मैरिज सर्टिफिकेट नहीं, सात फेरे हैं विवाह की वैधता का प्रमाण: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि किसी विवाह को वैध मानने के लिए मैरिज सर्टिफिकेट होना काफी नहीं है। जरूरी ये है कि रीति-रिवाजों से शादी हुई हो और बाकायदा सात फेरे हुए हों। अदालत ने कहा कि विवाह को वैध मानने के लिए हिन्दू रीति-रिवाजों से उसका संपन्न होना जरूरी है। अगर कोई ये साबित नहीं कर पाता कि उसके सात फेरे हुए हैं तो फिर मैरिज सर्टिफिकेट को विवाह की वैधता साबित करने के लिए सबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता।
जिला अदालत के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचा पति
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ये आदेश कुरुक्षेत्र के एक याचिकाकर्ता की उस याचिका पर सुनाया, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में हाईकोर्ट से पंचकूला अदालत से जारी तलाक की डिक्री को खत्म करने का आग्रह किया था। पत्नी ने अदालत में अर्जी दे याचिकाकर्ता से तलाक मांगा था, जिस पर पंचकूला अदालत ने पत्नी के हक में फैसला दिया था। इसके खिलाफ याची ने हाईकोर्ट में याचिका दी थी।
दोनों पक्षों ने रखी अदालत में अपनी बात
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि वह प्रतिवादी पत्नी को चार साल से जानता था, दोनों ने 18 फरवरी को पंचकूला के शिव दुर्गा मंदिर में शादी कर ली। उसके पास इस शादी की फोटो भी हैं। याची ने शादी के सबूत के तौर पर मैरिज सर्टिफिकेट भी कोर्ट के समक्ष रखा और सात फेरे होने की भी बात कही। वहीं पत्नी की ओर से कहा गया कि याची उसे प्राचीन शिव मंदिर में लेकर गया और प्रभाव में लेकर मैरिज सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करा लिए। पत्नी ने कहा कि ना तो सात फेरे हुए और ना ही वो एक भी दिन याची के साथ रही।
खारिज की याचिका
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मैरिज सर्टिफिकेट को शादी के सुबूत के तौर पर नाकाफी बताया और जिला अदालत के तलाक के आदेशों को सही माना। हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि दोनों के बीच तलाक का आदेश सही है।
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