महाराष्ट्र में तीन दलों की सरकार से शिवसेना या कांग्रेस में से एक को जरूर होगा नुकसान
महाराष्ट्र में अगर शिवसेना-कांग्रेस और एनसीपी की सरकार बनती है तो शिवसेना या कांग्रेस में से किसी एक को बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है....
नई दिल्ली। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के तीन दिन बाद भी सरकार गठन को लेकर स्थिति साफ नहीं हो पाई है। शिवसेना के कद्दावर नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत लगातार बयान दे रहे हैं कि महाराष्ट्र का अगला सीएम शिवसेना से ही होगा। संजय राउत ने शुक्रवार को यह भी बयान दिया कि कांग्रेस-एनसीपी के साथ बातचीत चल रही है और सरकार न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर चलेगी। हालांकि महाराष्ट्र में शिवसेना और कांग्रेस की राजनीति एक-दूसरे के विरोध पर टिकी रही है। ऐसे में अगर तीनों दलों के गठबंधन की सरकार बनती है तो शिवसेना या कांग्रेस में से किसी एक दल को अपनी वैचारिक पहचान खोने का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी
दरअसल, शिवसेना की पहचान एक कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी के तौर पर है। भाजपा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद शिवसेना के शीर्ष नेतृत्व ने कई बार खुले मंच से बयान भी दिया कि एनडीए के पास 300 से ज्यादा सांसद हैं और अब अयोध्या में राम मंदिर के लिए सरकार को अध्यादेश लाना चाहिए। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन करने पर उसे कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी की ये छवि छोड़नी पड़ेगी। शिवसेना अगर हिंदुत्व का मुद्दा छोड़ती है तो उसकी वैचारिक पहचान खत्म हो जाएगी और इसका सीधा फायदा प्रदेश में भाजपा को मिलेगा।
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कांग्रेस पर भी उठेंगे सवाल
दूसरी तरफ, कांग्रेस का नजरिया एक सेक्युलर पार्टी का है। गठबंधन होने पर अगर शिवसेना हिंदुत्व का मुद्दा नहीं छोड़ती तो फिर कांग्रेस के सामने अपनी वैचारिक पहचान खोने का संकट खड़ा होगा। कांग्रेस पर यह सवाल भी उठेंगे कि सत्ता के लिए उसने अपनी सेक्युलर छवि से समझौता कर लिया। यानी अगर तीनों दलों की सरकार महाराष्ट्र में बनी तो कांग्रेस और शिवसेना में से किसी एक को अपनी वैचारिक पहचान खोने का नुकसान उठाना पड़ेगा। वहीं, अभी शिवसेना और एनसीपी के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर भी स्थिति साफ नहीं हो पाई है। शिवसेना चाहती है कि पांच साल की सरकार में उनका ही सीएम रहे, जबकि एनसीपी 2.5 साल अपना सीएम चाहती है।
एनसीपी को लेकर भी संशय में कांग्रेस
वहीं, महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार को लेकर भले ही कांग्रेस ने सहमति के संकेत दे दिए हों, लेकिन पार्टी के नेता एनसीपी के इरादों को लेकर उलझन में हैं। दरअसल 11 नवंबर के बाद घटी दो घटनाओं ने कांग्रेस के खेमे में खलबली मचा दी है। पहली घटना उस वक्त घटी, जब नई दिल्ली में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक हुई और महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन देने के प्रस्ताव पर चर्चा हुई। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि इस बैठक के बाद उनकी पार्टी शिवसेना को अपनी राय देने ही वाली थी कि उसी दौरान एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने सोनिया गांधी के साथ फोन पर हुई बातचीत में सुझाव दिया कि अभी दोनों पक्षों को अपना फैसला रोकना चाहिए, क्योंकि वो खुद शिवसेना के साथ सरकार के गठन के विवरण पर चर्चा करना चाहते हैं।
तय समय से पहले राज्यपाल से क्यों मिले NCP के नेता
इसके बाद दूसरी घटना मंगलवार को उस वक्त घटी, जब एनसीपी ने राजभवन को ईमेल भेजकर राज्यपाल से सरकार बनाने की क्षमता साबित करने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की। एनसीपी के इस ईमेल के तुरंत बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने केंद्र को एक रिपोर्ट भेजी, जिसमें राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाई की सिफारिश की गई थी। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, 'राज्यपाल ने एनसीपी को सरकार बनाने की क्षमता साबित करने के लिए रात 8:30 बजे तक का समय दिया हुआ था, तो फिर एनसीपी ने दोपहर 12.30 बजे ही राज्यपाल से समय मांगने की जल्दबाजी क्यों दिखाई? यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्राजील रवाना होने से ठीक पहले हुआ। हम इस बात को सोचकर हैरान हैं कि आखिर एनसीपी की ऐसी क्या जल्दी थी।' इन दो घटनाओं को देखकर मुंबई और दिल्ली में कांग्रेस नेताओं के एक धड़े को शक है कि एनसीपी अभी पूरी तरह से सरकार बनाने के मूड में नहीं है या फिर एनसीपी के शीर्ष नेता शिवसेना और कांग्रेस से बातचीत के दौरान सौदेबाजी के लिए हवा बनाना चाहते हैं।
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