शाहीन बाग में धरने का गांधीजी समर्थन करते या विरोध, उनके परपोते ने क्या कहा ? जानिए
नई दिल्ली- दो महीने से ज्यादा गुजर गए, लेकिन नागरिकता संशोधन कानून का विरोध शांत नहीं पड़ा है। अब उसके साथ-साथ एनआरसी और एनपीआर के विरोध में भी विरोध का दौर जारी है। शुरुआती दिनों में तो इसका विरोध जबर्दस्त हिंसा के साथ शुरू हुआ था। लेकिन, धीरे-धीरे यह धरना-प्रदर्शनों और विधानसभाओं से आलोचनात्मक प्रस्तावों का पारित कराने का शक्ल अख्तियार कर चुका है। दिल्ली का शाहीन बाग इलाका पिछले दो महीनो के संघर्ष के बाद सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शन का केंद्र बनकर उभरा है। एक तथ्य ये है कि सीएए का जितना विरोध हो रहा है, उसके समर्थन में भी उतने ही रैलियां और मार्च हो रहे हैं। इस समर्थन और विरोध के बीच महात्मा गांधी के परपोते भी तथ्यों के आधार पर अपनी दलीलों के साथ बापू के विचारों के जरिए इस बहसबाजी में कूद पड़े हैं। लेकिन, बापू के परपोते ने सीएए और एनआरसी को लेकर बापू के जो विचार दुनिया के सामने रखे हैं, उसके बारे में जानकर सीएए विरोधियों को बहुत बड़ा झटका लग सकता है।
बापू की इच्छा के विपरीत है सीएए का विरोध- गांधीजी के परपोते
सीएए-एनआरसी के खिलाफ दिल्ली का शाहीन बाग इलाका अखाड़ा बना हुआ है। वहां इसके खिलाफ दो महीने से ज्यादा वक्त से सड़क रोके बैठे प्रदर्शनकारियों को समझाने-बुझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को तीन मध्यस्थों को भेजना पड़ा है। लेकिन, महात्मा गांधी के परपोते ने नागरिकता संशोधन कानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स को लेकर अपना पूरा अलग नजरिया जाहिर किया है। इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखे एक आलेख में श्रीकृष्णा कुलकर्णी ने स्पष्ट किया है कि जो लोग सीएए-एनआरसी का विरोध कर रहे हैं, वे दरअसल गांधी जी की इच्छा के विपरीत काम कर रहे हैं। बता दें कि गांधीजी के परपोते कुलकर्णी आईआईएम कोलकाता के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन हैं। उन्होंने कई उदाहरणों के जरिए बताने की कोशिश की है किस तरह से सीएए-एनआरसी को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म किया गया है।
'बापू के विचारों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है'
सीएए के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शनों के बारे में उन्होंने लिखा है कि इसे भड़काने के लिए गलत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं, जिससे असुरक्षा की भावना पैदा की जा सके। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के दुरुपयोग के लिए हर तरह की बातें कही जा रही हैं। उन्होंने इस बात पर गहरी चिंता जताई गई है कि इन हथकंडों को अपनाने के लिए इस कानून का विरोध करने वालों ने महात्मा गांधी का भी इस्तेमाल किया है। उन्होंने लिखा है कि अपने विचारों को थोपने के लिए इस कानून के विरोध के नाम पर बापू के असल विचारों को ही तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। इसलिए उन्हें लगा कि बापू इस मसले पर बापू के असल विचारों को लाना जरूरी है।
पाकिस्तान ने अल्पसंख्यकों के साथ क्या किया ?
उन्होंने बताया है कि 1906 में मुस्लिम लीग का गठन और उसी को संरक्षण देने के लिए 1909 में देश में मुसलमानों के लिए चुनाव में सीटें आरक्षित करना ही आखिरकार भारत की एकता के खंडित होने का कारण बना। इसी के चलते 1946 में 17 प्रांतों में जो प्रांतीय और केंद्रीय विधायिकाओं के लिए चुनाव हुए उसमें अविभाजित भारत के बहुसंख्यक मुसलमानों ने मुस्लिम लीग के लिए वोट किया और वह मुस्लिमों के लिए रिजर्व 87 फीसदी सीटें जीत गई, जो कि देश के विभाजन का आधार बना। 1947 के बाद पाकिस्तान के शासकों ने अपना ध्यान सिर्फ मुसलमानों के हितों की ओर केंद्रित किया। सरकार के कामकाज में कुरान और शरियत का दखल बढ़ा, जिसके परिणामस्वरूप गैर-मुस्लिम धार्मिक अल्पसंख्यकों का नरसंहार देखने को मिला।
पाकिस्तानी हिंदुओं और सिखों पर बापू के विचार
कुलकर्णी लिखते हैं कि विभाजन के बाद पाकिस्तान में रह गए हिंदुओं और सिखों को न्याय दिलाने पर गांधीजी ने पूरा जोर दिया। उन्होंने इसके लिए गांधीजी की दिल्ली डायरी से उनके विचारों के कुछ अंश सामने रखे हैं, 'पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों की सुरक्षा सुनिश्चत करना भारत की केंद्रीय सरकार की जिम्मेदारी थी। लेकिन, इसके लिए सरकार को फ्री हैंड दी जानी चाहिए और उसे हर भारतीय से पूर्ण और ईमानदार सहयोग मिलना चाहिए- (25 सितंबर, 1947)'। 26 सितंबर, 1947 को उन्होंने लिखा था कि अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा- 'वे (गांधीजी) सभी तरह के युद्ध के विरुद्ध थे। लेकिन, अगर पाकिस्तान में न्याय सुनिश्चित करने के लिए कोई दूसरा तरीका नहीं था, अगर पाकिस्तान अपनी गलतियों को ठीक करने से लगातार इनकार करता रहा और इसे नजरअंदाज करना जारी रखा तो भारत सरकार को उसके खिलाफ जंग शुरू करना होगा। '
गांधीजी के विचारों के अनुकूल है सीएए- बापू के परपोते
इन उदाहरणों का हवाला देकर गांधीजी के परपोते ने लिखा है कि सनातन धर्म में भारत माता का जीवन है, जो कि सुनिश्चित करता है कि मुसलमान और सभी धार्मिक अल्पसंख्यक बराबर के नागरिक हैं। हम 'सर्वे भवंतु सुखिन:' का पालन करने वाले लोग हैं। इसलिए, इस दावे को स्वीकार करना मुश्किल है कि भारत में अल्पसंख्यकों को वंचित रखा गया है। जबकि, 1973 में पाकिस्तान ने खुद को मुस्लिम राष्ट्र घोषित किया। वहां पूरी दुनिया के सामने गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों का सफाया किया गया। इन अभागे लोगों की मदद के लिए स्वतंत्र भार की सरकार ने कुछ नहीं किया। सीएए की वकालत करते हुए गांधीजी के परपोते ने लिखा है कि नागरिकता संशोधन कानून किसी भी धर्म के नागरिक की नागरिकता नहीं छीनता, किसी से भी भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार नहीं छीनता। इन्हीं तथ्यों का हवाला देकर उन्होंने लिखा है कि नागरिकता संशोधन कानून पूरी तरह से गांधीजी की भावना के अनुकूल है और सरकार को उनकी इच्छा पूरी करने में 72 साल लग गए।
'गांधीजी की जड़ें सनातन धर्म और भगवत गीता में थीं'
उन्होंने दो टूक लिखा है कि भारत को कमजोर करने के लिए ही सीएए के विरोध को एनआरसी के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि अभी आया भी नहीं है। ये ताकतें गांधीजी के बारे में भी गलत तरह से समझाकर उनको भी अपना हथियार बनाएंगी। हमें गांधीजी और उनकी जड़ों को समझना होगा। उन लोगों से सावधान रहने की जरूरत है, जो गांधी के विचारों के एक्सपर्ट होने का दावा करते हैं, लेकिन असल में दुनिया को लेकर उनके नजरिए के विरोधी हैं। उन्होंने लिखा है कि 'तुष्टिकरण की राजनीति का खात्मा' गांधीजी का ही एजेंडा था, जो पूरा नहीं हो पाया। गांधीजी की जड़ें सनातन धर्म और भगवत गीता में थीं।
'बापू शाहीन बाग प्रदर्शन का कभी समर्थन नहीं करते'
शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ जारी प्रदर्शन को लेकर उन्होंने लिखा है कि गांधीजी कभी भी इसका समर्थन नहीं करते। क्योंकि, ये विरोध सीएए-एनआरसी को लेकर फैलाए गए भय, उत्पीड़न और असत्य पर आधारित है। बापू के परपोते ने सिर्फ सीएए ही नहीं, एनआरसी के समर्थन में भी भरपूर दलीलें दी हैं। उन्होंने कहा है, हमारी जनसंख्या डेढ़ करोड़ सालाना की दर से बढ़ रही है। दुनिया की कोई भी सरकार इतनी बड़ी आबादी के लिए संसाधन या नौकरियां सुनिश्चित नहीं कर सकती। किसी भी चुनी हुई और जिम्मेदार सरकार की यह प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह अपनी जनसंख्या का सटीक आकलन करे। इसलिए मेरी नजर में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स बहुत ही जरूरी है। इसलिए, हमें हर हाल में सीएए और एनआरसी लागू करना चाहिए। सीएए से हमारे पुराने घावों को भरने में मदद मिलेगी और एनआरसी से वह आधार तैयार होगा, जिससे हमारा वर्तमान और भविष्य सुरक्षित होगा।
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