गांधी@150: गांधी जी ने सुभाष चन्द्र बोस का विरोध क्यों किया था?
नई
दिल्ली।
महात्मा
गांधी
ने
अगर
नेताजी
सुभाष
चन्द्र
बोस
का
समर्थन
किया
होता
तो
क्या
आजाद
भारत
की
तस्वीर
कुछ
और
होती
?
महात्मा
गांधी
ने
कांग्रेस
अध्यक्ष
के
रूप
में
सुभाष
चन्द्र
बोस
का
विरोध
क्यों
किया
था
?
इस
संबंध
में
इतिहासकारों
के
मत
अलग-
अलग
हैं।
कुछ
इतिहासकारों
का
कहना
है
कि
आजादी
हासिल
करने
के
तरीके
को
लेकर
दोनों
में
मतभेद
था।
गांधी
जी
अहिंसा
और
असहयोग
से
आजादी
हासिल
करना
चाहते
थे
जब
कि
सुभाष
चंद्र
बोस
इससे
इत्तेफाक
नहीं
रखते
थे।
इन
इतिहासकारों
का
कहना
है
कि
सैद्धांतिक
विरोध
के
बाद
भी
गांधी
और
बोस
एक
दूसरे
का
बहुत
सम्मान
करते
थे।
जब
कि
रुद्रांगशु
मुखर्जी
जैसे
इतिहासकारों
का
कहना
है
कि
गांधी,
नेहरू
की
तरफ
झुके
हुए
थे।
गांधी
के
पास
सुभाष
के
लिए
कोई
जगह
नहीं
थी।
गांधी ने किया सुभाष का विरोध
सुभाष चन्द्र बोस 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये थे। उस समय वे कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता थे। मकबूलियत के मामले में जवाहर लाल नेहरू भी उनसे पीछे थे। पार्टी में अपनी नीतियों को लागू करने के लिए नेताजी फिर कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते थे। 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन में उन्होंने फिर अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी। नेहरू ने उनके खिलाफ चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपना नाम वापस ले लिया। गांधी जी किसी कीमत पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को दूसरी बार कांग्रेस का अध्यक्ष बनते हुए नहीं देखना चाहते थे।
गांधी की हार !
गांधी जी ने नेताजी के खिलाफ पट्टाभि सीतारमैया को अपना समर्थन दिया। तब गांधी जी ने कहा था, पट्टाभि सीतारमैया की हार, मेरी हार होगी। चुनाव हुआ। गांधी जी के विरोध के बाद भी सुभाष चन्द्र बोस जीत गये। उस समय कांग्रेस में सुभाष चन्द्र बोस के सामने गांधी जी फीके पड़ गये। गांधी जी इतने निराश हो गये कि उन्हें कहना पड़ा कि ये मेरी हार है। इस जीत से नेहरू भी असहज हो गये। अजीबोगरीब स्थिति थी। कांग्रेस के अधिकांश कार्यकर्ता सुभाष चन्द्र बोस के समर्थन में थे जब कि गांधी जी और नेहरू उनके विरोध में थे। इससे आहत हो कर सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और अपना रास्ता अलग कर लिया। इस्तीफे के दो साल बाद नेताजी भारत से विदेश चले गये और आजादी की लड़ाई के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना की।
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गांधी जी ने बोस की जगह नेहरू को क्यों चुना ?
1939 में सुभाष चन्द्र बोस ने अपने भतीजे अमिय नाथ बोस को एक पत्र लिखा था जिसमें कहा था कि मेरा किसी ने भी उतना नुकसान नहीं किया जितना कि जवाहर लाल नेहरू ने किया। उस समय गांधी जी की विरासत को संभालने के लिए दो सबसे उपयुक्त नेता थे, सुभाष चन्द्र बोस और जवाहर लाल नेहरू। लेकिन गांधी जी को बोस से दिक्कत थी इसलिए उन्होंने नेहरू को अपना उत्तराधिकारी चुना। उस समय कांग्रेस और सम्पूर्ण भारतीय राजनीति एक अहम मोड़ पर खड़ी थी। अगर सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस के अगुआ बन जाते तो जाहिर है आजादी के बाद की तस्वीर कुछ और होती।
सुभाष चन्द्र बोस और नेहरू
इतिहासकार रुद्रांगशु मुखर्जी के मुताबिक गांधी जी के पास सुभाष चन्द्र बोस के लिए कोई जगह नहीं थी। बोस का मानना था कि वे और नेहरू मिल कर इतिहास बना सकते थे। लेकिन ये मुमकिन न हुआ। बोस की लोकप्रियता से नेहरू के मन में असुरक्षा की भावना आ गयी थी। रुद्रांगशु मुखर्जी के मुताबिक 1945 में सुभाष चन्द्र बोस की मौत की खबर के बाद भी नेहरू अपनी राजनीति को लेकर आश्वश्त नहीं हो सके थे। सुभाष चन्द्र बोस के परिजनों की नेहरू सरकार ने 16 साल तक जासूसी करायी। नेहरू मानते थे कि सुभाष चन्द्र बोस करिश्माई नेता हैं। वही एक ऐसा नेता हैं जो कांग्रेस के खिलाफ लोगों को गोलबंद कर सकते हैं। नेहरू को लगता था सुभाष चन्द्र बोस जिंदा हैं और कहीं वेष बदल कर रहे रहे हैं। अगर वे भारत लौट आये तो कांग्रेस ध्वस्त हो जाएगी। 26 नवम्बर 1957 को तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने तब के विदेश सचिव सुविमल दत्त को एक गोपनीय पत्र लिखा था और सुभाष चन्द्र बोस के भतीजे अमिय नाथ बोसे के जापान जाने का ब्यौरा मांगा था।
गांधी जी बोस को गुमराह मानते थे
23 अगस्त 1945 को यह खबर आयी कि सुभाष चन्द्र बोस की हवाई दुर्घटना में मौत हो गयी है। इसके एक दिन बाद 24 अगस्त को गांधी जी ने राजकुमारी अमृत कौर को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को एक देशभक्त तो बताया था लेकिन उन्हें गुमराह भी कहा था। इस पत्र में एक जगह गांधी जी ने लिखा था, मैं जानता था कि उनका काम विफल होने वाला है। कई स्थानों पर गांधी जी ने उनकी संगठन क्षमता और सर्वधर्म सद्भाव की तारीफ की है। लेकिन यह भी सच है कि अगर सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस से अलग हुए तो इसकी एक मात्र वजह गांधी जी ही थे।
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