क्यों बंगाली बनाम बाहरी को चुनावी मुद्दा बनाना चाहती हैं ममता बनर्जी
नई दिल्ली- पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस 'बंगाली बनाम बाहरी' को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाना चाहती है। इस बात की जानकारी टीएमसी के नेता ही दे रहे हैं। ममता को लगता है कि इस बार के चुनाव में भाजपा जितनी तगड़ी चुनौती पेश कर रही है, उसे इस लाइन पर घेरना पार्टी के लिए काफी आसान साबित हो सकता है। क्योंकि, तृणमूल की दीदी के कद के सामने भाजपा के पास ऐसा कोई 'लोकल दबंग' चेहरा नहीं है, जो उनकी राजनीति को टक्कर दे पाए। बीजेपी से बंगाल चुनाव की कमान 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह ही सीधे गृहमंत्री अमित शाह संभाल रहे हैं; और टीएमसी मानकर चल रही है कि ऐसी स्थिति में वह आसानी से भाजपा पर 'बाहरी लोगों' के भरोसे बंगाल जीतने का सपना देखने की तोहमत लगा सकती है।
टीएमसी से वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि आने वाले कुछ महीनों में उनकी पार्टी इसी बात पर फोकस करने वाली है कि 'बीजेपी के पास कोई स्थानीय नेता है नहीं' जो ममता बनर्जी को टक्कर दे सके। इसलिए सोशल मीडिया पर पार्टी पहले से ही 'बंगलार गोरबो ममता' (ममता बंगाल की गौरव) जैसा अभियान छेड़ दिया है। टीएमसी के एक नेता का कहना है, 'मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बंगाल की गौरव हैं। बीजेपी के पास उनसे मुकाबला करने के लिए कौन है? टीएमसी इसे मुद्दा बनाएगी कि बंगाल में बीजेपी की टीम को देखिए। अमित शाह इसकी अगुवाई कर रहे हैं, कैलाश विजय वर्गीय, अमित मालवीय और अरविंद मेनन प्रदेश के प्रभारी हैं। ये लोग बंगाल को नहीं समझते हैं। वे लोग सिर्फ विभाजन को आगे बढ़ा रहे हैं, जबकि हम विकास और बंगाली पहचान को आगे बढ़ाएंगे।'
वैसे सार्वजनिक तौर पर भले ही टीएमसी के नेता बीजेपी को ज्यादा तरजीह नहीं दे रहे, लेकिन अंदर ही अंदर वह उसे बहुत ही गंभीरता से ले रहे हैं। इसका उदाहरण बांकुरा है, जिसे मुख्यमंत्री बनर्जी ने कोविड-19 के बाद अपनी पहली आमसभा के लिए चुना है। गौरतलब है कि एक हफ्ते पहले ही गृहमंत्री अमित शाह यहीं पर एक आदिवासी के घर खाना खाकर जा चुके हैं। सोमवार को ममता ने इसके लिए उनपर ये आरोप लगाया था कि उनका लंच सिर्फ दिखावा था और दावा किया था कि लंच के लिए खाना फाइव-स्टार होटल से मंगवाए गए थे। हालांकि, बीजेपी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है।
तृणमूल सुप्रीमो ने एक आदिवासी शिकारी की मूर्ति को अमित शाह द्वारा गलती से स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की मूर्ति समझ लिए जाने पर भी जोरदार हमला किया था। टीएमसी सुप्रीमो को यकीन है कि भाजपा ने आदिवासियों के बीच पैठ बनाकर लोकसभा चुनावों में उसकी जड़ें हिला दी थी। इसलिए, बुधवार को ममता के बांकुरा दौरे पर पार्टी के ट्विटर हैंडल पर लिखा गया, 'बांकुरा दौरे पर ममता बनर्जी ने महान आदिवासी नेता 'धरती आबा' बिरसा मुंडा की जयंती को राजकीय छुट्टी घोषित की है। बंगाल के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास के लिए दीदी की समावेशी सोच और सम्मान हमेशा सभी को याद रहेगा।'
बांकुरा की लड़ाई इस बार कितनी जोरदार रहने वाली है इसका अंदाजा इसी से लगता है कि देश के गृहमंत्री यहां आदिवासी के घर जमीन पर बैठकर भोजन करके गए तो प्रदेश की मुख्यमंत्री इलाके में दो दिन बिताने वाली हैं। 2019 में भाजपा ने पश्चिम बंगाल में जो 18 लोकसभा सीटें जीती थी, उनमें बांकुरा और बिष्णुपुर भी शामिल हैं, जिसके अंदर 13 असेंबली सीट आती हैं।
तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है, 'ममता बनर्जी हमारी नेता हैं, हमारे पास और भी बंगाली दिग्गज हैं, जो टीएमसी के हिस्सा हैं। ऐसे नेता जिन्हें बंगाली जानते और पहचानते हैं। जो मुद्दे उठा रहे हैं, वह भी सकारात्मक हैं....' टीएमसी की इस लाइन पर बीजेपी वाले भी आपत्ति दर्ज करा रहे हैं कि इससे देश के दूसरे हिस्सों में रहने वाले बंगाली समाज के लोगों को दिक्कत भी हो सकती है।
ये भी सही है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा ने अभी तक किसी चेहरे को ममता के मुकाबले मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश नहीं किया है और यह बात पार्टी के लिए एक कमजोर कड़ी साबित हो सकती है। लेकिन, जहां तक वहां भाजपा के रणनीतिकारों की बात है तो टीएमसी ने तो यह सारा का सारा काम पेशेवर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को आउटसोर्स कर रखा है, जिसको लेकर पार्टी में कई विधायक बगावत तक का झंडा भी बुलंद कर रहे हैं।