धारा-370 हटने के बाद कश्मीर में हो गई हजामों की किल्लत, कुछ लोगों की बढ़ गई कमाई
नई दिल्ली- जम्मू-कश्मीर में पाबंदियों के 18 दिन गुजर चुके हैं। इस दौरान वहां के लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी में कई छोटो-मोटी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन्हीं परेशानियों में एक हजाम या नाइयों की समस्या भी है, जिनकी तादाद अचानक से घट गई है। जानकारी के मुताबिक कश्मीर में पिछले ढाई-तीन दशकों से देश के दूसरे हिस्से से आए नाई ही स्थानीय लोगों की जरूरतों को पूरा करते थे।
लेकिन, मौजूदा हालात में दुकानें बंद रहने की वजह से दूसरे राज्यों घाटी में आकर काम कर रहे हजारों नाई अपने घरों को लौट गए हैं। इसी के चलते दिक्कत बहुत ज्यादा हो गई है। हो सकता है कि घाटी से जाने वाले नाई तबतक वापस न लौटें जब तक यहां हालात पूरी तरह सामान्य न हो जाए। ऐसे में घाटी में जो कुछ थोड़े-बहुत स्थानीय नाई या हजाम बचे हुए हैं, उनकी डिमांड अचानक से बहुत ज्यादा बढ़ गई है। ऐसे लोग खुद बता रहें कि उनकी कमाई में कई गुना इजाफा हो गया है और उन्हें फुर्सत नहीं मिल पा रही है। वे अपनी युवा पीढ़ी से फिर से पुश्तैनी पेशे में वापस लौटने के भी कहने लगे हैं।
करीब 20,000 हजामों ने छोड़ी घाटी
टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले काफी वक्त से कश्मीरी आदमियों की बाल और दाढ़ी संवारने की जिम्मेदारी ज्यादातर उत्तर प्रदेश के बिजनौर से आए हजामों ने अपने कंधे पर संभाल रखी थी। लेकिन, घाटी में मौजूदा तनाव और पाबंदियों को देखते हुए वे फिलहाल अपने घरों की ओर लौट गए हैं। कश्मीर हेयरड्रेसर्स एसोसिएशन के मुताबिक कश्मीर में काम कर रहे करीब 20,000 नाइयों की दुकान बंद हो चुकी है, क्योंकि वे आर्टिकल 370 हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के बाद पैदा हुए माहौल को देखते हुए अपने घरों की ओर लौट गए हैं। इसका असर ये हुआ है कि जो स्थानीय नाई काफी समय से पुश्तैनी पेशा छोड़ चुके थे, वे वापस से अपने पुराने धंधे में लौटने लगे हैं और अब उन्हें अपना भविष्य ज्यादा अच्छा दिखाई देने लगा है।
10 दिनों में कई गुना बढ़ी कमाई
पिछले कुछ दशकों में घाटी में कुछ गिने-चुने स्थानीय हजाम ही अपने धंधे में बचे रह गए थे। उन्हीं में से एक मुश्ताक अहमद भी हैं, जो 25 साल पहले बिजनौर से आए हजामों के बावजूद अपने घर से ही अपना धंधा चला रहे थे। अहमद ने कहा कि " 17 दिन बाद भी पूरे कश्मीर में दुकानें बंद हैं, इसके कारण यहां हजामों की मांग काफी बढ़ गई है। ज्यादातर बाहरी हजाम भाग गए हैं और उनके ग्राहक अब दूसरा विकल्प तलाश रहे हैं।" उन्होंने बताया कि इसके चलते पिछले 10 दिनों में उनकी कमाई कई गुना बढ़ गई है। उन्होंने ये भी कहा कि, "धार्मिक कारणों से ईद-उल-अजहा के 10 दिन पहले से कश्मीरी बाल कटवाने, शेविंग या दाढ़ियों की कटाई-छंटाई से परहेज करते हैं। इसके चलते ग्राहकों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है, जो तड़के भी मेरे घर पर पहुंच जाते हैं, क्योंकि दिन के समय पाबंदियां होती हैं।"
युवा पीढ़ी को पुश्तैनी पेशे में लौटने की सलाह
ऐसे
ही
कश्मीरी
हजामों
में
से
एक
गुलाम
मोहम्मद
हजाम
भी
मिले
जो
पिछले
तीन
दशकों
से
अपने
ग्राहकों
के
घर
जाकर
उनकी
हजामत
बनाते
थे।
बदलते
हालात
में
वे
सोच
रहे
हैं
कि
जब
घाटी
में
स्थिति
सामान्य
होगी
तो
वे
अपने
लिए
एक
दुकान
किराए
पर
ले
लेंगे।
उन्होंने
कहा
कि
"हजामों
की
किल्लत
के
कारण
मैं
सोचता
हूं
कि
युवाओं
के
लिए
अपने
पेशे
में
वापस
लौटने
का
बढ़िया
मौका
है।"
लेकिन,
जिन
लोगों
को
हजाम
नहीं
मिल
पा
रहे
हैं,
उन्होंने
फिलहाल
खुद
ही
कैंची
थाम
ली
है
और
अपने-आप
को
ठीक
रखने
की
कोशिश
कर
रहे
हैं।
ऐसे
भी
लोग
हैं
जो
कह
रहे
हैं
कि
अपना
बाल
बनाने
में
भले
ही
दिक्कत
है,
साथियों
और
रिश्तेदारों
की
मदद
तो
कर
ही
सकते
हैं।
(सभी
तस्वीर
प्रतीकात्मक)
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