लोया, अमित शाह, क़ानूनी प्रक्रिया, जो अब तक पक्के तौर पर पता है
लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 की सुबह नागपुर में हुई थी जहाँ वे एक शादी में शामिल होने गए थे.
जज ब्रजगोपाल लोया के बेटे अनुज ने रविवार को मीडिया के सामने कहा कि पिता की मौत को लेकर उन्हें किसी तरह का 'संदेह नहीं' है, और उनके परिवार का किसी पर 'आरोप नहीं है'.
अनुज ने ये भी कहा कि वो इस मामले में किसी तरह की 'जांच' नहीं चाहते हैं.
मामला इसलिए राजनीतिक तौर पर संवदेनशील है क्योंकि जज लोया सोहराबुद्दीन शेख़ एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे थे, इस मामले में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर मुख्य अभियुक्त थे.
अँग्रेजी पत्रिका 'द कैरेवन' ने पहली बार सीबीआई के विशेष जज ब्रजगोपाल लोया की मौत की परिस्थितियों को संदेहास्पद बताते हुए नबंवर 2017 को रिपोर्ट प्रकाशित की थी. ये रिपोर्ट मृत जज के परिजनों से बातचीत पर आधारित थी.
लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 की सुबह नागपुर में हुई थी जहाँ वे एक शादी में शामिल होने गए थे. उनकी मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना बताई गई थी.
दो चिट्ठियाँ, दो दावे
अंग्रेजी पत्रिका 'द कैरेवन' के राजनीतिक मामलों के संपादक हरतोष सिंह बल ने रविवार को अनुज लोया की दो पुरानी चिट्ठियां ट्वीट की हैं. पहली चिट्ठी में अनुज लोया ने पिता की मौत के बाद उसकी जाँच की माँग की थी, 'कैरेवन' की रिपोर्ट छपने के कुछ दिनों बाद अनुज ने एक और चिट्ठी लिखी है जिसमें उन्होंने कहा है कि उन्हें पिता की मौत को लेकर कोई संदेह नहीं है.
ये दोनों चिट्ठियां 'द कैरेवन' पत्रिका के मुताबिक उनको अनुज लोया के करीबी दोस्त ने भेजी थी.
इतना ही नहीं, हरतोष बल ने अनुज लोया की रविवार के प्रेस कांफ्रेंस के बाद दूसरा ट्वीट भी किया और सवाल उठाए, "अनुज लोया ने पहली चिट्ठी के बारे में इनकार नहीं किया. न ही परिवार के वीडियो के बारे में कुछ कहा. पूरे मामले की जांच से किसी से किसी का कोई नुकसान नहीं पहुंचने वाला. बल्कि सभी संदेह खत्म हो जाएँगे."
इंडियन एक्सप्रेस के सवाल
लेकिन इंडियन एक्सप्रेस ने 'द कैरेवन' की रिपोर्ट छपने के एक हफ्ते बाद उस पर सवाल उठाए थे.
पत्रिका 'द कैरेवन' की रिपोर्ट में कहा गया था कि जज लोया को ऑटो रिक्शा में अस्पताल ले जाया गया था, इसके अलावा लोया की बहन ने सवाल उठाया था कि दिल का दौरा पड़ने की हालत में उनका ईसीजी क्यों नहीं किया गया?
'इंडियन एक्सप्रेस' ने 27 नंवबर को एक रिपोर्ट छापी. उस रिपोर्ट में ईसीजी रिपोर्ट भी छापी, नागपुर के दांडे अस्पताल के प्रबंधकों के हवाले से अख़बार ने बताया कि जज लोया का ईसीजी टेस्ट किया गया था. साथ ही ये भी बताया कि उन्हें ऑटो रिक्शा से नहीं, बल्कि कार से ले जाया गया था और इस बात की तस्दीक एक जज ने इंडियन एक्सप्रेस से की थी.
इसके बाद ईसीजी रिपोर्ट में छपी तारीख को लेकर बवाल हुआ. 'इंडियन एक्सप्रेस' की ईसीजी रिपोर्ट में तारीख़ 30 नवंबर की थी, जो जज लोया की मौत से एक दिन पहले की थी. बाद में अस्पताल की तरफ़ से आया कि ईसीजी मशीन में डिफ़ॉल्ट टाइम अमरीका का था इसलिए ऐसा हुआ था.
लातूर बार एसोसिएशन की मांग
इस मामले में 27 नवंबर में महाराष्ट्र के लातूर शहर के बार एसोसिएशन ने लोया की मौत की जांच को लेकर एक न्यायिक आयोग के गठन की मांग की है ताकि सब कुछ साफ़ हो सके.
बीबीसी से बातचीत में जज लोया के सहपाठी रहे और लातूर बार एसोसिएशन के सदस्य वकील उदय गवारे ने कहा, "इस पर शक़ था क्योंकि लोया जब से एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे तब से वह दबाव में थे."
उनके मुताबिक, "उनके अंतिम संस्कार में हम गए थे और तभी चर्चा थी कि यह प्राकृतिक मौत नहीं है. इसमें गड़बड़ी ज़रूर है. उनके परिजन दबाव में थे और वह बात नहीं कर रहे थे. पत्रिका की ख़बर में जो सवाल उठाए गए हैं उससे इस मौत पर शक़ होना लाज़िमी है. तीन साल बाद भी इस मामले पर क्यों न बात की जाए?"
लोया की मौत का मामला और सुप्रीम कोर्ट
जज लोया की मौत की परिस्थितियों की जाँच के लिए बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने 4 जनवरी को बंबई हाईकोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल की.
पर इस बीच एक काँग्रेसी नेता तहसीन पूनावाला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा दिया.
सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब पूछा गया कि क्या वे जिस संवेदनशील केस की बात कर रहे हैं जो जज लोया की मौत से संबंधित है तो इसके जवाब में जस्टिस गोगोई ने जवाब दिया था - "यस".
सुप्रीम कोर्ट में जज लोया की मौत पर एक और अर्जी महाराष्ट्र के पत्रकार बंधू राज लोने ने लगाई है, अब इन दोनों याचिकाओं की मिलाकर एक मामला बना दिया गया है और उसकी सुनवाई जस्टिस अरुण मिश्रा की कोर्ट में होगी.
प्रशांत भूषण और कुछ अन्य लोगों ने आरोप लगाया था कि कई संवेदनशील मामलों में मुख्य न्यायाधीश ने वरिष्ठता की अनदेखी करके अपेक्षाकृत जूनियर जज अरूण मिश्रा को सौंप दी थी.
चारों जजों ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी यही मुद्दा उठाया था कि जिस तरह मुकदमे की सुनवाई का काम जजों को सौंपा जा रहा है उसमें गड़बड़ी है.
क्यों मचा है लोया की मौत की जांच को लेकर बवाल
सोहराबुद्दीन अनवर हुसैन शेख़ की 26 नवंबर 2005 की कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई थी. इस हत्या के एक चश्मदीद गवाह तुलसीराम प्रजापति भी दिसंबर 2006 में एक 'मुठभेड़' में मारे गए.
सोहराबुद्दीन की पत्नी क़ौसर बी की भी हत्या कर दी गई थी.
इन हत्याओं के आरोप गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह पर लगे. इन्हीं मामलों में बाद में उनकी गिरफ़्तारी भी हुई.
फिर सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में जाँच चलती रही. अदालत के आदेश पर अमित शाह को राज्य-बदर कर दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई गुजरात से बाहर करने, सुनवाई के दौरान जज का तबादला न करने जैसे कई निर्देश दिए.
सीबीआई के विशेष जज जेटी उत्पत ने अमित शाह को मई 2014 में समन किया. शाह ने सुनवाई में हाज़िर होने से छूट मांगी लेकिन जज उत्पत ने इसकी इजाजत नहीं दी, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद 26 जून 2014 को उनका तबादला कर दिया गया.
इसके बाद ये मामला जज लोया को सौंप दिया गया, मामले में अमित शाह जज लोया की अदालत में भी पेश नहीं हुए. एक दिसंबर 2014 को लोया की मौत नागपुर में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई.
जज लोया की जगह नियुक्त जज एमबी गोसावी ने जाँच एजेंसी के आरोपों को नामंज़ूर करते हुए अमित शाह को दिसंबर 2014 में आरोपमुक्त कर दिया था.