महाराष्ट्र चुनाव : क्या राजनीति की आखिरी पारी खेल रहे हैं 79 साल के शरद पवार?
मुंबई। 2019 के चुनावी रण में शरद पवार एक बेबस और लाचार यौद्धा के रूप में नजर आये। 20 साल में पहली बार पार्टी एक बड़े संकट के दौर से गुजरी। वे महाराष्ट्र के दिग्गज नेता हैं लेकिन य़ह भी सच है कि उनकी उम्र अब 79 साल हो चुकी है। वे खुद को भले जवान कहें लेकिन उम्र का असर तो दिखने लगा है। ढलती उम्र, भ्रष्टाचार के आरोपों और मजबूत नेताओं के पलायन ने उन्हें बहुत कमजोर बना दिया। साख खोने की छटपटाहट थी। इस लिए चुनाव प्रचार में पूरा जोर लगाया। पार्टी की नैया पार लगाने के लिए खुद ही भाग-दौड़ की। उम्र को जुठलाने की भी कोशिश की। शुक्रवार को उन्होंने सतारा में बारिश के बीच भाषण देकर ये साबित करना चाहा कि वो आज भी पहले की तरह एनर्जी वाले नेता हैं। लेकिन सच ये है कि अब उनकी जुबान लड़खड़ाने लगी है। पश्चिमी महाराष्ट्र की राजनीति में उनकी पकड़ ढीली हुई है। सतारा के सांसद उदयनराज भोंसले ने उनका साथ छोड़ कर भाजपा से चुनाव लड़ा। उदयनराज छत्रपति शिवाजी के वशंज हैं। इससे शरद पवार को चुनावी नुकसान की आशंका जतायी जा रही है। भाजपा ने मराठा राजनीति में सेंध लगा कर शरद पवार को बैकफुट पर ढकेला है।
मराठा वोटरों पर पवार की पकड़ ढीली
शरद पवार की पार्टी 125 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। मराठा राजनीति, पवार की ताकत का आधार है। पवार के इस आधार को तोड़ने के लिए भाजपा ने खूब जोर आजमाइश की। मराठा वोटरों को अपने पाले में करने के लिए भाजपा ने उदयनराज को शिवाजी की 13वीं पीढ़ी का वंशज बताकर चुनाव प्रचार किया। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण लागू होने के बाद इस समुदाय ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को भरपूर समर्थन दिया था। भाजपा को तब 59 फीसदी मराठा वोट मिले थे। एनसीपी और अन्य दलों के केवल 31 फीसदी ही मराठा वोट मिले थे। हैरानी की बात ये है कि मराठों को आरक्षण देने के बाद भी पिछड़े वर्ग के मतदाता भाजपा-शिवसेना से दूर नहीं हुए हैं। वोटरों के इस रुझान से शरद पवार की स्थिति कमजोर हुई है। मराठों को लुभाने के लिए ही भाजपा ने वीर सावरकर को भारत रत्न देने का मुद्दा उठाया था।
क्या थके हुए नेता हैं पवार
चुनाव प्रचार के दौरान सुशील कुमार शिंदे ने कांग्रेस और एनसीपी को थकी हुई पार्टी बता कर दोनों को आपस में विलय करने का सुझाव दिया था। हालांकि शरद पवार ने 79 की उम्र में भी खुद को ऊर्जावान नेता बताया था। लेकिन शिंदे के इस बयान से कांग्रेस और पवार दोनों को नुकसान होता दिख रहा है। चुनाव के पहले एक-एक कर बड़े नेताओं ने साथ छोड़ा कर उनको हैसियत बता दी। लेकिन यह भी सच है कि महाराष्ट्र में शरद पवार की राजनीतिक सूझबूझ का कोई जवाब नहीं है। उन्होंने कई बार कमजोर होती बाजी को अपने हक में पलटा है। उम्रदराज होने के बाद भी उन्होंने इस चुनाव में जीतोड़ मेहनत की है। सचिन अहीर जैसे अनुभवी नेताओं की गैरमौजूदगी में पार्टी की सारी जिम्मेवारियों को अपने सिर पर उठाया। उन्होंने कमजोर हो रही पार्टी में भरसक जान फूंकने की कोशिश की है। 2014 में पवार की पार्टी को 41 सीटें मिलीं थीं। इस बार इससे कम सीटें आने का अनुमान लगाया जा रहा है।
भ्रष्टाचार के आरोप
जैसे ही विधानसभा चुनाव ऐलान हुआ था उसके तीन बाद यानी 24 सितम्बर को शरद पवार को महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक घोटला का आरोपी बना दिया गया। प्रवर्तन निदेशालय ने जो एफआइआर दर्ज करायी है उसमें शरद पवार के भतीजे अजीत पवार का भी नाम है। ऐन चुनाव के समय ऐसा किये जाने से कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं ने भाजपा पर बदले की राजनीति के आरोप लगाये। लेकिन कोर्ट में जिस तरह से सबूत पेश किये गये उससे शरद पवार की छवि को नुकसान हुआ।