बिहार में बड़ी राजनीतिक उथल पुथल की जमीन तैयार, टूट जाएगा महागठबंधन, बिखर जाएगा एनडीए!
पटना। बिहार में बड़े राजनीतिक उथलपुथल के लिए जमीन तैयार हो चुकी है। बस तारीख का इंतजार है। एनडीए हो या महागठबंधन, दोनों को आग के दरिया से गुजरना होगा। मुमकिन है इसकी तपिश, कोई न झेल पाए। यूपी की तरह बिहार में भी महागठबंधन टूट सकता है। राजद और कांग्रेस को जिंदा रहने की चिंता खाये जा रही है। दूसरी तरफ एनडीए में जदयू और भाजपा की तकरार भी अंजाम तक पहुंच सकती है। अगर सचमुच नीतीश भाजपा से पिंड छुड़ाना चाहते हैं तो तस्वीर पर जमी धूल भी साफ हो जाएगी। बिहार विधानसभा की पांच सीटों पर होने वाला उपचुनाव हितों के टकराव का सबसे बड़ा कारण बनेगा। खुद को बड़ा साबित करने की होड़ में एनडीए और महागठबंधन के दल लड़ने-भिड़ने से बाज नहीं आएंगे। 2020 के सियासी गदर से पहले ये सबसे बड़ी जोर आजमाइश होगी।
क्या है राजनीतिक पृष्ठभूमि?
बिहार में पांच विधायक सांसद चुने गये हैं। दरौंदा की जदयू विधायक कविता सिंह सीवान से सांसद चुनी गयी हैं। सिमरी बख्तियारपुर के जदयू विधायक दिनेशचंद्र यादव मधेपुरा से सांसद बने हैं। भागलपुर से सांसद बने अजय मंडल नाथनगर के विधायक थे। डॉ. जावेद किशनगंज से कांग्रेस के सांसद निर्वाचित हुए हैं। 2015 में वे किशनगंज विधानसभा सीट से विधायक बने थे। बेलहर के जदयू विधायक बांका से सांसद चुने गये हैं। नवनिर्वाचित सांसदों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। विधानसभा की इन पांच रिक्त सीटों पर उपचुनाव होना है। इसकी तारीख अभी तय नहीं है लेकिन यह निकट भविष्य में ही होगा। इस चुनाव को लेकर सीटों का बंटवारा कैसे होगा, यह एक जटिल प्रश्न है। एनडीए और महागठबंधन, दोनों के लिए यह सवाल तबाही का कारण बन सकता है।
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बिहार में भी बिखर जाएगा महागठबंधन!
मतलबपरस्ती के मेल को हार ने बेपर्दा कर दिया है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में हार के लिए राजद को जिम्मेवार ठहराया है। दूसरी तरफ राजद भी अमेठी में राहुल गांधी की हार के बाद कांग्रेस को चुका हुआ चौहान मान रही है। दोनों दल एक दूसरे के खिलाफ कड़वे बयान दे चुके हैं। 21 साल में पहली बार ऐसा होगा कि लोकसभा में राजद का कोई सदस्य नहीं होगा। जब कि कांग्रेस का कम से कम एक लोकसभा सदस्य तो बिहार का प्रतिनिधित्व करेगा। इस लिए सबको अपनी-अपनी पड़ी है। पहले अपना देखो फिर दूसरे की सोचो। खुद को जिंदा रखने की मजबूरी एक दूसरे की आड़े आ रही है। लोकसभा चुनाव ने मजबूत राजद को कांग्रेस से भी कमतर बना दिया है। इसकी वजह से बिहार में कांग्रेस अब राजद को बहुत भाव नहीं दे रही।
फ्रंटफुट पर खेल रही है कांग्रेस
बिहार विधानसभा के होने वाले उपचुनाव को लेकर कांग्रेस ने अभी से फ्रंटफुट पर खेलना शुरू कर दिया है। अभी चुनाव की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन कांग्रेस ने पांच में से दो सीटों पर दावेदारी पेश कर दी है। इसमें से एक किशनगंज उसकी जीती हुई सीट है। कांग्रेस बेलहर या नाथनगर में से कोई एक सीट अपने लिए चाह रही है। दूसरी तरफ राजद चार सीटों को अपनी परम्परागत सीट मान रहा है। वह शायद ही कोई समझौता करे। ऐसे में कांग्रेस एकला चलो का नारा दे सकती है। वैसे भी विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ कर जनता के मूड को परखना चाहती है। महागठबंधन में रालोसपा, हम और वीआइपी को अपनी हैसियत का अंदाजा हो गया है। लेकिन राजद और कांग्रेस उपचुनाव में अलग अलग राह अख्तियार कर सकते हैं।
एनडीए में भी बिखराव!
विधानसभा की रिक्त हुई पांच में से चार सीटें जदयू की हैं। लेकिन जदयू ने ये सीटें तब जीती थीं जब राजद के साथ गठबंधन में था। इन पांच में तीन सीटों किशनगंज, बेलहर और दरौंदा में भाजपा दूसरे नम्बर पर थी। दो सीटों पर लोजपा दूसरे नम्बर पर थी। अब भाजपा, गठबंधन के तहत जदयू पर कुर्बानी के लिए दबाव बना रही है। वह 2019 के लोकसभा चुनाव का हवाला दे रही है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जदयू को अपनी पांच जीती हुईं सीटें दे दी थीं। अब विधानसभा उपचुनाव में भाजपा भी जदयू से ऐसा करने के लिए कह रही है। लोजपा भी अपनी हिस्सेदारी मांग सकती है। बदली हुई परिस्थितियों में नीतीश किस हद तक भाजपा की बात मानेंगे, कहना मुश्किल है। दूरगामी लाभ के लिए वे भाजपा से अलग भी हो सकते हैं। इस उपचुनाव में नीतीश का फैसला 2020 के लिए स्पष्ट संकेत होगा।
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