जानिए, TMC के लोगों ने BJP के बारे में ऐसा क्या बताया कि इतनी नाराज हैं ममता?
नई दिल्ली- अपने तीखे तेवरों के चलते चर्चित पश्चिम बंगाल (West Bengal) की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) इन दिनों और भी ज्यादा गुस्से में नजर आ रही हैं। जबसे, चुनाव शुरू हुए हैं, उनके निशाने पर बीजेपी और उसके नेता नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह (Amit Shah) हैं। चुनावी मौसम में सियासी बयानबाजियों का मतलब तो समझा जा सकता है। लेकिन, ममता (Mamta Banerjee)के तेवर थोड़े ज्यादा असामान्य नजर आ रहे हैं। वह कभी ईश्वर चंद्र विद्यासागर (Ishwar Chandra Vidyasagar) के नाम पर मोदी और शाह पर अपनी नाराजगी दिखाती हैं, तो कभी चुनाव आयोग (Election Commissin) को कोसना शुरू कर देती हैं। यह बात भी सच है कि उनके गुस्से के पीछे राज्य में बीजेपी (BJP) की बढ़त है, लेकिन कारण वो नहीं है, जो वो टीवी चैनलों पर आकर या चुनावी रैलियों में वो बताती हैं। वह इसलिए परेशान हैं कि क्योंकि उनकी पार्टी से उन्हें जो इंटरनल फीडबैक मिल रहे हैं, उससे उन्हें 8 साल में बंगाल (West Bengal)में बनाई अपनी राजनीतिक जमीन खिसकती हुई नजर आ रही है।
पार्टी के फीडबैक से हिलीं दीदी
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक टीएमसी (TMC) के इंटरनल फीडबैक में इसबार पश्चिम बंगाल में लेफ्ट (Left) का वोट काफी मात्रा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की ओर खिसकने की बात कही गई है। ऐसे में टीएमसी (TMC) सुप्रीमो परेशान क्यों नहीं होंगी, क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में लेफ्ट (Left) का वोट शेयर 30% था। जबकि, तब बीजेपी सिर्फ 16% पॉपुलर वोट ही जुटा पाई थी। अगर लेफ्ट के वोट का कुछ हिस्सा मौजूदा लोकसभा चुनाव में उनके मुख्य चैलेंजर बीजेपी की ओर गया, तो दीदी का डब्बा गोल होने का खतरा है। तृणमूल (TMC) के एक नेता ने नाम नहीं बताने के शर्त पर कहा है कि," हमारी संभावनाएं अब लेफ्ट के वोट के शिफ्ट होने पर लटकी हुई है। उम्मीद है कि हमें 30 से ज्यादा सीटें मिलेंगी, लेकिन अगर लेफ्ट का वोट शेयर 10% से ज्यादा गिरा, तो हम 25 तक भी गिर सकते हैं।"
ममता की टेंशन की दूसरी वजह
टीएमसी (TMC) के लोगों को उन 15 सीटों पर ज्यादा डर सता रहा है, जहां अल्पसंख्यकों की आबादी थोड़ी कम है। ऐसी सीटों पर तृणमूल के मुकाबले बीजेपी ने अपनी ताकत काफी मजबूत कर ली है। अगर ऐसे में उसे लेफ्ट के वोट का भी साथ मिलता है, तो वह राज्य की चुनावी फिजा बदल भी सकती है। खासकर इससे बंगाली मिडिल क्लास (Bengali middle class) में बीजेपी का प्रभाव और भी बढ़ने की संभावना है।
आखिरी दौर में क्यों ज्यादा तल्ख हुए तेवर?
बंगाल के चुनाव में इसबार यह साफ दिखता है कि बीजेपी हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिशों में जुटी हुई है। 19 मई को जिन 9 सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें हिंदी बोलने वालों की जनसंख्या काफी ज्यादा है और माना जाता है कि वे भाजपा समर्थक हैं। वहीं, बंगाल में अपना वजूद बचाने की जंग लड़ रहे लेफ्ट (Left) के लोग अंदर ही अंदर दबंग तृणमूल (Trinmool) कार्यकर्ताओं के सामने बीजेपी को थोड़ा कम ताकतवर दुश्मन मानते हैं। उनके मन में यह बात भी बैठी हुई है कि ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) ने न सिर्फ उन्हें सत्ता से बेदखल किया है, बल्कि उनसे अल्पसंख्यक (Minority) वोट बैंक भी छीन लिया है। इसलिए दीदी कुछ ऐसा राजनीतिक हथियार इस्तेमाल करना चाहती हैं, जिससे बंगाली मिडिल क्लास (Bengali middle class) और लेफ्ट के शुभचिंतकों को बीजेपी की ओर जाने से रोका जा सके।
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खुद उलझन में है लेफ्ट
बंगाल में ये चर्चा आम है कि भाजपा (BJP) को बूथ लेवल पर सीपीएम (CMP) कैडरों का साथ मिल रहा है। अब तो सीपीएम (CMP) लीडरशिप इस बात को स्वीकार भी करने लगी है। पार्टी नेता और सीपीएम (CMP) पोलित ब्यूरो मेंबर (politburo member) निलोत्पल बसु (Nilotpal Basu ) ने बुधवार को कहा कि,"लेफ्ट का वोट बंट रहा है इसका तृणमूल और बीजेपी दोनों प्रचार कर रही है। लेकिन, इस थ्योरी पर तृणमूल क्यों रो रही है? यहां तक कि ममता तक ने भी कहा कि लेफ्ट का वोट बीजेपी में क्यों जा रहा है। आपको तृणमूल से पूछना चाहिए कि आपके नेता और मतदाता दोनों बीजेपी में क्यों जा रहे हैं।" सीपीएम (CMP) के एक और नेता ने कहा है कि, " बंगाल के इतने ज्यादा ध्रुवीकृत (highly polarized) चुनाव में, लड़ाई तृणमूल बनाम बीजेपी है और इसलिए हमें थोड़ा नुकसान हो रहा है।"
इसलिए उठाया विद्यासागर का मुद्दा
ईश्वर चंद्र विद्यासागर (Ishwar Chandra Vidyasagar) बंगाल के पुनर्जागरण की पहचान हैं। इसलिए, जब उनके जन्म के 199 वर्षों बाद चुनावी विवाद में उनकी प्रतिमा खंडित हुई, तो ममता बनर्जी ने उसे लपकने में जरा भी देर नहीं की। बंगाल के शिक्षित वामपंथियों (Left's educated) और मिडिल-क्लास वोट बैंक (middle-class vote bank) के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर (Ishwar Chandra Vidyasagar) वो नाम हैं, जिनसे पीढ़ियों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। जबकि, यह वोट बैंक टीएमसी का कभी कोर वोटर नहीं रहा है और इस चुनाव में उसके बीजेपी की ओर कूच करने के संकेत मिल रहे हैं।
बंगाल में बीजेपी का हौसला बुलंद
इस बात में कोई दो राय नहीं कि बंगाल में बने सियासी हालातों का फायदा अकेले बीजेपी (BJP) को ही मिलता नजर आ रहा है। पार्टी बंगाल के लोगों के पॉलिटिकल मूड स्विंग (political mood swing) से गदगद है। असम सरकार में मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था, "सही विचारों वाले लोग, चाहे वो सीपीएम के हों, कांग्रेस के हों या टीएमसी के हों......वो बीजेपी को वोट दे रहे हैं.....राजनीतिक तौर पर कह सकते हैं कि सीपीएम के वोट बीजेपी में ट्रांसफर हो रहे हैं, लेकिन कहानी का यह एक पहलू है। लेकिन, मैं समझता हूं कि सीपीएम, कांग्रेस और टीएमसी- इन तीनों पार्टियों के सही-विचारों वाले लोग जो हैं, इसबार पीएम मोदी के लिए वोट कर रहे हैं।" अलबत्ता, बदले सियासी समीकरणों के बावजूद टीएमसी नेताओं को भरोसा है कि उनकी पार्टी इस चुनाव में भी अपनी सीटें बढ़ाने जा रही है। इस समय राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 34 टीएमसी के पास है, जबकि बीजेपी के पास सिर्फ 2 ही सीटें हैं। बाकी में से 4 पर कांग्रेस और 2 पर सीपीएम का कब्जा है।
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