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कोर्ट का अहम फैसला, कहा- सिर्फ 'जिहाद' शब्द के इस्तेमाल से किसी को आतंकी नहीं ठहरा सकते हैं

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मुंबई। महाराष्ट्र की एक अदालत ने बुधवार को आतंक के आरोपियों को बरी करते हुए अपने फैसले में कहा है कि सिर्फ 'जिहाद' शब्द का इस्तेमाल के कारण किसी व्यक्ति को आतंकवादी नहीं कहा जा सकता है। अकोला की अदालत के स्पेशल जज एएस जाधव ने ये टिप्पणी गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (UAPA), शस्त्र अधिनियम और बॉम्बे पुलिस एक्ट के तहत तीन आरोपियों के खिलाफ एक मामले में की।

Maharashtra court says, A person cannot be branded as a terrorist merely for using the word jihad

बता दें कि, अकोला जिले के पुसाद इलाके में 25 सितंबर 2015 को बकरीद के मौके पर एक मस्जिद के बाहर पुलिसकर्मियों पर हुए हमले में अब्दुल रजाक (24), शोएब खान (24) और सलीम मलिक (26) को गिरफ्तार किया गया था। इन तीनों पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत कई मामले दर्ज किए गए थे। इस मामले में पब्लिक प्रोसिक्यूटर ने आरोप लगाए थे कि, रजाक मस्जिद पहुंचा, एक चाकू निकाला और उसने ड्यूटी पर मौजूद दो पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया। उसने हमले से पहले कहा था कि बीफ पर पाबंदी के कारण वह पुलिसकर्मियों को मार डालेगा।

वहीं इस मामले में एटीएस ने दावा किया था कि, ये लोग मुस्लिम युवाओं को आतंकी संगठनों में शामिल होने के लिए प्रभावित करने के आरोपी थे। इस आरोप पर जज जाधव ने कहा कि, ऐसा प्रतीत होता है कि आरोपी रजाक ने गो-हत्या पर पाबंदी को लेकर हिंसा के जरिए सरकार और कुछ हिंदू संगठनों के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया था। बेशक उसने 'जिहाद' जैसे शब्द का इस्तेमाल होगा, लेकिन इस मतलब यह नहीं कि महज 'जिहाद' शब्द का इस्तेमाल करने के कारण उसे आतंकवादी करार देना चाहिए।

उन्होंने अपने फैसले में कहा कि, 'जिहाद' अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ 'संघर्ष करना है'...इसलिए केवल 'जिहाद' शब्द का इस्तेमाल के कारण किसी को आतंकवादी ठहरा देना गलत है। कोर्ट ने तीनों आरोपियों को पुलिसकर्मियों को चोट पहुंचाने को लेकर रजाक को दोषी ठहराते हुए तीन साल कैद की सजा सुनाई गई है। चूंकि, वह 25 सितंबर 2015 से जेल में था और कैद में 3 साल गुजार चुका है इसलिए अदालत ने उसे रिहा कर दिया।

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English summary
Maharashtra court says, A person cannot be branded as a terrorist merely for using the word jihad
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