मध्यप्रदेश उपचुनाव: सिंधिया को उनके गढ़ में घेरेंगे पुराने दोस्त सचिन पायलट, कांग्रेस ने बनाई दूर की रणनीति
नई दिल्ली- मध्य प्रदेश विधानसभा का उपचुनाव इस बार काफी दिलचस्प होने वाला है। कांग्रेस ने तय किया है कि वह ग्वालियर-चंबल संभाग में पार्टी के पक्ष में प्रचार कराने के लिए राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को उतारेगी। दरअसल, पायलट से चुनाव प्रचार करवाकर कांग्रेस एक तीर से कई शिकार करना चाहती है। मध्य प्रदेश में जिन 28 सीटों पर उप चुनाव होने हैं, उनमें से 27 सीटें पहले कांग्रेस के पास ही थीं। 25 सीटें तो कांग्रेस के विधायकों की बगावत के चलते खाली हुई हैं। ये 25 पूर्व विधायक पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं, जो अब उनके साथ भाजपा में शामिल हो चुके हैं। सचिन पायलट की तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया कुछ महीने पहले तक कांग्रेस में ही थे और उनके बहुत पुराने मित्र भी हैं। लेकिन, सिंधिया अब भाजपा से सांसद बन चुके हैं और पायलट करीब एक महीने तक कांग्रेस से बगाबत का झंडा बुलंद करने के बाद 'अच्छे बच्चे' की तरह घर वापसी कर चुके हैं।
एमपी उपचुनाव में पायलट बनाम सिंधिया
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर चुके सचिन पायलट को गांधी परिवार किसी तरह समझा-बुझा कर घर वापसी कराने में तो सफल रहा है, लेकिन पार्टी में उनके पुनर्वास का काम अभी होना बाकी है। क्योंकि, अपनी ही पार्टी और सीएम के खिलाफ आवाज बुलंद करने के चक्कर में उनकी डिप्टी सीएम की कुर्सी और प्रदेश अध्यक्ष का दफ्तर दोनों छिन चुका है। वहां गहलोत और पायलट की सियासी ट्यूनिंग इतनी बिगड़ चुकी है कि फिर से दोनों को एक ही जगह रखना पार्टी के लिए वही परेशानी मोल लेने जैसा है। इसलिए पार्टी फिलहाल पायलट को वहां से निकालकर मध्य प्रदेश उपचुनाव में लगाना चाहती है। क्योंकि, वहां पार्टी को ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी अपना हिसाब चुकता करना है, जिनकी बगावत के चलते मार्च में 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार गिर गई थी। दिलचस्प बात ये है कि जब जुलाई में राजस्थान में पायलट बागी बने थे, तब ऐसी खबरें आ रही थीं कि ग्वालियर के पूर्व महाराज और पायलट के पुराने मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया उन्हें 'मध्य प्रदेश दोहराने' के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे।
Recommended Video
सिंधिया को उनके गढ़ में टक्कर देंगे पाटलट
कांग्रेस के रणनीतिकार मध्य प्रदेश में 'महाराज' की बगावत को भुला नहीं पाए हैं। खासकर कमलनाथ तो सिंधिया से हिसाब करने का मौका ही तलाश रहे हैं। इसलिए उन्होंने उनके गढ़ में ही मात देने के लिए उनके पुराने दोस्त से सहयोग मांग लिया है। मुंबई मिरर से बातचीत में सचिन पायलट ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है, 'मध्य प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष कमलनाथ जी ने मुझसे एमपी उपचुनाव में प्रचार के लिए कहा है। मैं निश्चित तौर पर करूंगा। कांग्रेस के एक वफादार सिपाही होने के नाते मेरी यहा जिम्मेदारी है कि जहां भी जब भी जो मैं कर सकता हूं करूं। एमपी मेरे लिए अपने ही क्षेत्र जैसा है, क्योंकि कई विधानसभा क्षेत्रों में जहां चुनाव होने हैं, वो राजस्थान के नजदीक हैं।'
गुज्जर मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश
एमपी में जिन 28 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें 16 सीटों को सिंधिया का गढ़ माना जाता है। बाकी मालवा-निमाड़ की 7 सीटों पर भी सिंधिया का प्रभाव बताया जाता है। लेकिन, कांग्रेस को लगता है कि बगवात की वजह से इस क्षेत्र में सिंधिया का दबदबा कमजोर हुआ है और इसलिए वह उन्हें और उनके समर्थकों को 'विश्वासघाती' के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रही है। ऐसे में उनके पुराने दोस्त को यहां लाकर कांग्रेस राजस्थान में पायलट की बगवात में कथित तौर पर हवा देने के लिए सिंधिया से खुन्नस तो निकालना ही चाहती है, अपने पक्ष में वोट को भी मजबूत करना चाहती है। जिस इलाके में चुनाव होने हैं, वहां गुज्जर मतदाता भी हैं और पायलट अपनी चुनावी पंचलाइन के लिए भी जाने जाते हैं। इसलिए अगर कांग्रेस यहां ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना चाहती है तो उसे लगता है कि पायलट उसके काम आ सकते हैं। वैसे भी इस बार वहां सोनिया-राहुल या प्रियंका के प्रचार करने की संभावना कम ही दिखती है। यहां एक तथ्य यह भी है कि मालवा-निमाड़ की रतलाम लोकसभा सीट पर नवंबर, 2015 में जहां पायलट ने उपचुनाव में काफी प्रचार किया था, कांग्रेस जीत गई थी। अपनी जीत के बाद कांग्रेस सांसद कांतिलाल भूरिया ने पायलट को विशेष धन्यवाद दिया था।
कांग्रेस में पायलट के 'पुनर्वास' काम बाकी
उधर, राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ सचिन पायलट की जो भी शिकायतें हैं, उसकी सुनवाई अहमद पटेल, केसी वेणुगावाल और अजय माकन जैसे नेता कर रहे हैं। इस बीच पायलट की वजह से मध्य प्रदेश में भी कमलनाथ सरकार की वापसी का रास्ता साफ हो गया या कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहे तो उनकी मांगें और असरदार हो सकती हैं। जानकारी के मुताबिक पार्टी नेतृत्व उनके समर्थकों को गहलोत सरकार में ही सेट करना चाहता है, जबकि पायलट को दिल्ली में संगठन में कोई संतोषजनक जिम्मेदारी दी जा सकती है। हो सकता है कि सीडब्ल्यूसी में भी इसीलिए दो सीटें खाली रखी गई हों और उन्हें भले ही राजस्थान से निकलना पड़े किसी दूसरे राज्य का प्रभार दिया जा सकता है।
इसे भी पढ़ें- मध्यप्रदेश उपचुनाव: भाजपा और कांग्रेस, कौन कितने पानी में