मध्यप्रदेश उपचुनाव: भाजपा और कांग्रेस, कौन कितने पानी में
नई दिल्ली- चुनाव आयोग की घोषणा के मुताबिक इस महीने जब बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होगा तो उसके साथ ही मध्य प्रदेश विधानसभा उपचुनाव की तारीख भी घोषित कर दी जाएगी। मध्य प्रदेश विधानसभा उपचुनाव इस बार कई मायनों में अहम है। यह प्रदेश का एक तरह से मिनी चुनाव है। इससे तय होगा कि सत्ता में भाजपा बनी रहेगी या फिर कांग्रेस को फिर से काबिज होने का मौका मिलेगा। राज्य में ब्यावरा के कांग्रेसी विधायक गोवर्धन दांगी की मौत के बाद उपचुनावों वाली सीटों की संख्या अब 27 से बढ़कर 28 हो चुकी है। प्रदेश में इतनी ज्यादा सीटों पर कभी भी एक साथ उपचुनाव नहीं हुए, इसलिए हम इसे मिनी विधानसभा चुनाव कह रहे हैं। हर चुनाव की तरह इसमें भी कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी जीत के दावे कर रही हैं।
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उपचुनाव की तारीख की घोषणा का इंतजार
मध्य प्रदेश में जिन 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की तारीख घोषित होने वाली है, उनमें 3 सीटें विधायकों के निधन के कारण खाली हुई हैं। जबकि, 25 सीटें कांग्रेस विधायकों के सदन से इस्तीफे की वजह से खाली हुई हैं। ये पूर्व कांग्रेसी विधायक कमलनाथ का हाथ छोड़ने के बाद भारतीय जनता पार्टी का कमल थाम चुके हैं। उनमें से कुछ शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट में मंत्री भी बन चुके हैं। प्रदेश की जिन 28 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से सिर्फ आगर की एक सीट छोड़कर सारी सीटें 2018 के दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीती थी। इस वजह से कांग्रेस के पास आज सिर्फ 88 विधायक रह गए हैं और सत्ताधारी भाजपा के पास 107 एमएलए हैं। इस तरह से 230 सदस्यों वाले सदन में अभी सिर्फ 202 विधायक हैं और उपचुनाव के बाद सामान्य बहुमत के लिए 116 विधायकों की दरकार होगी। इस हिसाब से कांग्रेस को सरकार में वापसी के लिए सभी 28 सीटें जीतना जरूरी है। जबकि, शिवराज सिंह चौहान को सीएम की कुर्सी पर काबिज रहने के लिए भाजपा को 9 सीटें जीतनी जरूरी हैं।
धरातल पर कांग्रेस के पक्ष में क्या है ?
कांग्रेस को यकीन है कि जिस तरह से विधायकों ने पार्टी से बगावत करके भारतीय जनता पार्टी का साथ दिया है, उससे उपचुनाव में उसे फायदा मिलेगा। पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ लगातार दावा कर रहे हैं कि वह सत्ता में वापसी कर रहे हैं। पार्टी 28 की 28 सीट जीत लेने की दावा कर रही है। गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद भी कांग्रेस को राज्य में पूर्ण बहुमत नहीं मिला था और जादुई आंकड़े से दो सीटें कम यानी 114 पर वह सिमट गई थी। लेकिन, बसपा,सपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से उसकी सरकार बन गई थी। इस बार भी पार्टी को भरोसा है कि कुछ सीटें इधर-उधर भी हो गई तो भी पुराने सहयोगी विधायकों के समर्थन से सत्ता में वापसी का उसका सपना साकार होगा। कांग्रेस हर हाल में फिर से सरकार बनाना चाहती हैस इसलिए कांग्रेस ने अपनी वह छवि भी बदलने की कोशिश शुरू कर दी है, जिसको लेकर बीजेपी उसे घेरती रही है। मसलन, कमलनाथ ने चुनाव प्रचार की शुरुआत इस बार आगर-मालवा के बगलामुखी माता मंदिर से की है। वह अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर भी बड़ी-बड़ी बातें कह चुके हैं। विश्लेषक इसे सॉफ्ट हिंदुत्व कहते हैं।
भाजपा को सत्ता में रहने का कितना फायदा मिलेगा ?
भारतीय जनता पार्टी को अपनी सरकार बचाए रखने के लिए 28 में से कम से कम 9 सीटों पर निश्चित जीत चाहिए। उसे लगता है कि सत्ता में रहते हुए यह काम जरा भी मुश्किल नहीं है। बसपा-सपा और निर्दलीय विधायक जो पहले कमलनाथ सरकार के साथ थे, आज उसको समर्थन दे रहे हैं। हालांकि, चुनाव के बाद इन विधायकों का उन्हीं के साथ जाने की उम्मीद है, जिसकी सरकार होगी। बीजेपी को यकीन है कि कांग्रेस छोड़कर उसके साथ आए पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव से ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 सीटों पर वह बेहतर प्रदर्शन कर सकेगी। इसलिए उसने चुनाव का बिगुल भी उसी इलाके से फूंका है। बाकी, बीते लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था, जिससे उसमें जीत का एक अलग स्तर का विश्वास बना हुआ है।
कांग्रेस के बागी, भाजपा की मुश्किल
भारतीय जनता पार्टी की एक मुश्किल ये है कि कांग्रेस छोड़कर उसके साथ जाने वाले विधायकों और मंत्रियों को उनके क्षेत्र में कहीं-कहीं विरोध भी देखने को मिल रहा है। कांग्रेस भी इस विरोध को खूब हवा देने में लगी हुई है। इसका एक नजारा तब देखने को मिला जब सिंधिया समर्थक मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर के साथ होर्डिंग को लेकर ग्वालियर में ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भिड़ंत हो गई। सुरक्षाकर्मियों के रहते हुए भी मंत्रीजी ने खुद ही कांग्रेस कार्यकर्ता से दो-दो हाथ शुरू कर दी। हालांकि, यहां तो कांग्रेस समर्थक विरोध करने आए थे, लेकिन अगर वाकई में वोटरों में अपने पूर्व विधायकों से इस तरह की कोई नाराजी होगी तो सत्ताधारी पार्टी को इसका काफी खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
मध्य प्रदेश विधानसभा में दलों की मौजूदा स्थिति
विधानसभा की कुल सदस्य संख्या: 230
सदन की मौजूदा सदस्य संख्या: 202
बीजेपी: 107
कांग्रेस: 88
बीएसपी- 02
एसपी: 01
निर्दलीय: 04