क्या महाभारत की द्रौपदी फ़ेमिनिस्ट थीं?
द्रौपदी पांच पुरुषों की पत्नी थीं, क्या इस आधार पर उन्हें फ़ेमिनिस्ट कहा जा सकता है?
"द्रौपदी के पांच पति थे वो और पांचों में से किसी की बात नहीं सुनती थीं. वो सिर्फ अपने दोस्त की बात सुनती थीं और वो थो श्रीकृष्ण."
ये कहना है भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव का. उन्होंने द्रौपदी को दुनिया की पहली 'फ़ेमिनिस्ट' बताया है और कहा है कि महाभारत का युद्ध सिर्फ उनकी जिद की वजह से हुआ, जिसमें 18 लाख लोग मारे गए.
राम माधव के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं. कइयों ने उनकी बात पर असहमति और आपत्ति जताई.
क्या द्रौपदी वाकई फ़ेमिनिस्ट थी? क्या फ़ेमिनिस्ट महिला की यही पहचान है कि वो अपने पति की एक नहीं सुनती?
जानी-मानी लेखिका और उपन्यासकार अनीता नायर कहती हैं, "द्रौपदी उन तमाम औरतों का प्रधिनित्व करती हैं जो नाइंसाफ़ी और असमानता का शिकार हैं."
माना जाता है कि महिला का पति उसे मुश्किलों से बचाएगा, उसकी रक्षा करेगा. लेकिन द्रौपदी के मामले में क्या हुआ? जब भरी सभा में उन्हें अपमानित किया जा रहा था तब उनके पांचों पति वहीं सिर झुकाकर बैठे थे.
'वॉट द्रौपदी डिड टु फ़ीड टेन थाउजेंट सेजेज' नाम की किताब लिखने वाली अनीता नायर मानती हैं कि द्रौपदी परिस्थितियों से लाचार महिला थीं जिन्हें अपनी आवाज़ उठाने का मौक़ा ही नहीं दिया गया.
वो पूछती हैं, "इन सब बातों को ध्यान में रखकर सोचें तो द्रौपदी भला फ़ेमिनिस्ट कैसे हुईं?" क्या द्रौपदी ने अपनी मर्जी से पांच पति चुने थे?
द्रौपदी के पांच पतियों के बारे में दो कहानियां सुनने-पढ़ने को मिलती हैं.
पहला तो ये कि स्वयंवर के बाद अर्जुन जब अपने बाकी भाइयों के साथ कुंती के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा कि तुम लोगों को जो कुछ मिला है उसे आपस में बांट लो.
मां कुंती के आदेश की अवहेलना न हो इसलिए द्रौपदी को पांचों पांडवों की पत्नी बनना पड़ा.
दूसरी कहानी ये है कि द्रौपदी ने अपने पिछले जन्म में भगवान शिव से ऐसे पति की कामना की थी जिसमें तमाम ख़ूबियां हों. किसी एक शख़्स को इतनी ख़ूबियां देना मुश्किल था इसलिए उन्हें एक के बजाय पांच पति मिले.
ऐसा भी नहीं था कि द्रौपदी पांचों पतियों के साथ रहती थीं. उन्हें बारी-बारी से हर पति के साथ एक-एक साल रहना होता था. इस तय वक़्त में एक के अलावा कोई अन्य पांडव उनके करीब नहीं जा सकता था.
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इतना ही नहीं, पौराणिक किताबों के मुताबिक द्रौपदी को एक वरदान मिला था जिससे पति के साथ एक साल का वक़्त बिताने के बाद उन्हें उनका कौमार्य (वर्जिनिटी) वापस मिल जाता था.
अगर वाक़ई नियम सबके लिए बराबर हैं तो वर्जिनिटी का 'रिन्यूअल' द्रौपदी के लिए ही ज़रूरी क्यों था? पांडवों के लिए नहीं?
अनीता नायर कहती हैं, "राम माधव ने द्रौपदी के फ़ेमिनिस्ट होने के पीछे वजहें बताई हैं वो हंसने लायक हैं. पहली बात तो ये कि एक से ज्यादा पार्टनर होने किसी महिला की व्यक्तिगत पसंद और नापसंद का मामला है, ऐसा करना किसी को फ़ेमिनिस्ट नहीं बनाता."
उन्होंने हंसते हुए कहा कि राम माधव की बातों से तो लगता है जैसे फ़ेमिनिस्ट औरतें अराजक और अनुशासनहीन होती हैं जो हर जगह मुसीबतें खड़ा करती हैं.
फ़ेमिनिज़्म औरतों और मर्दों को बराबरी का हक दिलाने की बात करता है, ये बात सबको समझनी ज़रूरी है. इसके साथ ही हमें इतिहास और पौराणिक कहानियों में अंतर करना भी सीखना होगा.
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'मिस द्रौपदी कुरु' किताब की लेखिका त्रिशा दास महाभारत के युद्ध के लिए द्रौपदी को जिम्मेदार ठहराने की बात को सिरे से नकारती हैं.
उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा, "महाभारत का यद्ध पारिवारिक संपत्ति और पुरुषों के अहंकार की वजह से हुआ था, न कि द्रौपदी या किसी अन्य महिला की वजह से."
त्रिशा ज़ोर देकर कहती हैं कि द्रौपदी को युद्ध की वजह बनाना 'विक्टिम ब्लेमिंग' यानी पीड़ित को ही दोष देने जैसा है.
उन्होंने कहा, "पांडवों और कौरवों की दुश्मनी का ख़ामियाजा द्रौपदी को भुगतना पड़ा था. युद्ध के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाना बिल्कुल ग़लत है.
हालांकि चित्रा ये भी मानती हैं कि द्रौपदी मानसिक और भावनात्मक तौर पर बेहद मजबूत महिला थीं. लेकिन महाभारत के संदर्भ में देखा जाए तो द्रौपदी को फ़ेमिनिस्ट कहा जाना उन्हें सही नहीं लगता.