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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने BJP के सामने क्यों डाले हथियार ? जानिए

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नई दिल्ली- महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के बीच सीटों का जो फॉर्मूला निकला है उसके मुताबिक भाजपा सहयोगी शिवसेना के बड़े भाई की भूमिका में है और राज्य की राजनीति में ड्राइविंग सीट पर भी। पार्टी के खाते में 164 सीटें दी गई हैं, जबकि शिवसेना को महज 124 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है। अब बड़ा सवाल है कि बराबर से कम नहीं मानने पर अड़ी शिवसेना ने ये डील मंजूर क्यों की? जबकि, कुछ दिन पहले तक पार्टी नेता संजय राउत सीटों के ऐसे किसी बंटवारे को भारत-पाकिस्तान के विभाजन से भी खराब बता रहे थे। दरअसल, इसके पीछे कई ऐसी वजहें हैं, जिसको देखने के बाद शिवसेना ने जमीनी सच्चाई को स्वीकार लेने में ही भलाई समझी है। बयानबाजी भले ही कुछ भी की जा रही हो, लेकिन शिवसेना लीडरशिप को इस बात का पूरा अंदाजा है कि मौजूदा तारीख में प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की ताकत कई गुना बढ़ चुकी है। आइए समझते हैं कि आखिर वे कौन से कारण रहे हैं, जिसकी वजह से शिवसेना नेतृत्व को पार्टी कार्यकर्ताओं के दबाव को भी नकारना पड़ा है? नई दिल्ली- महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के बीच सीटों का जो फॉर्मूला निकला है उसके मुताबिक भाजपा सहयोगी शिवसेना के बड़े भाई की भूमिका में है और राज्य की राजनीति में ड्राइविंग सीट पर भी। पार्टी के खाते में 164 सीटें दी गई हैं, जबकि शिवसेना को महज 124 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है। अब बड़ा सवाल है कि बराबर से कम नहीं मानने पर अड़ी शिवसेना ने ये डील मंजूर क्यों की? जबकि, कुछ दिन पहले तक पार्टी नेता संजय राउत सीटों के ऐसे किसी बंटवारे को भारत-पाकिस्तान के विभाजन से भी खराब बता रहे थे। दरअसल, इसके पीछे कई ऐसी वजहें हैं, जिसको देखने के बाद शिवसेना ने जमीनी सच्चाई को स्वीकार लेने में ही भलाई समझी है। बयानबाजी भले ही कुछ भी की जा रही हो, लेकिन शिवसेना लीडरशिप को इस बात का पूरा अंदाजा है कि मौजूदा तारीख में प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की ताकत कई गुना बढ़ चुकी है। आइए समझते हैं कि आखिर वे कौन से कारण रहे हैं, जिसकी वजह से शिवसेना नेतृत्व को पार्टी कार्यकर्ताओं के दबाव को भी नकारना पड़ा है?

महाराष्ट्र में भाजपा का बढ़ा जनाधार

महाराष्ट्र में भाजपा का बढ़ा जनाधार

शिवसेना नेतृत्व को इस बात का इल्म है कि बीजेपी अब सिर्फ शहरी पार्टी नहीं रह गई है। शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी पार्टी के जनाधार में काफी मजबूती आई है। उद्धव ठाकरे ये बात नहीं भूले हैं कि 2014 में अकेले चुनाव लड़ने का नतीजा क्या हुआ था। निगम के चुनावों में भी बीजेपी अकेले लड़ने पर उसपर भारी ही पड़ी थी। मसलन, 2014 में शिवसेना 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में 282 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और सिर्फ 63 सीटें ही जीत पाई थी। लगभग सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद उसे वोट सिर्फ 19.80 फीसदी ही मिले थे। जबकि, केवल 260 सीटों पर लड़कर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और उसके खाते में 122 सीट आए थे। भाजपा का वोट प्रतिशत भी शिवसेना से कहीं ज्यादा यानि 31.15 प्रतिशत रहा था।

लोकसभा चुनावों का असर

लोकसभा चुनावों का असर

शिवसेना के फैसले में लोकसभा चुनावों का भी गहरा असर रहा है। राज्य की 48 सीटों पर जब दोनों पार्टियां साथ-साथ लड़ीं तो शिवसेना को वोट भी 23.29 फीसदी मिले और वह 18 सांसद दिल्ली भेजने में भी कामयाब रही। जबकि, बीजेपी के 23 सांसद महाराष्ट्र से जीतकर संसद पहुंचे और उसने सबसे ज्यादा 27.59 वोट हासिल किए। बीजेपी के साथ लड़ने और अलग-अलग चुनाव लड़ने का फर्क उद्धव ने करीब से महसूस किया है। इसलिए, उन्होंने अपने हिसाब से शायद अनिश्चित की ओर जाने से ज्यादा निश्चित के साथ जाना ही ठीक समझा है।

एकजुट विपक्ष से मुकाबला

एकजुट विपक्ष से मुकाबला

2014 में जब शिवसेना ने भाजपा से अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया था तो उसके पीछे बड़ी वजह ये भी थी कि तब महाराष्ट्र में विपक्ष बिखरा हुआ था। एनसीपी और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। लेकिन, इसबार दोनों पार्टियां तालमेल के साथ चुनाव मैदान में हैं। शिवसेना का सोचना स्वाभाविक है कि जब दोनों विपक्षी दलों के अलग-अलग लड़ने पर भी वह भाजपा से मुकाबला नहीं कर पायी थी तो अकेले चुनाव लड़ने में जोखिम के अलावा कुछ भी नहीं है। शिवसेना के सामने लोकसभा चुनाव का भी उदाहरण है, जब विपक्ष के मजबूत गठबंधन के बावजूद भाजपा की अगुवाई वाला उसका गठबंध पूरी तरह सफल साबित हुआ था।

परिवार की प्रतिष्ठा का सवाल

परिवार की प्रतिष्ठा का सवाल

ऐसा पहली बार हो रहा है जब महाराष्ट्र का ठाकरे परिवार भी चुनाव मैदान में किस्मत आजमाने उतरा है। पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे मुंबई की वर्ली सीट से चुनाव मैदान में हैं। ऐसे में उद्धव को इस बात का पूरा अहसास है कि चुनाव में प्रदर्शन खराब हुआ तो प्रदेश में 6 दशकों से कायम बाल ठाकरे परिवार के दबदबे को धक्का लगेगा। उद्धव को यह भी दिखाना है कि उनका बेटा अब इतना बड़ा हो चुका है कि उसके दम पर पार्टी चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। लेकिन, आज की तारीख में उनके लिए यह बीजेपी के सहारे के बिना नामुमकिन सा है।

बाल ठाकरे से किए 'वादे' का सवाल

बाल ठाकरे से किए 'वादे' का सवाल

उद्धव ठाकरे हाल ही में कह चुके हैं कि उन्होंने अपने पिता बाल ठाकरे से वादा किया था कि एक दिन शिवसैनिक मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जरूर पहुंचेगा। इसके लिए पार्टी आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश भी कर रही है। संजय राउत तो कह चुके हैं कि चाहे चंद्रयान-2 फेल हो गया हो, लेकिन ठाकरे परिवार का सूरज (आदित्य) मंत्रालय की छठी मंजिल (सीएम का दफ्तर) तक पहुंच कर रहेगा। यह तभी संभव है, जब वह विधानसभा में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर लाए। शिवसेना के लिए यह अकेले चुनाव लड़कर ला पाना संभव नहीं है। इसलिए वह ज्यादा से ज्यादा स्ट्राइक रेट रखने पर ध्यान दे रही है। इस नीति के तहत पार्टी एक तीर से दो शिकार करना चाहती है, एक तरफ तो कार्यकर्ताओं को छोटे पार्टनर वाली नाराजगी से ऊपर उठाना चाहती है और दूसरा अगर रणनीति कामयाब रही तो चुनाव के बाद सीएम पद के लिए बीजेपी पर दबाव भी बना सकती है।

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English summary
Maharashtra assembly elections: Why Shiv Sena is ready to contest less seats than BJP?
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