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ममता का ब्राह्मण प्रेम और बीजेपी की मुस्लिम मोहब्बत

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का ब्राह्मण सम्मेलन और बीजेपी का मुस्लिम सम्मेलन के मायने क्या हैं?

By BBC News हिन्दी
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ममता का ब्राह्मण प्रेम और बीजेपी की मुस्लिम मोहब्बत

क्या आपने कभी किसी नदी की धारा को उल्टी बहते देखा है? इसका सीधा और सामान्य जवाब भले ना में हो, पश्चिम बंगाल में इन दिनों कम से कम दो प्रमुख राजनीतिक दलों की राजनीति की धारा तो इन दिनों उल्टी ही बह रही है.

राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम और कांग्रेस को पछाड़ कर नंबर दो की कुर्सी पर अपने पांव मजबूती से जमाने की जद्दोजहद करती भाजपा सियासी फ़ायदे के लिए फिलहाल अपनी पारंपरिक छवि के उलट राजनीति कर रही हैं.

इस कवायद के तहत तृणमूल कांग्रेस जहां अब यह कहते हुए पंडितों और पुरोहितों को लुभाने की कवायद में जुटी है कि हिंदुत्व पर किसी का कॉपीराइट नहीं हैं, वहीं हिंदुत्व की झंडाफरमबदार समझी जाने वाली भाजपा अब अल्पसंख्यकों को लुभाने की कवायद में जुट गई है.

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इस सप्ताह तृणमूल कांग्रेस की ओर से आयोजित ब्राह्मण और पुरोहित सम्मेलन और उसके तीन दिनों बाद भाजपा की ओर से आयोजित अल्पसंख्यक सम्मेलन बंगाल की राजनीति की इस उल्टी बहती धारा के पुख्ता सबूत हैं.

तृणमूल कांग्रेस ने अपने गठन के दो दशकों में पहली बार इस सप्ताह बीरभूम जिले में पुरोहितों और ब्राह्मणों के एक सम्मेलन का आयोजन किया. तमाम राजनीतिक पार्टियां उस पर अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के आरोप लगाती रही हैं.

साल 2011 में सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने अल्पसंख्यकों को साधने की दिशा में कई अहम योजनाएं शुरू कीं. इनमें इमामों को मासिक भत्ता, मदरसों के विकास और छात्रवृत्ति जैसी चीजें शामिल हैं. यह बात दीगर है कि ममता और उनकी पार्टी हमेशा इस आरोप का खंडन करती रही हैं.

लगातार बढ़ते आरोपों की बौछार के बीच ममता ने तो बीते दिनों कह भी दिया कि अगर अल्पसंख्यकों के हितों का ख्याल रखना तुष्टीकरण है तो वे आजीवन ऐसा करती रहेंगी. अब भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस पर नरम हिंदुत्व की राह पर चलने का आरोप लगाया है.

पार्टी का दावा है कि हाल में हुए तमाम उपचुनावों में भाजपा के लगातार बढ़ते वोटों को ध्यान में रखते हुए तृणमूल कांग्रेस ने हिंदू वोटरों को लुभाने के लिए यह कवायद शुरू की है.

दूसरी ओर, तीन तलाक़ मामले की याचिकाकर्ता इशरत जहां के पार्टी में शामिल होने के बाद भाजपा उसे अपना मुस्लिम चेहरा बनाने की रणनीति बना रही है. इसी कड़ी में उसने यहां पहली बार अल्पसंख्यक सम्मेलन और रैली का आयोजन किया.

लंबे अरसे से बंगाल में पांव जमाने के लिए जूझ रही पार्टी के नेताओं को शायद अब यह बात समझ में आ चुकी है कि राज्य के लगभग 30 फ़ीसदी मुस्लिम वोटरों के समर्थन के बिना उसके सपने पूरे नहीं हो सकते. भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष शकील अंसारी दावा करते हैं, 'अब भारी तादाद में मुसलमान पार्टी में शामिल हो रहे हैं.'

उनका आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस मुसलमानों को मदरसे तक सीमित रखना चाहती है ताकि वे सिर्फ़ नमाज पढ़ सकें. अंसारी कहते हैं, 'मदरसों में पढ़ कर मुसलमान युवक डॉक्टर और इंजीनियर नहीं सिर्फ़ इमाम बन सकते हैं.'

प्रदेश अल्पसंख्यक मोर्चा प्रमुख अली हुसैन कहते हैं, 'हम पंचायत चुनावों से पहले पार्टी के अल्पसंख्यक कार्यकर्ताओं में नया जोश भरना चाहते हैं.'

अब अपनी पारंपरिक छवि से उलट काम करने वाले यह दोनों राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोपों की बौछार और अपने बचाव में जुट गए हैं. भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस पर नरम हिंदुत्व की राह पर चलने का आरोप लगाया है.

प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का दावा है कि पार्टी के झंडे तले हिंदुओं के एकजुट होने की कवायद तेज होने की वजह से तृणमूल कांग्रेस समेत तमाम पार्टियां डर गई हैं.

घोष कहते हैं, 'तृणमूल कांग्रेस समझ गई है कि अब महज अल्पसंख्यक तुष्टीकरण से चुनाव नहीं जीते जा सकते. इसलिए वह हिंदुओं को लुभा कर अपनी छवि बदलने का प्रयास कर रही है.'

दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस के बीरभूम जिला अध्यक्ष अणुब्रत मंडल कहते हैं, 'सम्मेलन का मक़सद भाजपा की ओर से हिंदू धर्म की ग़लत व्याख्या की ओर ध्यान आकर्षित करना और हिंदू धर्म की सही व्याख्या करना था.'

उनकी दलील है कि हिंदुत्व पर भाजपा का कॉपीराइट नहीं है. मंडल कहते हैं, 'भाजपा अपने सियासी फ़ायदे के लिए हिंदुत्व और हिंदू धर्म की ग़लत व्याख्या कर रही है.' तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सौगत राय कहते हैं, 'तमाम तबके के लोगों को साथ लेकर चलना पार्टी की नीति रही है. तृणमूल कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है.'

दूसरी ओर कांग्रेस और सीपीएम ने धर्म से प्रेरित राजनीति को ख़तरनाक बताया है. विधानसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस विधायक अब्दुल मन्नान कहते हैं, 'धार्मिक मजबूरियों से प्रेरित राजनीति से आगे चल कर राज्य के सांप्रदायिक सद्भाव को ख़तरा पैदा हो सकता है.'

सीपीएम विधायक सुजन चक्रवर्ती कहते हैं, 'सियासी फ़ायदे के लिए तृणमूल कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे के पारंपरिक वोटरों को लुभाने की कवायद में जुट गई हैं. राजनीतिक में यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है.'

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस साल होने वाले पंचायत चुनावों को देखते हुए दोनों राजनीतिक दलों ने एक-दूसरे के हथियारों से ही उनके वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद शुरू कर दी है.

राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर देवेन कर्मकार कहते हैं, 'तृणमूल कांग्रेस ने जहां भाजपा के बढ़ते असर की काट के लिए नरम हिंदुत्व की राह पर चलने का फ़ैसला किया है, वहीं भाजपा ने अब तृणमूल के पांरपरिक अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति अपनाई है.'

वरिष्ठ पत्रकार तापस मुखर्जी कहते हैं, 'तृणमूल कांग्रेस शायद लोहे से लोहे को काटने की रणनीति पर बढ़ते हुए ब्राह्मण सम्मेलन जैसे आयोजन कर रही है. हालांकि उसे इसका कितना फ़ायदा होगा, यह अनुमान लगाना फिलहाल जल्दबाजी होगी.'

उधर, तृणमूल सांसद सौगत राय कहते हैं, 'बीरभूम जिले में ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन अपने किस्म की अकेली घटना है. इससे किसी नतीजे पर पहुंचना ठीक नहीं है.' दोनों दलों के दावे चाहे कुछ भी हों, हाल के दिनों में उनके अंदाज़ और मिज़ाज तो बदले-बदले ही नज़र आ रहे हैं.

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English summary
Mamtas Brahmin love and BJPs Muslim love
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