मोदी और ठाकरे की निजी मुलाकात, क्या महाराष्ट्र में समीकरण बदलेगा?
इस हफ़्ते दिल्ली में दोनों नेताओं के बीच आधिकारिक बैठक तो हुई है, मगर दोनों नेता अलग से भी मिले. उद्धव ने 10 मिनट माँगे थे मगर बताया जा रहा है कि बातचीत लगभग आधे घंटे चली.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने उप मुख्यमंत्री अजीत पवार और पीडब्ल्यूडी मंत्री अशोक चव्हाण के साथ इस हफ़्ते मंगलवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की.
सुप्रीम कोर्ट की ओर से महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठा समुदाय को दिए गए आरक्षण को रद्द करने के बाद, सीएम ठाकरे ने कहा था कि वह जल्द ही प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात करेंगे. इस प्रकार, एक तरह से कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री के साथ उनकी मुलाक़ात बिल्कुल भी हैरान करने वाली नहीं थी.
लेकिन 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली त्रिपक्षीय सरकार की भाजपा की तीखी आलोचना को देखते हुए, कोरोना काल के दौरान मोदी के साथ उनकी मुलाक़ात का राजनीतिक महत्व भी दिखता है.
मुलाक़ात को लेकर मुंबई और दिल्ली में गंभीर राजनीतिक चर्चा हुई. आधिकारिक बैठक के अलावा, दोनों नेताओं के बीच वन-टू-वन व्यक्तिगत बैठक भी हुई, जो कथित तौर पर लगभग आधे घंटे तक चली.
ठाकरे ने इस बात की पुष्टि भी की कि उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ व्यक्तिगत मुलाक़ात भी की है. दिल्ली में जब एक पत्रकार ने उनसे बार-बार पूछा तो उन्होंने कहा, "हालांकि हम एक राजनीतिक गठबंधन के रूप में साथ नहीं हैं, लेकिन हमारा रिश्ता नहीं टूटा है. मैं वहां नवाज़ शरीफ़ से मिलने तो गया नहीं था. इसलिए, मुझे नहीं लगता कि प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत रूप से मिलने में कुछ भी ग़लत है."
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दोनों ने सीधे तौर पर कभी एक-दूसरे की आलोचना नहीं की
महाराष्ट्र में शिवसेना की अगुआई वाली महा विकास अघाड़ी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही भाजपा ने शिवसेना को घेरने का एक भी मौक़ा नहीं गंवाया है.
बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने लगातार शिवसेना को राज्य विधानसभा के अंदर या उसके बाहर लताड़ा है. बीजेपी ने उद्धव ठाकरे के अलावा आदित्य ठाकरे, अनिल परब, संजय राउत और प्रताप सरनाइक जैसे नेताओं पर भी निशाना साधा है.
फडणवीस, चंद्रकांत पाटिल, आशीष शेलार, किरीट सोमैया जैसे राज्य के नेताओं के साथ, केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई राष्ट्रीय स्तर के भाजपा नेताओं ने भी ठाकरे सरकार पर हमला बोला है.
लेकिन, दिलचस्प बात यह है कि उद्धव ठाकरे और नरेंद्र मोदी ने कभी सीधे तौर पर एक-दूसरे की आलोचना नहीं की है.
उद्धव ठाकरे ने अमित शाह, देवेंद्र फडणवीस और अन्य भाजपा नेताओं पर पलटवार किया है, केंद्र सरकार की भी आलोचना की है, लेकिन कभी मोदी को कुछ नहीं कहा है.
संजय राउत मोदी-शाह की राजनीति के बारे में आक्रामक तौर से बोलते रहे हैं और शिवसेना के मुखपत्र सामना में उसी तीखे अंदाज़ में लिखते भी रहे हैं. लेकिन, उद्धव ठाकरे ने इससे परहेज़ किया है.
हालाँकि, पिछले दिनों चक्रवात तौक्ते से हुई तबाही के बाद उन्होंने नरेंद्र मोदी की गुजरात यात्रा पर बिना नाम लिए कहा था - 'मैं हवाई सर्वेक्षण नहीं करता, मैं ज़मीन पर खड़ा हूं'.
लेकिन, शिवसेना और बीजेपी के बीच होने वाली तीखी आलोचना के दौरान भी मोदी पर कभी हमला नहीं किया. महामारी के ख़िलाफ़ उपायों के बारे में बोलते हुए उन्होंने सम्मानपूर्वक मोदी के नाम का उल्लेख किया था.
यहां तक कि जब ठाकरे ने केंद्र सरकार की आलोचना की तो उन्होंने मोदी के बारे में बात करते हुए अपना लहज़ा नर्म रखा. अन्य ग़ैर-भाजपा मुख्यमंत्री सीधे मोदी की आलोचना करते हैं.
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महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे भी कई बार केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ आक्रामक हो जाते हैं, लेकिन उद्धव ठाकरे ने हमेशा मोदी के बारे में नरमी से बात की है. जब भी केंद्र सरकार ने उनके किसी सुझाव या मांग पर सकारात्मक कार्रवाई की, ठाकरे ने सार्वजनिक तौर पर मोदी का धन्यवाद किया है.
2019 के चुनाव के बाद मोदी को छोड़कर बीजेपी के लगभग सारे नेताओं ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ने को लेकर शिवसेना पर हमला बोला है. लेकिन मोदी ने इस बारे में कभी बात नहीं की.
उद्धव ठाकरे, शरद पवार, देवेंद्र फडणवीस, अमित शाह ने साक्षात्कार या सार्वजनिक भाषणों के माध्यम से अपना पक्ष रखा है. लेकिन, मोदी ने उस घटनाक्रम पर कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. केंद्र और राज्य के रिश्ते तनावपूर्ण हैं, लेकिन इसका मोदी और ठाकरे के रिश्तों कोई असर होता नहीं दिख रहा है.
कोरोना-काल के दौरान दोनों ने या तो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के बीच वर्चुअल मीटिंग के दौरान या फिर टेलीफ़ोन के ज़रिए एक-दूसरे से संपर्क किया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने सीधे तौर पर महाराष्ट्र सरकार की आलोचना की, लेकिन मोदी ने कभी विशेष रूप से राज्य सरकार के ख़िलाफ़ बात नहीं की.
बल्कि मुंबई में कोरोना मरीजों की संख्या कम होने पर उन्होंने ठाकरे सरकार की तारीफ़ की.
यह भी कहा जाता है कि जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने ऑक्सीजन सिलेंडर और रेमडेसिविर की मांग की तो केंद्र सरकार ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. इसलिए, मोदी और ठाकरे के बीच संबंध कभी तनावपूर्ण नहीं दिखे, हालांकि तब भी जब केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच तलवारें खिंची थीं. ठाकरे और मोदी राजनीतिक मामलों में भी एक-दूसरे पर हमला करने से बचते रहे.
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क्या उद्धव ठाकरे सभी विकल्प खुले रखरहे हैं?
जब केंद्र और महाराष्ट्र सरकार के बीच दरार बढ़ती जा रही है, तो क्या उद्धव ठाकरे मोदी के साथ संबंधों के मामले में संयमित रुख़ अपना कर सभी विकल्प खुले रखने की कोशिश कर रहे हैं?
फ़िलहाल बीजेपी में मोदी के पास सर्वोच्च नेतृत्व का पद है. महत्वपूर्ण मामलों में अंतिम निर्णय वह लेते हैं और वह स्वयं उनकी घोषणा भी करते हैं.
राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है. तो, क्या ठाकरे मोदी के साथ व्यक्तिगत संबंधों की रक्षा कर रहे हैं, अगर उन्हें फिर से भाजपा से हाथ मिलाने की ज़रूरत पड़ती है तो कोई रास्ता खुला है?
शिवसेना को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. सबसे बड़ी चुनौती केंद्रीय जांच एजेंसियों को लेकर है.
सुशांत सिंह राजपूत, सचिन वाझे जैसे तमाम मामले, जो राज्य सरकार के लिए मुश्किल साबित हो सकते हैं, वे सभी केंद्रीय जांच एजेंसियों के पास हैं. बल्कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के प्रतिरोध की अनदेखी की है और इन मामलों को केंद्रीय एजेंसियों को दे दिया है.
अनिल देशमुख को राज्य के गृह मंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा और उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है. प्रताप सरनाइक को ईडी की जांच का सामना करना पड़ रहा है. भाजपा मांग कर रही है कि अनिल परब के खिलाफ़ मामला दर्ज किया जाए.
इस पृष्ठभूमि में, क्या उद्धव ठाकरे जानबूझकर यह संदेश देना चाहते हैं कि उनके प्रधानमंत्री के साथ अच्छे व्यक्तिगत संबंध हैं?
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ख़बरें आती रही हैं कि महा विकास अघाड़ी में सब ठीक नहीं है. त्रिपक्षीय सरकार के बीच एक निश्चित तनाव है. जैसे ही शिवसेना और एनसीपी में कोई संघर्ष होता है, कांग्रेस आक्रामक हो जाती है.
शिवसेना को डर है कि एनसीपी कभी भी बीजेपी के साथ जा सकती है. अहमदाबाद में शरद पवार की अमित शाह के साथ कथित गुप्त मुलाक़ात, पवार की फडणवीस के साथ उनके आवास पर मुलाक़ात, और ऐसे कई घटनाक्रम शिवसेना के लोगों के मन में संदेह पैदा करते हैं.
शिवसेना को यह मालूम है कि एनसीपी में एक मज़बूत गुट ऐसा है जिसे लगता है कि पार्टी को बीजेपी के साथ गठबंधन करना चाहिए. इसलिए, शिवसेना ज़रूरत पड़ने पर भाजपा के क़रीब आने के लिए तैयार है, और यही एक कारण हो सकता है कि ठाकरे मोदी के साथ संबंधों की रक्षा कर रहे हैं.
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मोदी इस रिश्ते की रक्षा क्यों कर रहे हैं?
दूसरी ओर, मोदी भी उद्धव ठाकरे से निजी तौर पर मिलने के लिए तैयार हो गए. तो क्या बीजेपी-शिवसेना गठबंधन टूटने के बाद भी मोदी इस रिश्ते को बचा रहे हैं?
सभी बड़े राजनीतिक नेता एक दूसरे के साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों को राजनीतिक दायरे से ऊपर रखते हैं और कभी-कभी राजनीति में भी उनका इस्तेमाल करते हैं.
शरद पवार ने कांग्रेस छोड़ दी, लेकिन उन्होंने सोनिया गांधी के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे और उन्होंने केंद्र और राज्य स्तर पर भी कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. 2014 में बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन टूट गया, लेकिन वे महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए साथ आए. तो क्या मोदी और ठाकरे एक ही इरादे से अपने निजी संबंधों की रक्षा कर रहे हैं?
महाराष्ट्र में बीजेपी के सबसे अधिक विधायक हैं, लेकिन पार्टी पिछले डेढ़ साल से सत्ता से बाहर है. वे सत्ता पर क़ब्जा करने के लिए कोई क़दम नहीं उठा पाए हैं. उन्हें बहुमत तक पहुंचने का अभी तक कोई रास्ता नहीं मिला है. इसलिए, भाजपा को अब कुछ नए राजनीतिक विकल्प तलाशने होंगे, और यह पूछा जा रहा है कि क्या मोदी ठाकरे के साथ अच्छे व्यक्तिगत संबंध बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं?
एनडीए के कई सहयोगी अब अलग हो चुके हैं. कहा जाता है कि कोरोना की दूसरी लहर के भयावह परिणामों ने मोदी और भाजपा सरकार की छवि ख़राब की है. ऐसी भी चर्चा है कि आरएसएस ने भी आत्मनिरीक्षण करना शुरू कर दिया है.
ऐसे समय में बीजेपी को शायद कुछ दोस्ती बरक़रार रखने की ज़रूरत महसूस हो रही होगी. बंगाल में, ममता बनर्जी ने भाजपा को हराया और बंगाल और केंद्र के बीच लड़ाई पूरी तरह से दूसरे स्तर पर चली गई. ममता बनर्जी, बीजेपी पर संघवाद के ख़िलाफ़ होने का आरोप लगाकर हर दिन केंद्र सरकार की आलोचना करती हैं. इस परिप्रेक्ष्य में मोदी एक निजी मुलाक़ात में उद्धव ठाकरे से बातचीत कर क्या संकेत देने की कोशिश कर रहे हैं?
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'यह राजनीतिक समझदारी है'
लंबे वक्त से प्रदेश की राजनीतिक हलचल पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार संदीप प्रधान का मानना है कि यह मुलाक़ात उद्धव ठाकरे और नरेंद्र मोदी दोनों की राजनीतिक समझदारी और ज़रूरत की ओर इशारा करती है.
वह कहते हैं, "एक बात तय है कि बीजेपी में मोदी से ऊपर कोई नहीं है. मोदी जो फ़ैसला करते हैं उसका पालन शाह-फडणवीस भी करते हैं. इसलिए उद्धव ठाकरे के उनसे अच्छे संबंध हैं. अगर बीच में टूटे वादे का विवादास्पद मुद्दा आता है, तो वे कह सकते हैं कि अमित शाह ने मातोश्री में वादा किया था और उन्होंने ही इसे तोड़ा, इसलिए इसका मोदी से कोई लेना-देना नहीं है."
"साथ ही, उद्धव ठाकरे को पता है कि ग़ैर-भाजपा सरकारों द्वारा शासित राज्यों के साथ केंद्रीय जांच एजेंसियां किस तरह से व्यवहार कर रही हैं. महाराष्ट्र ने सुशांत केस और वाझे केस भी देखा है. बीजेपी के आक्रामक रुख़ को देखते हुए कहा जा सकता है कि वे उद्धव ठाकरे तक भी पहुंच सकते हैं. ज़रूरत पड़ने पर मोदी ही इसे रोक सकते हैं. इसलिए, उनके साथ अच्छे संबंध बनाए रखना वास्तव में एक राजनीतिक समझदारी है."
वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि मोदी को नए दोस्तों की ज़रूरत है क्योंकि कोरोना महामारी से निपटने हर तरफ़ उनकी आलोचना हो रही है. इसलिए इस बात की संभावना कम ही है कि भाजपा यूपी में आगामी चुनावों और फिर लोकसभा चुनावों में भी अपनी सफलता को दोहरा पाएगी. ऐसे समय में उन्हें नए दोस्तों की ज़रूरत होगी. "
"महाराष्ट्र में, आरएसएस एनसीपी के साथ गठबंधन का विरोध करेगी. शिवसेना ही उनके लिए सही विकल्प है. इसलिए, मोदी संकेत दे रहे होंगे कि वही उद्धव ठाकरे और फडणवीस के बीच मध्यस्थता कर सकते हैं. इसलिए यह व्यक्तिगत मुलाक़ात महत्वपूर्ण है."
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'बालासाहेब और मोदी के रिश्ते की कोई तुलना नहीं'
हालाँकि, राजनीतिक पत्रकार अतुल कुलकर्णी का कहना है कि उद्धव ठाकरे और नरेंद्र मोदी के बीच संबंध केवल नाममात्र के हैं और इसकी तुलना बालासाहेब ठाकरे के साथ मोदी के संबंधों से नहीं की जा सकती है.
वह कहते हैं, "मोदी और उद्धव ठाकरे ने इन संबंधों को बनाने के लिए कुछ भी नहीं किया है, इसलिए संबंध वैसे ही जारी रहेंगे, मगर कोई महत्वपूर्ण परिणाम नहीं निकलेंगे."
उन्होंने कहा, "इस बैठक से राजनीतिक समीकरण नहीं बदलेंगे. अगर उद्धव ठाकरे अभी बीजेपी के साथ गठबंधन करते हैं, तो उन्हें नुक़सान होगा. वहीं दूसरी ओर देश में बदले राजनीतिक माहौल के बाद शरद पवार विपक्षी दलों तक भी पहुंच रहे हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे बीजेपी के क़रीब नहीं जाएंगे, यह बस एक सद्भावना बैठक थी."
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