राहुल पर भारी पड़ गया चौकीदार चोर का नारा, चुनावी रणनीति बुरी तरह फेल होने केे चलते पद से हटे
नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी को पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए तीन महीन से भी अधिक का समय हो गया है। लेकिन पार्टी में आज भी इसे लेकर बयानबाजी जारी है। पार्टी को लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी विफलता के बाद राहुल ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
जिसके बाद कांग्रेस के कई नेता राहुल को मनाने के लिए उनके आवास तक भी पहुंचे थे। लेकिन राहुल ने किसी की भी बात मानने से इनकार कर दिया था। हालांकि इस्तीफा देने के पीछे की वजह अब धीरे-धीरे सामने आती जा रही है। खुद पार्टी के लोगों के बयानों से ही इसपर से परदा हट रहा है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की इसपर प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने राहुल के इस्तीफा देने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। खुर्शीद ने कहा है कि राहुल के ऐसा करने से पार्टी लोकसभा चुनाव में मिली हार के कारणों का विश्लेषण नहीं कर पाई। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पार्टी के कुछ लोग मानते हैं कि राहुल ऐसा कर अपनी खराब चुनावी रणनीतियों से सबका ध्यान हटाना चाहते थे।
राहुल और उनकी टीम
राहुल ने जैसे ही अध्यक्ष पद छोड़ने की बात कही, वैसे ही इसे ब्रेकिंग न्यूज के तौर पर दिखाया गया था। साल 2014 के चुनावों में मिली हार के बाद इस बार सारी जिम्मेदारी राहुल और उनकी टीम को मिली थी। अभियान के दौरान, राहुल ने मोदी शासन के खिलाफ जो बड़ी रणनीति अपनाई थी, उसके बारे में नेतृत्व में मतभेद थे।
'चौकीदार चोर है'
पार्ट से जुड़े एक सूत्र के अनुसार, जहां पार्टी के कई नेता महसूस कर रहे थे कि मोदी शासन के तहत आर्थिक संकट के बाद नोटबंदी / जीएसटी, कृषि संकट, बेरोजगारी और सामाजिक संघर्ष को मुख्य मुद्दा बनाया जाना चाहिए था, वहीं उन्होंने केवल राफेल को की मुद्दा बनाया। जिसकी थीम बोफोर्स जैसी थी। राहुल का 'चौकीदार चोर है' नारा भी काम नहीं आया, क्योंकि इसे बालाकोट जैसे फैसले ने धुंधला कर दिया।
माना जा रहा है कि पार्टी के लोग भी चुनावों में राहुल बनाम मोदी की लड़ाई को लेकर सतर्क थे। ब्रांड राहुल के निर्माण में बहुत अधिक प्रयास का ही नतीजा था कि पार्टी बिहार, कर्नाटक, झारखंड और महाराष्ट्र में गठबंधन पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाई। केवल डीएमके के नेतृत्व वाला तमिलनाडु एकमात्र ऐसा राज्य था, जहां गठबंधन पर पार्टी को सफलता मिली।
राहुल की न्याय योजना
लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही कांग्रेस को राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में जीत मिली थी। लेकिन बावजूद इसके राहुल की न्याय योजना एनडीए के आगे टिक नहीं पाई। जिसमें पैसे सीधे मतदाता के खाते में ट्रांसफर करने की बात कही गई थी।
वहीं पार्टी के स्टार प्रचारक जैसे नवजोत सिंह सिद्धू और सैम पित्रोदा ने भी विपक्ष को पार्टी के खिलाफ विवाद खड़ा करने का अवसर दे दिया। राहुल का अचानक से मंदिरों के दर्शन करना लोगों को थोड़ा अजीब लगा। वहीं प्रियंका की एंट्री भी इन सबके कारण धूमिल सी पड़ गई।
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