महाराष्ट्र: पवार चाहते हैं शिवसेना के साथ 1995 का फॉर्मूला, कांग्रेस की है ये शर्त!
नई दिल्ली। महाराष्ट्र में राजनीतिक दलों के सरकार बनाने को लेकर साथ ना आने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया है। बताया जा रहा है कि भाजपा-शिवसेना में सरकार बनाने को लेकर समझौता ना होने के बाद अब एनसीपी और कांग्रेस शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने की संभावना तलाश रहे हैं। एनसीपी प्रमुख शरद पवार और कांग्रेस में शिवसेना के साथ जाने की शर्तों को लेकर बात फाइनल नहीं हो पा रही है।
शरद पवार क्या चाहते हैं
शरद पवार ने 1995 में महाराष्ट्र में जिस तरह से भाजपा-शिवसेना ने सरकार बनाई थी, उसी तरह का फॉर्मूला चाहते हैं। इसमें सीएम पोस्ट शिवसेना के पास रहे लेकिन डिप्टी सीएम और वित्त, गृह जैसे अहम मंत्रालय सहयोगियों को मिलें। इसी फॉर्मूले पर 1999 में एनसीपी और कांग्रेस ने भी सरकार बनाई थी। एनसीपी सीएम पद बदलने को लेकर भी समझौता चाहती है। वहीं कांग्रेस शिवसेना के साथ सरकार बनाने के लिए एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम चाहती है।
महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं की इस 'चेतावनी' के बाद सोनिया गांधी ने की थी शरद पवार से बात
सोनिया नहीं चाहती शिवसेना के साथ सरकार?
ये भी बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र के कांग्रेस नेता सरकार में शामिल होना चाहते हैं लेकिन सोनिया गांधी का रुख बदल गया है। सोनिया गांधी ने पार्टी की एक बैठक में शिवसेना को समर्थन देने का विरोध किया है। उनका मानना है कि शिवसेना की कट्टर विचार वाली छवि की वजह से कांग्रेस को आगे भारी नुकसान होगा।
वहीं एनसीपी नेता शरद पवारने कहा है कि सरकार बनाने के लिये उनके पास पूरा समय है। उन्होंने कहा कि सरकार बनाने के प्रयास जारी रहेंगे। लेकिन इसके लिये कोई जल्दबाजी में कदम नहीं उठाया जाएगा।
महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन
बता दें कि महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव के नतीजे 24 अक्टूबर को आए हैं। बीजेपी के 105 और शिवसेना के 56 विधायक जीते हैं। कांग्रेस को 44 और एनसीपी को 54 सीटों पर जीत मिली है। बहुमत के लिए यहां 145 सीटों की जरूरत है, ऐसे में साफ है कि कोई एक पार्टी अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती है। भाजपा-शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा है और दोनों दलों की सीटें भी बहुमत के आंकड़े से ज्यादा हैं लेकिन नतीजे आने के बाद से ही शिवसेना ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद पर अड़ी हुई है, वहीं भाजपा इस पर तैयार नहीं है। इसी को लेकर नई सरकार का रास्ता साफ नहीं हो पाया। ऐसे में 12 दिसंबर को महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।