मध्य प्रदेश में आधुनिक महाभारत के लिए तैयार होंगे "अभिमन्यू"
अभिमन्यू ने सीख लिए थे यौद्धा के गुण
महाभारत के एक पात्र अभिमन्यु के बारे में कहा जाता है कि गर्भ में रहते हुए उसने चक्रव्यूह में प्रवेश करने का राज तो जान लिया था मगर कहानी सुनते-सुनते मां के सो जाने पर वह चक्रव्यूह से बाहर निकलने की कला नहीं जान सका था। इसीलिए वह मारा गया था, क्योंकि उसे चक्रव्यूह से बाहर निकलने की कला का पता नहीं था।
शोधों से सिद्ध हो चुका है
महाभारत में अभिमन्यु का कथानक और विभिन्न शोधों से यह बात जाहिर हो चुकी है कि गर्भ में रहते हुए बच्चे को संस्कार दिए जा सकते हैं। स्त्री रोग विषेषज्ञ डॉ. ज्योति खरे कहती हैं कि गर्भावस्था में संस्कार दिए जा सकते हैं, यही कारण है कि मां को गर्भावस्था में अच्छा पढ़ने, अच्छे आचरण, अच्छा खाने आदि की सलाह दी जाती है ताकि बच्चा स्वस्थ्य व संस्कारिक बने।
नई पीढ़ी को संस्कार व ऊर्जावान बनाने के मकसद से राजधानी भोपाल के करीब स्थित हिंदी विश्वविद्यालय में गर्भवती महिलाओं के लिए पाठ्यक्रम शुरू किए जाने की तैयारी है। यह पाठ्यक्रम नौ माह की अवधि का होगा। विश्वविद्यालय के कुलपति मोहन लाल छीपा कहते हैं कि समाज में मूल्यों का ह्रास हो रहा है, भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, निराशाजनक वातावरण बन रहा है, इस स्थिति का असर नई पीढ़ी पर न पड़े इसके लिए जरूरी है कि उन्हें मां के गर्भ में रहते हुए जन्म से पहले ही सार्थक शिक्षा दी जाए।
तपोवन बनाया जाएगा
छीपा के अनुसार विश्वविद्यालय में गर्भ संस्कार तपोवन बनाया जाएगा, जिसमें गर्भवती महिलाओं को शिक्षा व प्रशिक्षण दिया जाएगा। महिलाओं को अच्छा साहित्य उपलब्ध कराया जाएगा, उनके बीच सार्थक विचार-विमर्श होगा, साथ ही उन्हें अच्छे संगीत के करीब लाया जाएगा। महिलाएं गर्भावस्था में अच्छा खाएं, अच्छा सुनें, अच्छा पढ़े तो जन्म लेने वाले बच्चे को संस्कार संपन्न बनाया जा सकता है।
पाठयक्रम धर्म पर आधारित नहीं
कुलपति के अनुसार, यह पाठ्यक्रम किसी धर्म पर आधारित नहीं होगा बल्कि सभी वर्ग की महिलाएं यहां आकर जन्म लेने वाली अपनी संतान को दक्ष और सक्षम बनाने में सफल रहेंगी। इस पाठ्यक्रम में गीत-संगीत, चित्रकला, कहानी-कविता के करीब लाने के साथ ऐसी फिल्में भी दिखाई जाएंगी जो उनको प्रसन्न रख सकें और संस्कार देने वाली हों। तपोवन में सभी क्षेत्रों के विशेषज्ञ महिलाओं को मार्गदर्शन देंगे, साथ ही गर्भवती महिलाओं के पतियों को भी इससे जोड़ा जाएगा।
हिंदी विश्वविद्यालय की यह पहल नई पीढ़ी को सक्षम व संस्कारिक बनाने की दिशा में कारगर साबित हो सकती है, क्योंकि मां ही बच्चे की पहली पाठशाला होती है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस। (संदीप पौराणिक)