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मध्य प्रदेश: राजघरानों की रियासत गई पर सियासत तो है!

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया का मानना है कि राजघरानों और जमीदारों द्वारा जनता से जुड़ाव की कोशिश एक बाहरी दिखावा भर है

उन्होंने कहा "वो खुद को एलीट क्लास या राजा-महाराजा ही समझते हैं. लेकिन उन्हें इस बात का अहसास तो हो ही गया है कि सिर्फ राजा बनकर चुनाव नहीं जीते जा सकते सो खुद में बदलाव का स्वांग रच रहे हैं."

By BBC News हिन्दी
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जयवर्धन सिंह, कांग्रेस, दिग्विजय सिंह, भारतीय जनता पार्टी, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018, विधानसभा चुनाव 2018
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जयवर्धन सिंह, कांग्रेस, दिग्विजय सिंह, भारतीय जनता पार्टी, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018, विधानसभा चुनाव 2018
  • कोई अपने नाम के आगे श्रीमंत और कुंवर साहब जैसी पदवियों से किनारा करता है तो कोई अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ने के बाद भी स्थानीय बोलियों को बोलने का अभ्यास करता है.
  • कोई क़िला छोड़कर सामान्य घर में रहता है तो कोई अपनी नई पीढ़ी को जनता से जुड़ने के लिए बाक़ायदा ट्रेनिंग दिलाता है.

मध्य प्रदेश की राजनीति में इन दिनों ये ख़ास प्रयोग हो रहे हैं.

यहां सियासत में खुद को सफल बनाने और जनता से जुड़े रहने के लिए राजघरानों और ज़मींदारों की नई पीढ़ी नए-नए तरीके आजमा रही है.

मध्य प्रदेश की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले पत्रकार दीपक तिवारी कहते हैं कि अंग्रेज़ चले गए लेकिन हिंदुस्तान में राजे-रजवाड़े रह गए.

वो कहते हैं, "देसी रियासतों के भारत में विलय के बाद कई राज परिवारों ने लोकतंत्र के जरिए जनता पर शासन करने की नीति पर काम किया और काफ़ी हद तक इसमें सफल भी रहे."

ख़ास तौर पर मध्य प्रदेश में राज परिवारों, जागीरदारों और ज़मींदारों को ख़ूब चुनावी सफलता मिली.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया
PTI
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया

दीपक तिवारी बताते हैं कि इमरजेंसी के बाद भाजपा ने कांग्रेस के ख़िलाफ़ ज़मीन तैयार करने के लिए राजघरानों को राजनीति में बहुत अवसर दिए. कांग्रेस ने भी ऐसा ही किया. यही वजह रही कि सिंधिया परिवार लगातार प्रदेश की राजनीति का केंद्र रहा तो चुरहट के अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री बने.

फिर राघोगढ़ के राजपरिवार से आए दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इनके अलावा गोविंद नारायण सिंह और राजा नरेशचंद्र सिंह भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.

आज भी मध्य प्रदेश में राज परिवारों से जुड़े दो सांसद और कई विधायक हैं.

गायत्री राजे पवार, विधानसभा चुनाव 2018, मध्य प्रदेश, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018
FB @shrimantgayatriraje
गायत्री राजे पवार, विधानसभा चुनाव 2018, मध्य प्रदेश, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018

विंध्य और बुंदेलखंड

विंध्य और बुंदेलखंड इलाके में अभी भी सियासत राजपरिवारों और ज़मींदारों के इर्द-गिर्द ही घूमती है.

वरिष्ठ पत्रकार विनय द्विवेदी नामी परिवारों के राजनीति में आने की वजह बताते हैं.

वो कहते हैं, "ग्वालियर, राघोगढ़, रीवा, नरसिंहगढ़, चुरहट, खिचलीपुर, देवास, दतिया, छतरपुर, देवास और पन्ना जैसे छोटे-बड़े राजघराने मध्य प्रदेश प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे और सफल भी."

उन्होंने कहा, ''दरअसल आज़ादी के बाद लोकतंत्र में भी ये राज परिवार सरकार द्वारा मिली संपत्तियों से धनी ही बने रहे. इसके साथ ही अपने अपने क्षेत्र में प्रभाव के चलते बड़ी संख्या में आम लोगों का जुड़ाव इनसे रहा. इसी का इस्तेमाल करते हुए इन परिवारों ने राजनीति में जब भी कदम रखा तो ज़्यादातर सफल ही हुए."

वसुंधरा राजे सिंधिया
BBC
वसुंधरा राजे सिंधिया

ज़माना बदला भी है...

बुंदेलखंड के युवा पत्रकार कृष्णकांत नगाइच कहते हैं, "हमने राजशाही का बीता दौर तो नहीं देखा लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्र की जनता इन परिवारों के लोगों के लिए राजा साहब, महाराज, हुकुम, कुंवर सा और रानी सा जैसे सम्बोधनों का इस्तेमाल करती है."

लेकिन ज़माना बदला भी है. ख़ास तौर पर बीते एक दशक में मोबाइल क्रांति से ग्रामीण क्षेत्र की जनता में जागरूकता आई है. अब यही जनता इन राजपरिवारों को सियासत में तो देखना चाहती है लेकिन आम नेता की तरह.

सामाजिक कार्यकर्ता सचिन जैन का मानना है कि लोकतंत्र में आए इस बदलाव में ख़ास तौर पर युवा हैं. वो कहते हैं, ''युवा चाहते हैं कि अगर कोई राज परिवार या पुराने ज़मींदार परिवार से है तो भी वह सामान्य राजनैतिक व्यक्ति की तरह जनता से मिले न कि अपने इतिहास की वजह से.''

अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह
PTI
अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह

दोस्ताना व्यवहार

टीकमगढ़ ज़िले के ज़मींदार परिवार से रहे पृथ्वीपुर के पूर्व विधायक बृजेन्द्र सिंह राठौर इसी भाव को लंबे समय पहले परखने का दावा करते हैं.

वो कहते हैं कि उन्होंने राजनीति की शुरुआत से ही उस तबके को बराबर बिठाना शुरू किया जो हमें बहुत बड़ा और ख़ुद को याचक मानता था.

उनके मुताबिक आज क्षेत्र के युवा ये मानते हैं कि उनसे दोस्ताना व्यवहार हो. यही वजह है कि जब उनके बेटे नितेन्द्र बाहर से पढ़ाई करके लौटे तो उन्होंने उसे भी जनता से जुड़ने के लिए स्थानीय बोली बुंदेली में बात करने की सलाह दी.

माया सिंह, विधानसभा चुनाव 2018, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018, विधानसभा चुनाव 2018
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माया सिंह, विधानसभा चुनाव 2018, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018, विधानसभा चुनाव 2018

परिवार की प्रतिष्ठा

वहीं खरगापुर राज परिवार के सदस्य और भाजपा नेता हरदेव सिंह कहते हैं कि जनता में अपने परिवार की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए उनके परिवार का सामूहिक निर्णय है कि वो शराब को हाथ नहीं लगाते.

वो बताते हैं, "सालों पुरानी ये परंपरा आज की युवा पीढ़ी भी कायम रखे हुए है. हम नहीं चाहते कि लोग हमें पुराने ज़माने के राजाओं की भावना से देखें. ये अलग बात है कि राज परिवार का सदस्य होने से आज भी जनता में एक अलग किस्म का सम्मान मिलता है. लेकिन इस भाव को बनाए रखने के लिए हमें अपने व्यवहार को काफ़ी हद तक मर्यादित रखना पड़ता है."

पर्सनैलिटी डेवलपमेंट की ट्रेनिंग

ऐसे ही एक राजपरिवार से जुड़े एक युवा अपने व्यवहार को जनता के सामने बेहतर तरीके से पेश करने के लिए पर्सनैलिटी डेवलपमेंट की बाकायदा ट्रेनिंग ले चुके हैं.

नाम न बताने की शर्त पर वे कहते हैं कि पहनावे में सिर्फ कुर्ता-पायज़ामा पहनना, लोगों से हाथ मिलाकर उनसे गले लगने तक की कला, ये सब बदलाव उन्हें याद रखने पड़ते हैं.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ छोटे राजघराने या ज़मींदार ही खुद को बदल रहे हों, बल्कि बड़े नेता भी जनता के मन में हो रहे बदलाव को भांप रहे हैं.

बीते कुछ साल से कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया किसी भी कार्यक्रम में अपने नाम के आगे श्रीमंत शब्द लगाए जाने से बचते हैं.

कुंवर विजय सिंह, मध्य प्रदेश, शिक्षा मंत्री, मध्य प्रदेश चुनाव 2018, विधानसभा चुनाव 2018, चुनाव 2018
PIB
कुंवर विजय सिंह, मध्य प्रदेश, शिक्षा मंत्री, मध्य प्रदेश चुनाव 2018, विधानसभा चुनाव 2018, चुनाव 2018

जनता से जुड़ाव की कोशिश

दिग्विजय सिंह के विधायक बेटे जयवर्धन सिंह और अर्जुन सिंह के विधायक बेटे अजय सिंह भी आम तौर पर उनके करीबियों द्वारा कुंवर साहब के संबोधन को सार्वजानिक तौर पर दूर ही रखते हैं.

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया का मानना है कि राजघरानों और जमीदारों द्वारा जनता से जुड़ाव की कोशिश एक बाहरी दिखावा भर है

उन्होंने कहा "वो खुद को एलीट क्लास या राजा-महाराजा ही समझते हैं. लेकिन उन्हें इस बात का अहसास तो हो ही गया है कि सिर्फ राजा बनकर चुनाव नहीं जीते जा सकते सो खुद में बदलाव का स्वांग रच रहे हैं."

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English summary
Madhya Pradesh The princely state of the princely states went but there is a state
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