बिहार में कमजोर पड़ता महागठबंधन, जदयू में शरद यादव की घर वापसी को लेकर तेज हुईं अटकलें
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 को लेकर हलचल तेज हो गई है और सभी पार्टियों ने कमर कस ली है, लेकिन बिहार में दूसरे नंबर की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के हाथों से बिना लड़े ही चुनाव हारने का खतरा आसन्न है। यह इसलिए कहा जा सकता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को टक्कर देनी वाली महागठबंधन अब जार-जार हो चुका है और सदन में नेता प्रतिपक्ष और महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे तेजस्वी यादव की सहयोगियों पर ढीली पकड़ चुनाव में सत्तारूढ़ एनडी़ए को ऐज दे दिया है।
आरजेडी के प्रमुख यादव वोटों में सेंधमारी में मदद करेगें शरद यादव
लगातार अपने सहयोगियों को लेकर जमींदोज हुई जा रही महागठबंधन पर अब एक और झटका लग सकता है और यह झटका प्रदेश में आरजेडी के प्रमुख यादव वोटों में सेंधमारी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। जी हां, हम बात कर रहे हैं कभी जदयू में रहे शरद यादव, जिनके साथ फिलहाल सीएम नीतीश कुमार की गलबहियां चल रही है। इसकी शुरूआत सीएम नीतीश कुमार के अस्पताल में भर्ती शरद यादव को किए शिष्टाचार फोन कॉल से हुई है, जिसके बाद शरद यादव के घऱवापसी की अटकलें शुरू हो गई हैं, जिससे महागठबंधन खेमे में हलचल बढ़ गई है।
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नीतीश पुराने साथी शरद यादव को JDU से जोड़ने की फिराक में है
माना जा रहा है कि जदूय चीफ नीतीश कुमार के अपने पुराने साथी शरद यादव के साथ तार जोड़ने की फिराक में है। कहा जा रहा है कि जदूय के कई नेता शरद यादव से संपर्क बनाए हुए हैं और उनकी पार्टी में वापसी की कोशिशें कर रहे हैं। जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन ने शरद यादव की पार्टी में वापसी पर कुछ साफ भले नहीं कह रहे हैं, लेकिन इशारों में उन्होंने कहा कि शरद यादव समाजवादी आंदोलन के बड़े नेता हैं और यह सब जानते हैं कि महागठबंधन में उनका दम घुंटता है।
चुनाव पूर्व महागठबंधन से अलग हो चुके हैं हम चीफ जीतनराम मांझी
महागठबंधन से हम चीफ जीतनराम मांझी के अलग होने के बाद अब शरद यादव की घर वापसी हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। इसकी वजह साफ है और महागठबंधन के नेतृत्व को लेकर सभी दलों के बीच जोर आजमाइश है। मौजूदा समय में शरद यादव भले ही महागठबंधन का हिस्सा हैं, लेकिन आरजेडी उन्हें खास तवज्जों नही दे रही है। ऐसे में संभावना बढ़ गई है कि शरद यादव जदयू के पाले में दोबारा लौट सकते हैं, जिन्होंने साल 2018 में राजनीतिक मनमुटाव के चलते जदयू से किनारा कर लिया था। उनके साथ जदयू से अली अनवर और कई बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी।
सहयोगियों दलों और राजद नेताओं के राजद छोड़ने का सिलसिला जारी है
बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन से सहयोगियों को छोड़ने और राजद नेताओं द्वारा पार्टी छोड़कर जदयू जाने के सिलसिले से हैरान-परेशान तेजस्वी यादव को शरद यादव के जदयू में जाने से झटका जरूर लगेगा, क्योंकि इससे मतदान में यादव वोटों के बंटने का खतरा बढ़ गया है, लेकिन नीतीश कुमार ने एक दांव ने एक बार फिर महागठबंधन चित्त होता दिख रहा है। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती शरद यादव का कुशल क्षेम पूछने से शुरू हुई इस कवायद ने बिहार चुनाव में एक और रंग बिखेर दिया है।
नीतीश कुमार की नजर आरजेडी पार्टी के परंपरागत मतदाताओं पर है
दरअसल, जदयू चीफ नीतीश कुमार की नजर आरजेडी पार्टी के परंपरागत मतदाताओं पर है। अभी हाल में आरजेडी के कई नेता में जेडीयू में शामिल हुए हैं, जिसमें यादव और मुस्लिम विधायक शामिल हैं और अगर नीतीश कुमार पार्टी के पुराने नेता शरद यादव को जदूय में वापस लाने में कामयाब हुए तो लालू प्रसाद यादव के परंपरागत वोटर यादवों में सेंधमारी आसानी से कर सकते हैं। हालांकि लालू यादव के जेल जाने के बाद से चुनाव दर चुनाव बिहार में राजद की अपनी परंपरागत वोटरों पर पकड़ ढीली होती गई है।
शरद यादव की घर वापसी से जदयू को चुनाव में बड़ा लाभ मिल सकता है
शरद यादव का बिहार खास कर कोसी क्षेत्र की राजनीति में अच्छा प्रभाव रहा है। विधानसभा चुनाव के पहले शरद को अपने पाले में लाकर जेडीयू लालू प्रसाद यादव के परंपरागत यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में है। अगर जेडीयू में उनकी वापसी होती है तो इसका पार्टी को विधानसभा चुनाव में लाभ मिल सकता है।
अब शरद यादव को तय करना है कि वे वापस आएंगे या नहीं: संजय सिंह
जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा है कि नीतीश कुमार ने शरद यादव को बहुत सम्मान दिया। अब शरद यादव को तय करना है कि वे वापस आएंगे या नहीं। वहीं, शरद की जेडीयू में वापसी की चर्चा को राष्ट्रीय जनता दल और कांगेेस ने निराधर बताया है। आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि शरद के जेडीयू में जाने की बात कयासबाजी है। बकौल मृत्युंजय तिवारी, जहां शरद यादव का अपमान हुआ, वहां वे कैसे जाएंगे?
जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद छोड़ने के बाद शरद यादव ने नई पार्टी बनाई
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटने के बाद शरद यादव ने पार्टी छोड़ दिया था। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक जनता दल के नाम से अपनी पार्टी बनाई। साल 2019 में उन्होंने मधेपुरा से आरजेडी के टिकट से चुनाव लड़ा था और उन्हें जेडीयू के दिनेशचंद्र यादव ने करीब एक लाख वोटों के से अधिक वोटों से पराजित कर दिया था।
शरद यादव के आने से बिहार चुनाव में एनडीए की स्थिति और मजबूत होगी
अटकलों के बीच अगर शरद यादव जदयू में शामिल होते हैं तो यह निश्चित रूप से एनडीए के लिए बेहतर होगा। बीजेपी सांसद रामकृपाल यादव ने कहा कि शरद यादव के आने से एनडीए और मजबूत होगा। हालांकि जेडीयू में एक ऐसा वर्ग भी है जो शरद यादव की पार्टी में वापसी को लेकर ज्यादा खुश नहीं है, लेकिन नीतीश कुमार जानते हैं कि शरद यादव का क्या महत्व है।
लालू यादव के जेल जाने के बाद से बिहार में यादव वोटर बिखरा है
निः संदेह बिहार में लालू यादव के जेल जाने के बाद यादव वोटर अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है और एक नेता के रूप में तेजस्वी यादव पिता की जगह भरने में अभी तक नाकाम साबित हुए हैं। लालू यादव को बिहार में यादव वंश का संस्थापक माना जाता है और बिहार में यादव और मुस्लिम वोटरों के समीकरण लालू यादव बिहार की सत्ता में सत्तासीन हुए, लेकिन यादव राजघराने के राजकुमार तेजस्वी यादव के नेतृत्व में यादव और मुस्लिम दोनों वोटर नाराज चल रहे हैं।
राजद के कोर वोटर ही नहीं, नेता भी दूसरे दल में रूख करने लगे हैं
यही कारण है कि राष्ट्रीय जनता दल के कोर वोटर ही नहीं, अब राजद के विधायक भी भाजपा और जदयू की ओर रूख करने लगे हैं। 5 आरजेडी एमएलसी का जदयू में शामिल होना, इसका बड़ा उदाहरण है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद के वफादार मतदाता जैसे यादव और मुस्लिम वोटरों का मोहभंग पहले ही हो चुका है। बिहार में तेजस्वी यादव की हालत कमोबेश उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव जैसी हो गई है, जहां समाजवादी पार्टी भी ख़राब दौर से गुजर रहीं है।
2014 के 64%, 2019 में 55 % यादवों ने महागठबंधन को वोट दिया
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में 1.7 फीसदी की मामूली वृद्धि को छोड़कर राजद ने 2005 के बाद से हर चुनाव में अपना वोट शेयर खोया है। पार्टी के सबसे वफादार मतदाता यादव भी विकल्प तलाश कर रहे हैं। 2019 का सीएसडीएस-लोकनीति का सर्वेक्षण दर्शाता है कि 2014 के 64 फीसदी के मुकाबले 2019 में केवल 55 फीसदी यादवों ने राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन को वोट दिया था।
फऱवरी में ही एनडीए के खिलाफ महागठबंधन में दो फाड़ हो चुके है
इससे पहले भी बिहार में सत्तारूढ़ नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ महागठबंधन में दो फाड़ फऱवरी में हो चुके है और एक गुट का नेतृत्व तेजस्वी यादव और दूसरे गुट के नेता संभवतः शरद यादव माने जाते हैं। दूसरे गुट में उपेन्द्र कुशवाहा, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और मुकेश निषाद शामिल हैं। इस गुट के कुछ नेताओं ने शरद यादव के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने की भी मांग की है।
महागठबंधन को लेकर तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर लगा चुका है प्रश्नचिन्ह
2019 लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की करारी हार के बाद से ही तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लग गया था। इस प्रश्नचिन्ह की रेखा और मोटी तब होती गई जब चुनाव में हार के बाद तेजस्वी यादव बिहार से तीन महीने के लिए बिहार से लापता हो गए। कोई कह रहा था कि दिल्ली में हैं, तो कोई उन्हें लंदन में क्रिकेट वर्ल्ड कप में गया हुआ बता रहा था। तेजस्वी यादव अपनी आदतों और हरकतों से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की याद लोगों को दिलाते हैं, जो चुनाव काल में जमीन पर और चुनाव संपन्न होते ही अक्सर फुर्र हो जाया करते हैं।
तेजस्वी की लालू यादव जैसी करिश्माई और जुझारू छवि नहीं बन पाई है
पार्टी को एकजुट रखने की लालू यादव की करिश्माई छवि और कलात्मकता की कमी ही कहेंगे कि विधान परिषद में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की सदन नेता की कुर्सी भी डगमगाने लग गई थी। सत्ता के सेमीफाइनल से पार्टी की दुर्गति का आलम ही कहेंगे कि नेतृत्व से परेशान होकर पार्टी के सबसे कद्दावर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी पार्टी उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।