गठबंधन की गाड़ी में ब्रेक के बाद मायावती का हाथी फिर पुरानी राह पर
नई दिल्ली। गठबंधन की गाड़ी में ब्रेक तो मायावती ने 23 मई को चुनाव नतीजे आने के बाद ही लगा दिया था लेकिन अपने पुराने परिवारवादी और जातीवादी ट्रैक पर आने में मायावती को पूरे एक महीने लग गए। मायावती ने फिर अपने मन का रेडिओ चालू कर दिया है जिस पर वही पुराने गीत बज रहें हैं जिसको सुनाने की जनता आदी है और जो गठबंधन के पहले बजा करते थे। मायावती हार कर भी हार नहीं मानतीं। जीत का मुकुट अपने सर और पराजय का ठीकरा दूसरों पर फोड़ने की आदी हैं मायावती। इस बार भी वही कर रहीं हैं।
गठबंधन के खेल में बार बार फेल
कहा जाता है मायावती फैसले फटाफट लेती हैं लेकिन फैसले के काफी देर बाद उनको समझ आता है की फैसला गलत ले लिया। जैसे अब उनको समझ आया है कि अखिलेश शासन में 2012 से 17 के दौरान उनके खिलाफ साजिश रची गई। मायावती गठबंधन में तीसरी बार फेल हुई हैं। अब उनके पास राजनीति के पथ पर अकेले ही बढ़ने का विकल्प है। मायावती ने पुराने अंदाज में फिर मुलायम और अखिलेश पर ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए हैं। बसपा के संस्थापक कांशीराम परिवारवाद के सख्त खिलाफ थे। लेकिन मायावती ने डंके की चोट पर अपने भाई और भतीजे को "उत्तराधिकारी" के रूप में लांच कर दिया है। वह देखना चाहती हैं कि इस नई रणनीति का उत्तर प्रदेश में विधान सभा उपचुनाव में क्या असर पड़ता है। दूसरी तरफ मुलायम सिंह यादव बीमार हैं और अखिलेश यादव फिलहाल खामोश।
इस बार धीरे धीरे खोली गठबंधन की गांठ
लोकसभा में करारी हार के बाद बसपा अगर सपा का साथ न छोड़ती तो जनता को आश्चर्य होता। बसपा सुप्रीमो मायावती लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद अपने असली एजेंडे पर आ गई हैं। मायावती को अब भी लग रहा है की जो दस लोकसभा सीट बसपा को मिली है वो उनकी वजह से और प्रमोशन में आरक्षण का विरोध करने की वजह से दलितों और पिछड़ों ने सपा को वोट नहीं दिया। दरअसल मायावती दलित समाज के हित के लिए नहीं अपने फायदे के लिए राजनीति करती हैं। लखनऊ में बसपा प्रदेश मुख्यालय पर पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में मायावती ने कहा कि अब तक किसी भी गठबंधन से बसपा को कोई फायदा नहीं हुआ। एक झटके में सम्बन्ध तोड़ने के बजाय मायावती ने लोकसभा चुनाव के बाद बड़ी चतुराई से धीरे धीरे गठबंधन की गाँठ खोली। ऐसा करने में उनको एक महीना लगा। मायावती ने नतीजों के तुरंत बाद गठबंधन पर निराशा प्रगट की। उनको लग रहा था कि वो गठबंधन तोड़ने की बात कहेंगी तो अखिलेश फोन कर उनकी मनुहार करेंगे और वह फिर अपनी शर्तों पर उपचुनाव और विधान सभा चुनाव की सीटें तय करेंगी। याद कीजिये मायावती ने 3 जून को संकेत दिया था कि उपचुनाव में अलग-अलग लड़ने के बावजूद सपा-बसपा गठबंधन के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं। उपचुनाव के नतीजों की समीक्षा के बाद वह इस पर अंतिम फैसला लेंगी। लेकिन मायावती के उपचुनाव अकेले लड़ने की बात पर अखिलेश का रेस्पोंस ठंडा रहा और उन्होंने भी अकेले चुनाव लड़ने की बात कही। इसके बाद मायावती अपने पुराने फॉर्म में लौट आईं। 23 जून को मायावती ने हार के लिए पूरी तरह सपा मुखिया को दोषी ठहराया। मायावती ने आरोप लगाया कि ताज कॉरिडोर मामले में उनके खिलाफ भाजपा की साजिश में सपा के तत्कालीन प्रमुख मुलायम सिंह यादव भी शामिल थे। यही नहीं 2006 में जब बसपा संस्थापक कांशीराम का निधन हुआ तो केंद्र की कांग्रेस सरकार की तरह यूपी की मुलायम सिंह यादव सरकार ने न तो एक भी दिन का शोक घोषित किया और न ही श्रद्धांजलि देने पहुंचे। इसके साथ ही गठबंधन के दरवाजे पूरी तरह बंद हो गए।
फिर याद आ गई पुरानी दुश्मनी
आपको याद होगा लोकसभा चुनाव से पहले जब सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा से गठबंधन की बात कही तो मुलायम सिंह यादव इसके पक्ष में नहीं थे। मैनपुरी में साफ़ दिख रहा था कि मुलायम और मायावती ने चुनावी मंच जरूर साझा किया किया है लेकिन उनके मन अभी भी नहीं मिले हैं। दोनों ने मंच से एक-दूसरे के मान-सम्मान की बाते की। मुलायम मंच पर बहुत सहज नहीं थे और मायावती ने भी गेस्ट हाउस काण्ड का जिक्र कर जता दिया था की वह पुरानी बातों को नहीं भूली हैं।
परिवार पर ही भरोसा
परिवारवाद पर दूसरे दलों को घेरने वाली बसपा प्रमुख मायावती भी अब उसी पटरी पर चल पड़ी हैं। उन्होंने भाई आनंद कुमार को पार्टी का दोबारा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोआर्डिनेटर बना दिया है। मायावती ने दूसरी बार अपने भाई को बीएसपी में नंबर दो का दर्जा दिया है। इससे पहले मायावती ने वर्ष 2017 में लम्बे समय से पार्टी उपाध्यक्ष रहे राजाराम को बिना कारण बताये हटाकर आनंद को उपाध्यक्ष बनाया था। तब मायावती ने लोगों को यह संदेश देने की कोशिश की थी कि उनके बाद पार्टी की कमान आनंद संभालेंगे। लेकिन जब इसका जनता में कोई रिस्पांस नहीं आया तो आनंद को हटाकर मायावती ने जय प्रकाश सिंह को उपाध्यक्ष बना दिया, फिर उसको भी हटकर रामजी गौतम को उपाध्यक्ष बना दिया। हालांकि मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को पिछले दरवाज़े से बसपा की कमान देने की शुरुआत वर्ष 2007 में ही कर दी थी। सूत्रों के अनुसार मायावती ने 2007 में बहुजन प्रेरणा ट्रस्ट बनाकर बीएसपी की दिल्ली, नोएडा, लखनऊ जैसे शहरों की प्रॉपर्टी को धीरे-धीरे इस ट्रस्ट के नाम करना शुरू किया था। वो ख़ुद इस ट्रस्ट की अध्यक्ष हैं और उनके भाई उसके सदस्य। इस तरह बहुजन प्रेरणा ट्रस्ट के बहाने आनंद कुमार 2009 से अप्रत्यक्ष रूप से बसपा को भी मैनेज कर रहे हैं। परिवार के लोगों को ही पार्टी में बढ़ावा देने से बसपा कैडर के तमाम पुराने नेता उपेक्षित महसूस कर रहें हैं लेकिन मायावती को इसकी परवाह नहीं वह तो राजनीति में, आकाश के लिए खुला आसमान तैयार करने में जुट गईं हैं।
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