मध्य प्रदेश में CAA के खिलाफ संकल्प पत्र पास, शिवराज बोले- दुनिया की कोई ताकत इसे नहीं रोक सकती
भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार की कैबिनेट बैठक में नागरिकता संशोधन कानून को वापस लेने के लिए संकल्प पारित किया गया है। संकल्प में मांग की गई है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम को निरस्त किया जाए। यह जानकारी कैबिनेट की बैठक के बाद जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने दी। बैठक में कई अन्य महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए हैं। इसके साथ ही मध्य प्रदेश अब पांचवां राज्य बन गया है, जहां सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पास हो चुका है। इससे पहले केरल, पंजाब, पश्चिम बंगाल और राजस्थान विधानसभा में सीएए विरोधी प्रस्ताव पास किया जा चुका है।
जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने बताया संकल्प में कहा गया है, यह पहला अवसर है जब धर्म के आधार पर विभेद करने के प्रावधान संबंधी कोई कानून देश में लागू किया गया है। इससे देश का पंथनिरपेक्ष रूप और सहिष्णुता का ताना-बाना खतरे में पड़ जाएगा। प्रदेश सरकार ने कहा, संसद में पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 संविधान के आदर्शों के अनुरूप नहीं है। इस नागरिकता संशोधन अधिनियम को निरस्त किया जाए।
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इस पर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने पलटवार करते हुए कहा, 'मुख्यमंत्री बनने के लिए संविधान के प्रति सच्ची और निष्ठा रखने की शपथ ली जाती है। ये कानून संसद ने बनाया है। आप कहते हैं कि कानून वापस ले लो। आप क्या चाहते हैं, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से प्रताड़ित होकर आए वहां के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता नहीं दें? क्या महक जैसी बिटिया उठती रहें, धर्मांतरण होता रहे, उनका घर जलता रहे, वहां उनकी संपत्ति पर कब्जा किया जाता रहे? आपको उनकी बेटियों का दुःख-दर्द दिखाई नहीं देता? आप इतने असंवेदनशील हो गए हैं? सीएए तो लागू होकर रहेगा कमलनाथ जी, दुनिया की कोई ताकत इसे नहीं रोक सकती।'
कमलनाथ जी, आपने मुख्यमंत्री बनने के लिए संविधान में सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, यह शपथ ली है और आप #CAA का विरोध कर रहे हैं। इस कानून को संसद ने बनाया है और आप इसे वापस लेने की बात कह रहे हैं। #CAA तो लागू होकर रहेगा, इसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती है। pic.twitter.com/vuvhSlQZne
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) February 5, 2020
बता दें कि नागरिकता संशोधन विधेयक संसद से पारित होने के बाद भी इस कानून को लेकर जारी चर्चा थमी नहीं है। इस क़ानून के विरोध में देश के कई हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन शुरू हुआ। इसकी शुरुआत पूर्वोत्तर भारत से हुई। ख़ास तौर से असम में इसे लेकर बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए। इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, दिल्ली की जेएनयू और जामिया यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शन हुए।