#Mahagathbandhan: 2019 लोकसभा चुनाव के लिए क्या है अखिलेश यादव का गेम प्लान ?
नई दिल्ली। साल 2019 की शुरुआत ही सबसे बड़े राजनीतिक घटनाक्रम से हुई जब उत्तर प्रदेश में दो परंपरागत विरोधी दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने आपसी कड़वाहट भुलाकर एक-दूसरे के साथ आने का फैसला किया। बसपा सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सपा के साथ गठबंधन का आधिकारिक ऐलान किया। मायावती ने बताया कि यूपी की 38-38 सीटों पर सपा-बसपा चुनाव लड़ेंगी। उन्होंने कहा कि दो सीटों के बारे में अभी फैसला नहीं हुआ है। बसपा के साथ गठबंधन के ऐलान के बीच समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव की क्या रणनीति हो सकती है, पढ़ें...
चुनाव पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन ना करना
लोकसभा चुनाव से पहले हुए इस महागठबंधन को लेकर काफी दिनों से कयास लगाए जा रहे थे। अखिलेश यादव और मायावती दोनों ही लगातार संपर्क में थे और इस गठबंधन को अंतिम रूप देने की कोशिशों में जुटे थे। इस गठबंधन के जरिए समाजवादी पार्टी आगे के लिए कई रणनीतियों का खाका तैयार कर रही है। 38-38 सीटों पर बसपा और सपा के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे जबकि अमेटी और रायबरली की सीटों पर गठबंधन का कोई उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ेगा यानी इन सीटों को कांग्रेस के लिए छोड़ दिया गया। अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली से सोनिया गांधी चुनाव लड़ते रही हैं। कांग्रेस से साथ विधानसभा चुनावों में उतरने के बाद बड़ी हार मिली थी, शायद यही वजह है कि अखिलेश यादव चुनाव पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं थे।
अधिक से अधिक सीटों पर जीत हासिल करना
अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में अधिक से अधिक सीटें जीतने पर फोकस कर रहे हैं। बसपा के साथ जाने पर सपा को वोटों के लिहाज से बड़ा फायदा हो सकता है। बसपा के पाले के वोटों के अधिक से अधिक ट्रांसफर होने की संभावनाएं हैं। फुलपुर और गोरखपुर में लगभग ऐसा ही हुआ था। ऐसे में सपा को बसपा के वोटों का ज्यादा लाभ मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। अगर सपा की ये रणनीति कामयाब रही तो यूपी में सत्ताधारी दल बीजेपी को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा को 5 सीटों पर जीत मिली थी।
केंद्र में सत्ता ज्यादा से ज्यादा भागीदारी के लिए दावा मजबूत करना
जबकि ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करने की स्थिति में अखिलेश की नजर केंद्र में बनने वाली सरकार पर होगी। सरकार बनाने के लिए अगर कांग्रेस या विपक्षी दलों के साथ हाथ मिलाना पड़ा तो वहां, सपा की दावेदारी मजबूत हो सकती है। बात प्रधानमंत्री पद के लिए चेहरे की हो या फिर कैबिनेट में हिस्सेदारी की, दोनों ही स्थिति में सपा अपना पक्ष मजबूत रखना चाहेगी।
अगर किंग ना बन सके तो कम से कम किंगमेकर बनना
अखिलेश यादव की कोशिश होगी कि अगर किंग ना बन सके तो किंगमेकर की भूमिका जरूर निभाएं। सपा ने आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए बसपा के साथ हाथ मिलाया है। दूसरी तरफ कांग्रेस से दूरी बहुत कुछ इशारा कर रही है। एक तरफ राहुल गांधी के पीएम पद की उम्मीदवारी की चर्चा है तो दूसरी तरफ कई दल इसपर सहमत नजर नहीं आ रहे हैं। अखिलेश यादव भी उनमें से एक हैं। ऐसे में अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद अखिलेश गेंद अपने पाले में रखने में कामयाब हो सकते हैं।
पीएम पद के लिए मायावती के सवाल पर बोले अखिलेश- वे चाहेंगे कि प्रधानमंत्री यूपी से हो
तमाम विपक्षी दलों की गतिविधियों पर नजर डालें तो, अगर बात प्रधानमंत्री पद के दावेदारों की है तो, इसके लिए कई नामों पर चर्चा है। ममता बनर्जी, केसीआर, चंद्रबाबू नायडू, राहुल गांधी और मायावती भी इस पीएम पद की दावेदारी में पीछे नहीं है। आज प्रेस कॉनफ्रेंस के दौरान भी जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या वे पीएम पद के लिए मायावती के नाम का समर्थन करेंगे? हंसते हुए अखिलेश ने गोल-मोल जवाब दे दिया कि उत्तर प्रदेश ने देश को कई प्रधानमंत्री दिए हैं, इसलिए वे चाहेंगे कि अगला प्रधानमंत्री यूपी से ही हो। गौर करने वाली बात है कि अखिलेश यादव ने मायावती के नाम पर असहमति तो नहीं जताई, लेकिन बगल में बैठी बसपा सुप्रीमो के नाम पर सहमत भी नजर नहीं आए। ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं कि गेंद अपने पाले में होने की स्थिति में अखिलेश यादव पीएम पद के लिए अपने पिता मुलायम सिंह यादव के नाम को भी आगे कर सकते हैं।
हालांकि ये कयास भर ही हैं लेकिन सपा और बसपा के साथ आने से एक तरफ भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं तो महागठबंधन का हिस्सा ना बन पाने से कांग्रेस को भी झटका लगा है। मायावती ने आज जिस प्रकार से बीजेपी-कांग्रेस पर ताबड़तोड़ हमला बोला है, देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी और कांग्रेस यूपी को लेकर क्या रणनीति बनाते हैं।