महाराष्ट्र के अमरावती जिले में कुपोषण 46 बच्चों की मौत
मुंबई। महाराष्ट्र के अमरावती जिले में कुपोषण की वजह से 46 बच्चों की मौत का मामला सामने आया है। सभी बच्चों की मौतें मेलघाट में अप्रैल से जुलाई के बीच हुई हैं। अमरावती जिले में लंबे समय से कुपोषण एक बड़ी समस्या है। यहां जन्म के साथ ही बच्चे कुपोषित पैदा होते हैं और 6 साल की उम्र तक उनकी जान को खतरा बना ही रहता है। 6 वर्ष से कम उम्र में बच्चों की मौत मामले यहां लगातार सामने आ रहे हैं।
मेलघाट में महात्मा गांधी आदिवासी अस्पताल के प्रेसिडेंट डॉ. आशीष सतव ने कहा कि कुपोषण से बच्चों को बचाने के लिए नई ट्राइबल हेल्थ पॉलिसी लाने की जरूरत है। इस दिशा में कई जनहित याचिकाएं भी दायर की गई हैं, लेकिन अब तक राज्य सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा सके हैं।
जुलाई में बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा है कि क्या वह राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों और स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक आहार मुहैया करा रही है। न्यायमूर्ति एनएच पाटिल और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ ने इस सप्ताह के शुरू में कई जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए यह सवाल पूछा था। इन जनहित याचिकाओं में अमरावती जिले के मेलघाट समेत अन्य आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण के कारण होने वाली मौतों और बीमारी के बारे में बताया गया था।
महाराष्ट्र सरकार ने 17 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट में एक चार्ट पेश किया, जिसमें कुपोषण खत्म करने के लिए अमरावती जिले के मेलघाट में लगाए गए स्वास्थ्य शिविरों का ब्योरा दिया गया था। चार्ट में यह भी दिखाया गया था कि सरकार बच्चों, नवजात शिशुओं, महिलाओं एवं अन्य को चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने के लिए ऐसे शिविर लगातार लगवा रही है।
महाराष्ट्र सरकार ने कुपोषण की इस समस्या को ध्यान में रखते हुए 2016 में टास्क फोर्स गठित करने का फैसला लिया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने टास्क फोर्स के गठन का ऐलान करते हुए कहा था कि इसमें स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास और चिकत्सा विभाग के मंत्री शामिल होंगे। इन मंत्रालयों के बीच बेहतर तालमेल से कुपोषण पर काबू पाया जा सकता है।
कुपोषण से निपटने के लिए ग्रामीण बाल विकास केंद्र पौष्टिक पुनर्वास केंद्र जैसी योजनाओं का सहारा लिया जा रहा है। इसके अलावा सरकार राज्य के विभिन्न आश्रमों, शालाओं और आदिवासी हॉस्टलों में भोजन की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए एक स्कीम शुरू करने जा रही है। सरकार के स्तर पर यह चल रहा है, लेकिन कुपोषण से बच्चों की मौत के मामले अब भी कम नहीं हो रहे हैं।