Dalit Politics: दलितों की देवी मायावती को नये दलित मसीहाओं से लगा डर
बंगलुरू। दलितों के उत्थान के लिए खुद को कभी स्वयंभू नेता घोषित कर चुकीं बसपा सुप्रीमो मायावती तेजी से उभर रहे दलित नेता चंद्रशेखर उर्फ रावण की तरक्की अखरने लगी हैं। दलित मूवमेंट से निकलकर शीर्ष तक पहुंची मायावती का राजनीतिक कद पिछले दशक से अवसान पर है। लोकसभा चुनाव 2014 में बसपा का जीरो पर सिमट जाना इसकी बानगी है।
कभी दलितों की सबसे बड़ी नेता के रूप शुमार मायावती को अब भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर से कड़ी टक्कर मिल रही है, जिससे मायावती हलकान है। यही वजह है कि राजधानी दिल्ली के तुगलकाबाद में रविदास मंदिर को ढ़हाया गया, फिर भी मायावती खामोश हैं, क्योंकि तेजी से दलित नेता के रूप मे उभर रहे चंद्रशेखर वहां पहले से मौजूद हैं।
मायावती चंद्रेशखर को मिल रहे दलित समर्थन से आहत होकर समय-समय पर विरोध दर्ज करवाती रही हैं और इस बीच जब चंद्रशेखर ने उन्हें बुआ कहने की कोशिश की तो मायावती ने तुंरत खारिज करते हुए कहा कि उनका चंद्रशेखर से कोई वास्ता नहीं है।
बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर यदाकदा यह आरोप लगता रहा है कि वो दलितों की नेता के रूप में भले जानी जाती हों, लेकिन उन्होंने कभी दलितों के उत्थान के लिए समुचित प्रयास नहीं किया। उन पर यह भी आरोप लगता रहा है कि मायावती को सिर्फ चुनाव के वक्त ही दलितों की याद आती है और चुनाव खत्म होते ही वो दलितों से दूर हो जाती हैं।
यही कारण है कि कभी दलित मूवमेंट से अर्श पर पहुंची मायावती का दलितों पर अपनी कमजोर हो रही पकड़ से गुस्सा फूट रहा है, क्योंकि दलित भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर की ओर आशा भरी नजरों से देखना लगा है। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा गठबंधन एक बार फिर वजूद में आ गया।
दूसरी तरफ चंद्रशेखर लगातार दलित आंदोलन के जरिए एक दलित नेता के रूप में उभर रहे हैं। राजधानी दिल्ली के तुगलकाबाद इलाके में रविदास मंदिर ढ़हाए जाने के बाद चंद्रशेखर तुरंत वहां पहुंच गए और मंदिर गिराए जाने के विरोध में जमकर प्रदर्शन किया। इससे पहले भी चंद्रशेखर कई मामलों में मुखरता से और जमीन पर विरोध करके सुर्खियों में बने रहे है, जो मायावती को बिल्कुल नहीं हजम हो रहा है।
दरअसल, चंद्रशेखर के रूप में दलितों को यंग लीडर मिल गया है, जो उनके हकों के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है और चंद्रशेखर की यही जुझारू और लड़ाकू छवि दलित चिंतकों और दलित युवाओं को अधिक रोमांचित कर रही है जबकि मायावती की छवि इससे बिल्कुल इतर है।
गौरतलब है चंद्रशेखर उर्फ रावण की युवाओं में स्वीकार्यता भी तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि मायावती की तुलना में चंद्रशेखर के रूप में उन्हें एक जोशीला नेता जो मिल गया है। चंद्रशेखर की ओर दलित युवाओं की बढ़ती रूझान के कारण ही मायावती ने बीएसपी ने गठन के बाद अब तक पार्टी के स्टूडेंट विंग पर काम नहीं किया और आज भी बीएसपी में नेता दलित मूवमेंट से होते हुए सीधे पार्टी में आते हैं।
वहीं, चंद्रशेखर ने भीम आर्मी की स्टूडेंट विंग (बीएएसएफ) लॉन्च भी कर दिया है और दलितों की यह छात्र इकाई दलित युवाओं और छात्रों को बीएसपी से दूर ले जा रहा है, क्योंकि भीम आर्मी विंग से जुड़कर निकले युवा ग्राउंड पॉलिटिक्स में अच्छी पकड़ बना रहे हैंं।
एक सर्वे की मानें तो लोकसभा चुनाव 2019 के रुज्ञानों के आधार पर अगर यूपी विधानसभा चुनाव आज कराए जाएं तो बसपा सुप्रीमो मायावती की पार्टी को महज 4 विधानसभा सीटों से संतोष करना पड़ सकता है, क्योंकि मायावती से जुड़े रहे दलित वोट बैंक धीरे-धीरे बसपा से छिटक रहे हैं।
दूसरे मुस्लिम वोट बैंक भी कांग्रेस और सपा की ओर छिटककर तितर-बितर हो चुका है, जिसका फायदा लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को मिल चुका है, क्योंकि सपा-बसपा गठबंधन के दौरान दलितों ने अपना वोट सपा, बसपा और कांग्रेस को देने के बजाय बीजेपी को दिया। हालांकि मायावती ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि बीजेपी ने दलितों को वोट बांटने के लिए भीम आर्मी बनाई थी।
चंद्रशेखर उर्फ रावण के दलित मसीहा बनने से चिंतित मायावती ने तुगलकाबाद क्षेत्र में रविदास मंदिर ढहाए जाने के विरोध में भीम आर्मी द्वारा इलाके में की गई तोड़फोड़ को अनुचित करार दिया है। उन्होंने कहा कि मंदिर ढ़हाए जाने के विरोध में भीम आर्मी द्वारा की गई तोड़फोड़ की घटनाओं को अनुचित करार दिया।
बकौल मायावती, बीएसपी संविधान और कानून का हमेशा सम्मान करती है और वह कानून के दायरे में रहकर ही संघर्ष करती है। हालांकि उन्होंने घटना को दुखद बताते हुए दलित युवाओं से अपील की है कि वो घटनास्थल पर जबरन जाने की कोशिश ना करें।
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