महाराष्ट्र: शिवसेना-NCP-कांग्रेस गठबंधन सरकार में इन मुद्दों पर शिवसेना की होगी और फजीहत !
बेंगलुरु। विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही महाराष्ट्र अपनी नई राज्य सरकार के इंतजार में है। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना के नेताओं के बीच बैठकों का दौर जारी है। फिलहाल शिवसेना के साथ जाने को लेकर एनसीपी-कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच हुई बैठक के बाद तस्वीर साफ हो चुकी हैं कि भाजपा का साथ छोड़ने वाली शिवसेना अब कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने जा रही हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या सरकार के गठन के बाद क्या ये तीनों दल अपने-अपने वैचारिक मतभेद भुला पाएंगे ?
क्या सब कुछ दांव पर लगा देगी शिवसेना
गौरतलब है कि सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के लिए शिवसेना अपनी विचारधारा, हिंदुत्व, राष्ट्रवाद सब कुछ दाव पर लगाने को तैयार है और विरोधी विचारधारा वाली सेकुलर पार्टियों कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन तक करने से नहीं हिचक रही है। शिवसेना का घमंड भी कहा जा सकता है, लेकिन एनडीए से निकाली गई शिवसेना के संदर्भ में ये घमंड कम और मजबूरी ज्यादा लग रही है। हिंदुत्व की हो, या राष्ट्रवाद की, कभी जिन मुद्दों पर शिवसेना और बाला साहेब ठाकरे बोला करते थे, इस गठबंधन के बाद शिवसेना कैसे अपनी विचारों को बदल पाएगी यह देखना दिलचस्प होगा।
इन मुद्दों पर वैचारिक मतभेद होना तय
भाजपा का साथ छोड़ने वाली शिवसेना अब कांग्रेस और एनसीपी के साथ तो सरकार तो बना रही हैं, और तीनों पार्टियों में सरकार गठन के लिए साझा कार्यक्रम पर तैयार भी हुआ हैं। लेकिन अभी भी ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर महाराष्ट्र की संभावित सरकार में टकराव होना निश्चित हैं। उनमें प्रमुख मुद्दे हैं वीर सावरकर को भारत रत्त देने की मांग और दूसरा मुद्दा है मुस्लिमों को 5 फीसदी आरक्षण देने की मांग।
वीर सावरकर को भारत रत्न की मांग
गौरतलब है कि शिवसेना पूरी तरह से हिंदुत्व की राजनीति करती है, लेकिन कांग्रेस-एनसीपी के साथ कुछ त्याग करना पड़ रहा है। विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव, लगातार शिवसेना की तरफ से वीर विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग करती आयी है। लेकिन कांग्रेस-एनसीपी लगातार वीर सावरकर को एक विवादास्पद किरदार मानती रही हैं और उनका नाम महात्मा गांधी की हत्या की साजिश करने वालों के साथ जोड़ती आई है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 के दौरान भी शिवसेना ने लगातार यह मांग उठायी थी। जिसका लगातार कांग्रेस ने विरोध किया। वहीं बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में सावरकर को भारत रत्न देने का वादा किया था। जब कांग्रेस-एनसीपी के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनने लगा तो शिवसेना को पीछे हटना पड़ा एक और भी मुद्दा रहा जिस पर कांग्रेस और एनसीपी के दबाव में शिवसेना की एक न चली और कदम पीछे खींचने पड़े। शिवसेना ने सरकार बनाने की मजबूरी में तो इस मुद्दे पर हामी भर दी है लेकिन भविष्य में कई ऐसे मुद्दे आएंगे जिन पर तीनों दलों में वैचारिक मदभेद होना तय है।
मुस्लिमों को 5 फीसदी आरक्षण देने का मुद्दा
दूसरी ओर अगर मुस्लिम आरक्षण की बात करें, तो शिवसेना इस मुद्दे का विरोध करती आई है और राज्य में मराठा आरक्षण को बढ़ावा देने की बात करती आई है। महाराष्ट्र की कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) राज्य में शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों को पांच प्रतिशत आरक्षण देने की मांग करते आए हैं। कांग्रेस और एनसीपी के पार्षदों ने महाराष्ट्र विधान परिषद में जोर-शोर से यह मांग उठाई। कांग्रेस और एनसीपी के विधान पार्षदों ने कहा था कि मुस्लिमों का बड़ा वर्ग आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के तहत आता है। इसके बावजूद राज्य सरकार शिक्षा एवं नौकरियों में समुदाय को आरक्षण के लाभ देने में विफल रही है। इस मांग पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने यह कहते हुए उनकी बात का विरोध किया कि संविधान में धर्म आधारित आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।
भाजपा सरकार का तर्क था कि 'बाबा साहब आंबेडकर ने संविधान तैयार करते वक्त स्पष्ट रूप से कहा था कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं दिया जाना चाहिए।'महाराष्ट्र में अब तक कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन की सरकार सत्ता में कई सालों तक रही लेकिन मुसलमानों को आरक्षण नहीं मिला। माना जा रहा है कि एनसीपी और कांग्रेस इस बार महाराष्ट्र में सत्ता पर काबिज होते ही मुस्लिमों से किया ये वायदा जरुर पूरा करेगी। ऐसी स्थिति में हिंदूवादी शिवसेना क्या रुख अपनाएंगी क्योंकि सदा से वह इसका विरोध करती आयी है। ऐसे में अब इस बात पर भी हर किसी की नज़र रहेगी कि जिन मसलों पर बात अटक रही है वह कैसे पूरे होते हैं और कौन अपने दावे की कुर्बानी देता है।
शिवसेना ने मुद्दे थोपने की कोशिश की तो कांग्रेस बाहर आ सकती है
ये सच है कि शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की साझा सरकार बनना आसान नहीं है। अगर सरकार बन भी जाती है तो इतने वैचारिक मतभेद के साथ सरकार कितने दिन चलेगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
फिलहाल सरकार का गठन नहीं हुआ हैं। ऐसे में अभी भी माना जा रहा है कि शिवसेना ने कहीं अपने मुद्दे थोपने की कोशिश की तो कांग्रेस बाहर आ सकती है। एनसीपी एक मजबूत पुल बनाने की कोशिश में जुटी है। ये बात साफ़ है कि अगर सरकार बनेगी तो फ़ॉर्मूला जो भी हो, मुख्यमंत्री पद पहले शिवसेना को जाएगा उसके बाद एनसपी को।
बता दें बुधवार को दिल्ली में कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं के बीच बैठक हुई। कांग्रेस ने साफ किया है कि वो महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए शिवसेना के साथ गठबंधन के लिए तैयार है। कांग्रेस-एनसीपी ने कहा है कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन खत्म करने के लिए वो गठबंधन की सरकार के लिए तैयार है, लेकिन अभी नई सरकार के गठन को लेकर कुछ और बातें होनी बाकी हैं।
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