मजबूरन सरकार के पक्ष में वोट करना पड़ेगा वरना उन्हें दल बदल कानून का सामना करना पड़ेगा और उनकी सदन की सदस्यता भी जा सकती है, जिसके लिए कांग्रेस पार्टी सुप्रीम कोर्ट भी चुकी है, लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं आया है। अब जब सियासी पर्दे पर बीएसपी प्रमुख मायावती का आगमन हुआ है तब से गहलोत सरकार के 102 विधायकों वाला दावा भी कमजोर पड़ने लगा है।
मायावती ने भी अपने उन 6 विधायकों के लिए व्हिप जारी कर दिया है
मायावती ने भी अपने उन 6 विधायकों के लिए व्हिप जारी कर दिया है जो कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। हालांकि उनके कांग्रेस में विलय की मंजूरी भी विधानसभा अध्यक्ष की ओर से दिया जा चुका है, लेकिन पार्टी ने विलय की संवैधानिकता पर सवाल उठाते हुए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने की चेतावनी दी है। मायावती कांग्रेस पार्टी द्वारा राज्स्थान में दो बार बीएसपी विधायकों के विलय कराने को मुद्दे को लेकर हमलावर हैं और किसी भी कीमत पर कांग्रेस को बख्शने के मूड में नहीं दिख रही हैं।
मायावती की धमकी और व्हिप जारी करने से गुम हुई कांग्रेस की सिट्टी-पिट्टी
मायावती की धमकी और विधायकों के लिए व्हिप जारी करने बाद कांग्रेस की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई है। यही कारण है कि सीएम गहलोत और कांग्रेस की युवा विंग एनएसयूआई सरकार बचाने के लिए बागी विधायकों को मनाने के लिए सड़क पर उतर चुके हैं। एनएसयूआई द्वारा बागी विधायकों को मनाने के लिए फूलों को गुलदस्ता भेंट किया गया है।
राज्यपाल को भेजे तीसरे प्रस्ताव में 102 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी सौंपी है
सीएम गहलोत ने राज्यपाल को भेजे तीसरे प्रस्ताव में कुल 102 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी सौंपी है। इसमें बसपा से कांग्रेस में विलय हुए 6 विधायक भी शामिल हैं। 200 सदस्यों वाली राजस्थान की विधानसभा में बहुमत के लिए 101 विधायक चाहिए और अगर 6 पूर्व बीएसपी विधायक भी सीएम गहलोत के पाले से निकल गए तो गहलोत की हालत खराब हो सकती है, क्योंकि पूर्व बीएसपी विधायकों के पाले से निकलने से कांग्रेस के पास सिर्फ 96 विधायक रहे जाएंगे, जो बहुमत से 5 कदम दूर होगी।
मायावती की एंट्री से उठे धुएं को करीने से बैठकर देख रही है बीजेपी
राजस्थान में जारी उठापटक और मायावती की एंट्री से उठे धुएं को करीने से बैठकर देख रही बीजेपी भी अब मुखर होने लगी है। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सतीश पूनिया ने जारी एक बयान में दावा किया है कि विशेष विधान सभा सत्र हो तब भी सरकार बहुमत साबित नहीं कर सकती। उन्होंने मुख्मंत्री अशोक गहलोत पर निशाना साधते हुए कहा कि भले मुख्यमंत्री राज्यपाल से कितनी भी बात कर ले या कितना भी मिल ले सरकार के लिए बहुमत साबित करना अब बहुत मुश्किल है। गहलोत सरकार मायावती के साथ गलत किया है और वो राज्यपाल से प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की मांग कर सकती है।
बसपा प्रमुख प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर चुकी हैं
हालांकि खुद बसपा प्रमुख ने भी राजस्थान में चल रही सियासी उठापटक के बीच राज्यपाल कलराज मिश्र से प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने की बात कह चुकी हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि गहलोत ने पहले बसपा के विधायकों को ‘दगाबाजी करके' कांग्रेस में शामिल कराया और अब फोन टेपिंग कराकर असंवैधानिक काम किया है। उन्होंने कहा कि ऐसी सरकार को जाना ही चाहिए।
2008 में राजस्थान में किंग मेकर बनकर उभरी थी बसपा
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2008 में सर्वाधिक 6 सीट जीतने में कामयाब रही और पहली और दूसरी पार्टी के सीटों के संख्या का समीकरण ऐसा था कि बिना बीएसपी के सहयोग के सर्वाधिक 96 सीट जीतने वाली कांग्रेस भी सरकार बनाने में अक्षम थी। बीएसपी किंग मेकर बनकर उभरी थी, लेकिन सीएम गहलोत ने बीएसपी के 6 विधायकों का कांग्रेस में विलय करवा कर बीएसपी चीफ को राजस्थान की राजनीति से साफ कर दिया था।
एक दशक बाद फिर राजस्थान में कांग्रेस ने दोहराया इतिहास
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2013 में बीएसपी को झटका लगा और पार्टी महज 3 सीट पर सिमट कर रह गई थी, लेकिन 2018 विधानसभा चुनाव में बीएसपी एक बार 6 सीट जीतने में कामयाब रही, लेकिन 99 सीट जीतने वाली कांग्रेस को बीएसपी की जरूरत तो थी, लेकिन गहलोत ने निर्दलियों के साथ मिलकर सत्ता तक पहुंच गई।
जबकि मायावती ने कांग्रेस की गहलोत सरकार को समर्थन की घोषणा की थी
मायावती अच्छी तरह से जानती थी कि 2018 में भी उनके विधायकों को तोड़ने की कोशिश हो सकती है, इसलिए उन्होंने विधायकों को टूटने के डर और राजस्थान की राजनीति में बसपा के प्रतिनिधुत्व के लिए कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया, लेकिन एक बार मायावती सीएम गहलोत के हाथों छली गईं। बहुमत को और मजबूत करने के लिए गहलोत ने एक बार फिर 2008 को दोहराया और 16 सितंबर, 2019 को बीएसपी के 6 विधायकों का कांग्रेस में विलय करवा लिया।
विधायकों के कांग्रेस में विलय को असंवैधानिक बताने के पीछे बसपा की दलील
बसपा का कहना है कि बसपा एक राष्ट्रीय पार्टी है और दसवीं अनुसूची के पैरा 2 (1)(B) के तहत किसी राज्य में पूरी पार्टी का विलय असंवैधानिक है। राजस्थान में सभी 6 विधायक बसपा के टिकट पर चुनाव जीत कर आए हैं, जो पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती द्वारा प्रत्याशी बनाए गए थे। लिहाजा सभी 6 विधायक पार्टी के निर्देश मानने के लिए बाध्य हैं। उसका कहना है कि वह राजस्थान उच्च न्यायालय में अयोग्यता की लंबित याचिका में हस्तक्षेप करेगी या अलग से रिट याचिका दायर करेगी।
बसपा विधायकों के विलय को सही बताने के पीछे कांग्रेस की दलील
कांग्रेस पार्टी का कहना है कि बसपा के राष्ट्रीय पार्टी होने का मतलब यह नहीं है कि राजस्थान के विधानमंडल में उसके दूसरे राज्यों के विधायकों को गिना जाता है और न ही संगठन को माना जाता है। राज्य के विधानसभा की संख्या को ही माना जाता है। कांग्रेस के मुताबिक राज्य में किसी भी पार्टी के कुल विधायकों में से अगर एक तिहाई विधायक अगर पार्टी छोड़कर जाते हैं तो वह दलबदल कानून के तहत नहीं आते हैं। ऐसे में बसपा का राजस्थान में व्हिप जारी करने का कोई मतलब नहीं है।
बसपा विधायकों के लेकर हाईकोर्ट स्पीकर के फैसले को पलट दे तो?
अगर बसपा विधायकों के लेकर हाईकोर्ट अगर स्पीकर के फैसले को पलट देता है और बसपा विलय की बात नहीं मानता है, तो गहलोत सरकार के लिए बड़ा सियासी संकट खड़ा हो सकता है। सचिन पायलट सहित 19 विधायकों के बगावत करने से कांग्रेस का समीकरण पहले से बिगड़ा हुआ नजर आ रहा है। और अब बसपा के 6 और विधायक गहलोत के पाले से निकलने से उनकी गणित बिगड़ सकती है और सरकार अल्ममत में चली जाएगी।
सीएम गहलोत के पास बहुमत से महज एक विधायक ही ज्यादा है
बसपा चीफ मायावती के फरमान ने निश्चित रूप से कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है। 200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में बहुमत के लिए 101 विधायक होना जरूरी है और कांग्रेस के पास 19 बागी विधायकों के बाद अब 102 विधायक ही हैं, जो बहुमत से एक विधायक ही ज्यादा है। ऐसे में गहलोत सरकार पायलट गुट के विधायकों पर डोर डालने में लग गई है, लेकिन अगर मायावती झटका देती हैं, तो गहलोत सरकार का उबरना मुश्किल होगा।
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