महाराष्ट्र संकट: कैसे लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन, क्या कहता है संविधान ? जानिए
नई दिल्ली- महाराष्ट्र राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रहा है। प्रदेश के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी संवैधानिक प्रावधानों पर विचार करने के लिए राज्य के महाधिवक्ता की भी राय ले रहे हैं। ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि महाराष्ट्र में जो सियासी हालत पैदा हुए हैं, उसमें राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर संविधान में क्या प्रावधान किया गया है? अगर एक बार ये लागू हो जाता है तो क्या इसे बीच में खत्म भी किया जा सकता है? राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य विधानसभा का क्या रोल होगा, जिसके लिए 288 विधायक अभी-अभी चुने गए हैं? अगर बीच में किसी पार्टी ने बहुमत लायक विधायकों को समर्थन जुटा लिया तब क्या होगा?
राष्ट्रपति शासन क्या होता है?
जब देश के किसी राज्य में संवैधानिक मशीनरी ठप पड़ जाती है या कोई भी निर्वाचित दल सरकार चलाने लायक बहुमत जुटाने में सक्षम नहीं हो पाता तो केद्र सरकार संविधान के आर्टिकल-356 का इस्तेमाल कर सकती है, जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में राष्ट्रपति शासन कहते हैं। जिस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, वह सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ जाता है और वहां गवर्नर राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर राज्य सरकार की जिम्मेदारियों को पूरा करता है। जैसे ही राष्ट्रपति शासन लागू होता है और संबंधित राज्य में चुनी हुई सरकार मौजूद भी होती है (विधानसभा का कार्यकाल बाकी होने के बावजूद) तो वह विघटित हो जाती है और वहां का गवर्नर मुख्यमंत्री के कार्यकारी जिम्मेदारियों को निभाना शुरू कर देता है। अभी तक देश में करीब 125 बार संविधान के इस प्रावधान का इस्तेमाल किया जा चुका है। राजनीतिक रूप से इस धारा की आलोचना भी खूब हुई है कि इसका केंद्र सरकारों ने कई बार अपने सियासी फायदे के लिए राजनीतिक इस्तेमाल किया है।
राष्ट्रपति शासन कितने दिनों तक लागू रह सकता है?
एक बार राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद उसपर संसद के दोनों सदनों से मुहर लगवाना जरूरी होता है। अगर दोनों सदनों से राष्ट्रपति शासन को मंजूरी मिल जाती है तो यह एक बार में 6 महीने तक लागू रह सकता है। हालांकि, विशेष परिस्थितियों में इसकी मियाद बढ़ायी भी जा सकती है, लेकिन वह किसी भी सूरत में तीन वर्षों से ज्यादा नहीं हो सकता है। इस दौरान हर 6 महीने पर इसे दोनों सदनों से पास करवाना आवश्यक होता है। संविधान के जानकार के मुताबिक ऐसा तभी हो सकता है, जब एक साल तक राष्ट्रपति शासन लागू रहने के बाद चुनाव आयोग यह कह दे कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने में सक्षम नहीं है।
महाराष्ट्र मामले में क्या होगा?
महाराष्ट्र में अगर शुक्रवार यानि 8 नवंबर तक किसी भी गठबंधन की सरकार नहीं बनी तो राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को संविधान के आर्टिकल-356 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकते हैं। ऐसा इसलिए है कि राज्य में नई सरकार नहीं बन पाने के चलते नई विधानसभा का गठन अभी नहीं हो पाया है और मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 9 तारीख को खत्म हो रहा है। इसके साथ ही मौजूदा देवेंद्र फडणवीस सरकार की वर्तमान कार्यकाल भी खत्म हो जाएगा। इन परिस्थितियों में राष्ट्रपति केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश पर राज्यपाल की अनुशंसा को मंजूर कर सकते हैं और विधानसभा को निलंबित स्थिति में रख सकते हैं। हालांकि, 6 महीने के बीच में जब कभी भी राज्य में स्थितियां सामान्य हो जाएंगी और कोई भी दल सरकार बनाने लायक विधायकों का समर्थन दिखाकर राज्यपाल को संतुष्ट कर देगा तो राष्ट्रपति केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश पर राष्ट्रपति शासन बीच में ही खत्म कर सकते हैं। इससे पहले 2014 में भी महाराष्ट्र में कुछ दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। तब विधानसभा चुनावों से कुछ दिनों पहले ही एनसीपी ने कांग्रेस की गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।
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