ट्रंप के एक आदेश से बिछड़ गए कई भारतीय परिवार, बच्चे मां से और पिता परिवार से हुए दूर
नई दिल्ली- अमेरिका ने तकरीबन पौने चार लाख अस्थायी वीजा धारकों और ग्रीन कार्ड आवेदकों की अगले साल तक अपने देश में एंट्री बंद कर दी है। सबसे बड़ी बात ये है कि इनमें से कई भारतीय ऐसे हैं, जो इस वक्त महीनों से अपने ही देश में लॉकडाउन की वजह से फंसे हुए हैं। स्थिति ये हो गई है कि अमेरिका में कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से पैदा हुए आर्थिक हालात के मद्देनजर डोनाल्ड ट्रंप ने ये कदम उठाया है, लेकिन इसके चलते कई भारतीय अपने परिवार से बिछड़ गए हैं। मां, बच्चों से दूर हो चुकी है तो पिता, अपने परिवार से अलग हो चुका है। उन्हें कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है कि आखिर कब फिर सब एक साथ हो पाएंगे।
ट्रंप के आदेश से भारत में फंस गए कई लोग
अमेरिका के सिलिकन वैली में एक टेक्नोलॉजी कंपनी में H-1B वीजा पर काम कर रहीं 35 साल की नताशा भट्ट को फरवरी के आखिर में अचानक ससुर जी की मौत की वजह से सैन फ्रांसिस्को से अमेरिका में जन्मे अपने 4 साल के बेटे को लेकर भारत आना पड़ा। लेकिन, उन्हें पता नहीं था कि भारत आकर वह अनिश्चितकाल के लिए यहीं फंस जाएंगी। जब वो अचानक भारत आईं तो उनका वीजा रिन्यूवल होना था। लेकिन, ससुर जी की मौत की बात सुनकर वह ये सोचकर भारत आ गईं कि वह भारत में उसको रिन्यू करवाकर कुछ ही हफ्तों में वापस यूएस लौट जाएंगी। लेकिन, कोलकाता में अमेरिकी कॉन्सुलेट में मार्च के लिए फिक्स उनका अप्वाइंटमेंट कोरोना की वजह से कैंसिल हो गया। वह अमेरिका जाने की तैयारी कर रही रही थीं कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने पिछले हफ्ते प्रशासनिक आदेश जारी कर H-1B वीजा समेत कई तरह के वीजा वालों को 2021 तक अमेरिका में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया।
ट्रंप के एक आदेश से बिछड़ गए कई भारतीय परिवार
भट्ट अमेरिका में 9 साल से सॉफ्टवेयर कंपनी में मैनेजर का काम करती हैं और उनके पति वहां बैंक में इंजीनियर हैं। उनके पति तो मार्च में ही अमेरिका लौट गए थे, लेकिन पिछले 3-4 महीनों से वहां अकेले पड़े हैं। भट्ट को भारत से ही अमेरिकी क्लाइंट को रात-रात भर जागकर सपोर्ट करना पड़ रहा है। बेटा कैलिफॉर्निया वाला ब्रेकफास्ट मांगता है, लेकिन उसे चपाती खिलाकर शांत करने की कोशिश करती हैं। भारत में भट्ट की तरह बहुतों के साथ कुछ ऐसा ही गुजर रहा है। अमेरिका के मेमफिस में इमीग्रेशन लॉयर ग्रेग सिसकाइंड कहते हैं, पति-पत्नियों से अलग हो चुके हैं, माता-पिता बच्चों से दूर हो चुके हैं। जो भारत में फंसे हैं उन्हें अमेरिका वाले घर की किराए की चिंता है, कार लोन का टेंशन सता रहा है। भारतीय सॉफ्टवेयर आर्किटेक्ट नरेंद्र सिंह 9 साल से डलास में काम कर रहे थे। वह फरवरी में बीवी-बच्चों के साथ कोलकाता आए। लौटना मुमकिन नहीं हुआ। अब वो यहीं से काम कर रहे हैं और उनकी सॉफ्टवेयर इंजीनियर पत्नी की नौकरी अप्रैल में ही छूट चुकी है। उनकी बेटी जो अमेरिकी नागरिक है उसका तो स्कूल छूट ही रहा है।
'बेटा मां कहना भूल चुका है'
सबसे हिला देने वाली कहानी तो 39 साल की मिली विधानी खट्टर की है। वह पिछले 12 वर्षों से अपने पति और अमेरिका में पैदा हुए दो बच्चों के साथ वहीं रहती हैं। वो अपने परिवार को छोड़कर दिल्ली आई थीं, क्योंकि उनकी मां अंतिम सांसें गिन रही थीं। उन्हें अपने बच्चों से मिले चार महीने गुजर चुके हैं। दो साल का बेटा 'ममा' कहना भूल चुका है। वो कहती हैं कि एक मां के लिए इससे बड़ी सजा क्या हो सकती है। यह अमानवीय है।
कंपनियां कर रही हैं आदेश का विरोध
ग्रेग सिसकाइंड जैसे लोगों का मानना है कि अमेरिकी सरकार ने अपने एंटी-इमीग्रेशन लक्ष्यों को साधने के लिए महामारी का बहाना बनाया है। क्योंकि, ट्रंप प्रशासन कई वर्षों से ऐसा करना चाहता था। Amazon.com Inc., Alphabet Inc. और Twitter Inc.जैसी कई टेक्नोलॉजी कंपनियों ने इन पाबंदियों का विरोध किया है। अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों ने भी अमेरिका से इस फैसले पर फिर से विचार करने की अपील की है। लेकिन, चुनाव के साल में ट्रंप अपना फैसला बदलने के लिए तैयार होंगे, कहना बहुत ही मुश्किल है।
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