महाराष्ट्र: तो क्या इसलिए शरद पवार शिवसेना के संग सरकार बनाने में कर रहे हैं देरी
बेंगलुरु। महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर रस्साकसी चल रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के बयान ने शिवसेना की चिंता बढ़ा दी है। पवार ने सोमवार शाम मुलाकात के बाद कहा था कि उन्होंने सोनिया गांधी के साथ न तो शिवसेना और न ही सरकार बनाने के बारे में बात की। पवार के इस बयान से शिवसेना अधर में लटकी हुई नजर आ रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजहें हैं जिसके कारण शरद पवार शिवसेना के साथ सरकार बनाने के लिए कभी दो कदम आगे बढ़ाते हैं तो अचानक से ढ़ाई कदम पीछे खींच लेते हैं ?
महाराष्ट्र में एनसीपी चीफ शरद पवार चाहते हैं रोटेशनल सीएम!
महाराष्ट्र में सरकार के गठन को लेकर जब से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की बात चल रही है तभी से ऐसा लग रहा हैं कि कांग्रेस शिवसेना के साथ सरकार बनाने में देरी कर रही हैं बल्कि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत हैं। सूत्रों के अनुसार महाराष्ट्र में शरद पवार रोटेशनल सीएम चाहते हैं, इसीलिए उनकी तरफ से देरी हो रही है। यानी शरद पवार भी मुख्यमंत्री पद 50-50 फॉर्मूला चाहते हैं। वहीं शिवसेना पूरे पांच सालों तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का सपना देख रही है। ऐसे में शिवसेना का मुख्यमंत्री पद के साथ 50-50 का फार्मूला गले की फांस बनता नजर आ रहा हैं।
कांग्रेस ने कहा वह नहीं कर रही देर
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार सोनिया गांधी नहीं एनसीपी प्रमुख शरद पवार स्वयं सरकार गठन पर देरी कर रहे हैं। सोमवार शाम सोनिया गांधी को फोन कॉल पर शरद पवार ने कहा था कि उन्हें उद्धव ठाकरे की तरफ से कोई ठोस फॉर्मूला नहीं मिला है। वहीं मंगलवार सुबह शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने कहा कि एनसीपी सोमवार को पूरा दिन कांग्रेस के समर्थन पत्र का इंतजार करती रही। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हमारी तरफ से कोई देरी नहीं हुई है।
अजित पवार के इस बयान के बाद ही कांग्रेस ने मीडिया को यह बयान दिया कि कांग्रेस का मानना है कि शरद पवार रोटेशनल सीएम चाहते हैं, इसीलिए उनकी तरफ से देरी हो रही है। यानी शरद पवार मुख्यमंत्री पद 50-50 फॉर्मूला चाहते हैं। हालांकि शरद पवार की ओर से ऐसा कोई अधिकारिक बयान अभी तक जारी नहीं किया गया हैं।
50-50 का फार्मूला शिवसेना के गले की फांस बना
बता दें अक्टूबर महीने हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार बननी तय थी लेकिन शिवसेना चाहती है कि आधे समय तक यानी ढाई साल ( 50-50 फॉर्मूला) तक उनका मुख्यमंत्री बने, जबकि भाजपा को शिवसेना की ये मांग मंजूर नहीं थी। मुख्यमंत्री पद के लालच में शिवसेना ने भाजपा से तीस साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया। इसके बाद शिवसेना अपनी विरोधी पार्टी एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा करने लगी। चूंकि शिवसेना ने 56 और एनसीपी ने 54 सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस को महज 44 सीटें मिली हैं। इसलिए शिवसेना स्वयं को पूरे पांच वर्षों तक मुख्यमंत्री पद संभालने का उचित दावेदार मानती हैं।
शरद पवार के बयान ने बढ़ायी शिवसेना की मुसीबत
दरअसल, सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद एनसीपी चीफ शरद पवार ने शिवसेना के साथ किसी मिनिमम कॉमन प्रोग्राम पर सहमति से ही इनकार कर दिया था। यही नहीं, उन्होंने सरकार गठन को लेकर शिवसेना को किसी तरह का भरोसा दिए जाने के सवाल पर भी चुप्पी साध ली थी।बाद में शरद पवार ने ट्वीट कर कहा, 'नई दिल्ली में आज कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधीजी से भेंट कर महाराष्ट्र की राजनीतिक परिस्थितियों के बारे में चर्चा की। आनेवाले समय में महाराष्ट्र की राजनितिक गतीविधियों पर हमारी नजर रहेगी। महागठबंधन के मित्र पक्षों को विश्वास में लेकर हम निर्णय करेंगे।'
अब तक दो मुख्यमंत्री ही पूरा कर पाए कार्यकाल
कुल मिलाकर एक बार फिर सारा मामला मुख्यमंत्री के पद पर आकर अटका हुआ है। वैसे महाराष्ट्र की राजनीति में मुख्यमंत्री के पद को लेकर जैसी उठा-पटक देखने को मिल रही है, ये महाराष्ट्र का चरित्र है। अब अगर इतिहास को देखें तो एक बात तो साफ हो जाती है कि मुख्यमंत्री के पद को लेकर महाराष्ट्र में हमेशा से ही विवाद होता रहा है।
तमाम कोशिशों के बाद अगर कोई मुख्यमंत्री बना थी, तो वह ज्यादा समय तक टिक नहीं सका। महाराष्ट्र की राजनीति में अब तक सिर्फ दो मुख्यमंत्री हुए हैं, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया है। पहले वसंतराव नाइक और दूसरे हैं देवेंद्र फडणवीस। महाराष्ट्र में अधिकतर समय कांग्रेस की सत्ता रही है। कभी 50-50 फॉर्मूले के चलते, तो कभी नाकामी की वजह से या फिर कुछ बार केंद्र में बुला लिया जाने के चलते महाराष्ट्र में एक ही कार्यकाल में दो या दो से अधिक मुख्यमंत्री रहे।
1999 में 11 दिन लग गए थे सरकार बनाने में
1999 में शरद पवार की एनसीपी नई-नई पार्टी बनी थी। एनसीपी और कांग्रेस ने वो चुनाव अलग-अलग लड़ा था। वहीं दूसरी ओर शिवसेना-भाजपा पुनर्चुनाव के लिए वोट मांग रहे थे। 7 अक्टूबर परिणाम आए जिसमें एनसीपी को 58 सीटें कांग्रेस को 75 सीटें और भाजपा-शिवसेना के गठबंदन को 125 सीटें मिलीं, जिसमें 69 शिवसेना ने और 56 भाजपा ने जीती।
तत्कालीन गवर्नर पीसी एलेक्जेंडर ने पहले भाजपा-शिवसेना के गठबंधन को बुलाया और सरकार बनाने की संभावनाओं पर बात की, लेकिन बहुमत ना होने की वजह से वह सरकार नहीं बना सकी इसके बाद कांग्रेस और एनसीपी को साथ लाने की कोशिशें शुरू हुईं। 18 अक्टूबर को कांग्रेस ने एनसीपी और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई और विलासराव देशमुख ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. सरकार बनाने में 11 दिन लग गए।
2004 में सरकार बनाने में 16 दिन लगे
2004 में भी 2019 की तरह ही दो गठबंधनों ने चुनाव लड़ा था। 16 अक्टूबर को नतीजे आ गए थे. कांग्रेस और एनसीपी ने 140 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा-शिवसेना के खाते में 126 सीटें आईं। वैसे तो कांग्रेस-एनसीपी के पास उस समय भी सरकार बनाने के लिए कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन था, लेकिन एक दिक्कत थी।
एनसीपी ने 71 सीटें जीतीं और कांग्रेस ने 69। इस तरह एनसीपी ने मुख्यमंत्री पद की मांग कर ली, क्योंकि ये सामान्य सी बात थी कि जिसके पास अधिक सीटें हैं वही मुख्यमंत्री पद लेगा। आखिरकार 16 दिनों के संघर्ष के बाद कांग्रेस और एनसीपी में समझौता हो गया और विलासराव देशमुख ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। दोनों के बीच जो फॉर्मूला तय हुआ, उसके तहत बंटवारे में काफी समय लगा और 13 दिनों तक कैबिनेट नहीं बन सकी। गर्वनर मोहम्मद फैजल ने कांग्रेस और एनसीपी को अपने मतभेदों से निपटने का समय दिया और इंतजार किया।
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