मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव: क्या इन मुद्दों पर भी होगी बात?
नई दिल्ली। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही मध्यप्रदेश में चुनावी सरगर्मी तो बढ़ गई है लेकिन लगता है इस पूरे चुनावी माहौल में मुद्दों का सूखा पड़ा हुआ है। कोई भी राजनीतिक दल जनहित के मुद्दों को चुनावी मुद्दा बनाता हुआ नहीं दिख रहा। सारे राजनीतिक दलों का गुणा-गणित जात-पात और वर्ग-संप्रदाय तक सिमटा है। हर एक दल का जोर किसी भी तिकड़म से जीतने और विधानसभा में अपनी ताकत बढ़ाने पर है। जनहित के मुद्दों से ज्यादा जोर किसी भी उम्मीदवार की जीतने की क्षमता पर है। पिछले 15 साल से मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है। विपक्ष के तौर पर कांग्रेस पार्टी सरकार की नाकामियों को उजागर करने में नाकाम साबित हुई है। किसानों के मुद्दा सबसे अहम हैं, बेरोजगारी और सरकारी भर्तियों में भ्रष्टाचार तो जैसे मध्यप्रदेश का पर्याय बन गया है। हालांकि सत्तारूढ़ भाजपा का दावा है कि उसने पिछले पंद्रह साल में प्रदेश की तस्वीर पूरी तरह बदल दी है और प्रदेश अब बीमारू राज्य की सूची से बाहर निकलकर विकास की राह पर चल पड़ा है।
क्या सच में मध्यप्रदेश में विकास की गंगा बह रही है? क्या हैं मध्यप्रदेश के अहम मुद्दे जो प्रदेश की जनता की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े हुए हैं। इन मुद्दों पर भले ही राजनीतिक दल गौर ना करें लेकिन हम इनकी याद जरूर दिलाएंगे। आइए नजर डालते हैं, मुख्य चुनावी मुद्दों पर।
बेहाल हैं किसान
मध्यप्रदेश
10
साल
से
खेती
में
नंबर
वन
है
लेकिन
फिर
भी
यहां
का
किसान
बेहाल
है।
पिछले
साल
6
जून
को
मंदसौर
की
पिपलिया
खेड़ी
मंडी
में
जब
किसान
अपनी
मांगों
को
लोकर
एकजुट
हुआ
तो
उसे
पुलिस
की
गोली
खानी
पड़ी।
इस
गोलीकांड
में
6
किसानों
की
मौत
हो
गई
थी।
शिवराज
सिंह
चौहान
के
2004
में
मुख्यमंत्री
बनने
के
बाद
से
प्रदेश
में
कृषि
विकास
दर
लगातार
बढ़ी।
12
साल
में
प्रदेश
में
गेहूं
उत्पादन
करीब
चार
गुना
बढ़
गया।
पिछले
पांच
साल
में
राज्य
की
कृषि
विकास
दर
18
फीसदी
के
पास
बनी
रही।
खाद्यान्न
उत्पादन
के
लिए
देश
का
सबसे
बड़ा
पुरस्कार
कृषि
कर्मण
पुरस्कार
भी
मिला।
लेकिन
फिर
भी
मध्यप्रदेश
में
किसान
परेशान
है।
दरअसल
प्रदेश
में
किसानों
का
उत्पादन
तो
बढ़ा
लेकिन
उन्हें
उसका
उचित
दाम
नहीं
मिल
रहा
है।
कृषि
की
लागत
बढ़ती
रही
लेकिन
दाम
में
इजाफा
नहीं
हुआ।
किसान
अपनी
फसल
औने-पौने
दाम
पर
बेचने
को
मजबूर
है।
जून
2017
में
किसान
आंदोलन
के
बाद
सितंबर
से
प्रदेश
सरकार
ने
मुख्यमंत्री
भावांतर
भुगतान
योजना
शुरू
की
लेकिन
इसका
भी
फायदा
सभी
किसानों
को
नहीं
मिल
रहा।
मध्यप्रदेश
में
किसानों
को
शून्य
प्रतिशत
ब्याज
पर
कर्ज
दिया
जाता
है
लेकिन
जमीनी
स्थिति
ये
है
कि
ज्यादातर
किसान
खासकर
छोटी
जोत
के
किसान
इसका
फायदा
नहीं
उठा
पा
रहे
हैं।
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स्वास्थ्य सुविधाएं राम भरोसे
प्रदेश में जनसंख्या के हिसाब से ना तो प्रयाप्त अस्पताल हैं और ना ही डॉक्टर। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और उपस्वास्थ्य केन्द्रों में आधारभूत सुविधाओं का अभाव है। 16 हजार से ज्यादा डॉक्टरों की कमी है। देहाती इलाकों में पूरी चिकित्सा व्यवस्था झोला छाप डॉक्टरों के हवाले है। आंकड़े बताते हैं कि कुपोषण और उससे जुड़ी बीमारियों से प्रदेश में हर दिन 92 बच्चों की मौत होती है। 2016 में ये आंकड़ा 74 था। महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़ों के हिसाब से प्रदेश में जनवरी 2016 से जनवरी 2018 तक करीब 57 हजार बच्चों ने कुपोषण के चलते दम तोड़ा।
सुरक्षित नहीं महिलाएं
मध्यप्रदेश
में
महिला
सुरक्षा
सवालों
के
घेरे
में
है।
देश
में
मध्यप्रदेश
पहला
राज्य
था
जिसने
12
साल
से
कम
उम्र
की
बच्ची
के
साथ
रेप
के
मामले
में
दोषी
को
मौत
की
सजा
का
प्रवाधान
किया
था।
लेकिन
उसके
बावजूद
प्रदेश
में
महिलाओं
पर
अत्याचार
और
बच्चियों
के
शोषण
की
घटनाओं
में
कमी
नहीं
आई।
2018
में
ही
एक
जनवरी
से
30
अप्रैल
तक
सिर्फ
चार
महीनों
में
महिलाओं
और
नाबालिगों
के
साथ
1,554
ज्यादती
के
मामले
दर्ज
हुए
थे।
यानी
इन
120
दिनों
में
हर
दिन
करीब
13
रेप
की
घटनाएं
प्रदेश
में
हुईं।
2017
में
मध्यप्रदेश
देश
का
पहला
राज्य
था
जहां
ज्यादती
के
5,310
मामले
अलग-अलग
थानों
दर्ज
किए
गए
थे।
साल
2016
के
मुकाबले
2017
में
महिलाओं
व
नाबालिगों
के
साथ
ज्यादती
की
घटनाओं
में
8.76
फीसदी
की
बढ़ोतरी
हुई
थी।
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परिवार
भ्रष्ट
है
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दूसरों
पर
उंगली
उठा
रहे
हैं
घोटालों की लंबी लिस्ट
मध्यप्रेदश में सरकार घोटालों को लेकर भी खूब चर्चा में रही है। कांग्रेस का तो आरोप है कि शिवराज के शासन में अब तक प्रदेश में 156 घोटाले हो चुके हैं। ये आरोप राजनीतिक हो सकते हैं लेकिन फिर भी कुछ घोटाले ऐसे हैं जिसे लेकर सरकार खुद दावा करती है कि उसने खुद उन्हें उजागर किया और कड़ी कार्रवाई की। प्रदेश का सबसे चर्चित घोटाला व्यापम का है जो अभी तक सुलझा नहीं है। इसकी आंच खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक भी गई। इसके अलावा सिंहस्थ, कुशाभाऊ ठाकरे मेमोरियल ट्रस्ट के नाम पर अरबों रूपयों की जमीन का घोटाला, डीमेट घोटाला,1200 करोड़ रुपए का वजीफा घोटाला और हाल ही में ई-टेंडरिंग में तीन हजार करोड़ का घोटाला होने की बात सामने आई है।
बेरोजगारी की मार
मध्यप्रदेश में बेरोजगारी के आंकड़ों में रिकॉर्ड बढोतरी हुई है। एक अनुमान के मुताबिक राज्य में हर छठे घर में एक युवा बेरोजगार है और हर 7वें घर में एक शिक्षित युवा बिना रोजगार के बैठा है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ही मध्यप्रदेश में लगभग 1 करोड़ 41 लाख युवा हैं। पिछले 2 सालों में राज्य में बेरोजगारों की संख्या में 53 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। दिसंबर 2015 में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 15.60 लाख थी जो दिसंबर 2017 में 23.90 लाख हो गयी। कहा जा रहा है कि दिसंबर 2011 में जहां प्रदेश में 10 में से 7 शिक्षित बेरोजगार थे वहीं 2017 में ये संख्या बढ़कर 10 में से 9 पर पहुंच गई। पिछले 10 सालों में प्रदेश की जनसंख्या 20 फीसदी बढ़ी लेकिन सरकारी नौकरियों में 2.5 प्रतिशत की कमी आई। हालात ऐसे हैं कि प्रदेश में कुछ युवाओं ने बेरोजगार सेना का गठन किया है।
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