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लोकसभा चुनाव 2019:यूपी का जाटलैंड क्यों बन गया है राजनीति का हॉटलैंड?

By राजीव ओझा
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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश का जाटलैंड आजकल राजनीति का हॉटलैंड बना हुआ है। लोकसभा का पहला चरण 11 अप्रेल को है। इनमें पश्चिम उत्तर प्रदेश के वो आठ लोकसभा क्षेत्र भी हैं जिनमें पांच जाटबेल्ट में गिने जाते हैं। ये जिले गन्ना बेल्ट के रूप में भी जाने जाते हैं। जाटलैंड की राजनीति काफी जटिल है। पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति का अहम् हिस्सा हैं गन्ना और जाट बिरादरी। मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर और मेरठ इस जाटलैंड की प्रमुख लोकसभा सीट हैं। इस क्षेत्र की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2019 के चुनाव अभियान की शुरुआत 28 मार्च को मेरठ से की। आपको याद होगा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भी नरेन्द्र मोदी ने चुनाव अभियान की शुरुआत मेरठ से की थी। इसके आलावा सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन ने अपने संयुक्त रैली अभियान की शुरुआत 7 अप्रेल को सहारनपुर के देवबंद से से की। मायावती देवबंद में जुटी भारी भीड़ को देख कर गदगद थीं। हालाँकि मंच से उन्होंने हमेशा की तरह लिखा हुआ भाषण ही पढ़ा। लेकिन भीड़ देखकर मायावती इतने जोश में थीं कि उन्होंने यहाँतक कह डाला कि नरेन्द्र मोदी इतनी भीड़ देख कर कहीं पागल न हो जाएँ। यह अलग बात है मेरठ में नरेन्द्र मोदी की रैली में भी भारी भीड़ जुटी थी। अगर भीड़ जुटने को ही जीत का पैमाना मान लिए जाये तो पश्चिम बंगाल में नरेन्द्र मोदी की रैली में जुट रही भारी भीड़ से ममता बनर्जी को चिंतित होना चाहिए। लेकिन चुनावी रैलियों में जुटी भीड़, जीत की गारंटी नहीं होती।

बीजेपी और गठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर

बीजेपी और गठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर

पिछले चुनाव में इस जाटलैंड से विपक्षी दलों का सफाया हो गया था। तब न मुस्लिम, न दलित और न ही जाट वोटबैंक काम आया था। इस लिए अबकी बार बीजेपी और सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन, दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। कांग्रेस को भी उम्मीद है कि प्रियंका के आने से उसका प्रदर्शन सुधरेगा और क्षेत्र के मुसलमान नरेन्द्र मोदी को हटाने और राहुल गांधी को लाने के लिए गठबंधन के बजाय कांग्रेस को वोट देंगे। गन्ना किसानों के लगभग दस हजार करोड़ के बकाये का भुगतान इस जाटलैंड का एक बड़ा मुद्दा है। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने पहले चरण के मतदान से पहले गन्ना किसानो के करीब 5400 करोड़ के भुगतान की योजना बनाई है।

मतदाताओं की एकजुटता पर टिकी गठबंधन की उम्मीद

मतदाताओं की एकजुटता पर टिकी गठबंधन की उम्मीद

सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन की सारी उम्मीद जातीय गुणा-भाग पर टिकी है। उन्हें लगता है कि 2019 के आम चुनाव के नतीजे भी दलित मुस्लिम और जाट मतदाताओं की एकजुटता के कारण 2018 के उपचुनाव जैसे ही होंगे। तब विपक्ष ने एकजुटता दिखा कर तीनों प्रतिष्ठा वाली सीट फूलपुर, गोरखपुर और कैराना जीत ली थी। 2014 में कैराना लोकसभा सीट बीजेपी के हुकुम सिंह ने सपा की नाहिद हसन को दो लाख 36 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीती थी। जबकि 2018 के उपचुनाव किमें सपा-बसपा-आरएलडी के एकजुट वोट के बावजूद आरएलडी की तबस्सुम हसन करीब 44 हजार 600 वोटों से ही जीत दर्ज कर संकीं थीं।

यहाँ ध्यान देने वाली बात है 2014 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के बाद सबसे ज्यादा 73.1 प्रतिशत वोट कैराना में ही पड़े थे। जबकि 2018 के उपचुनाव में मतदान घटकर 56 प्रतिशत हुआ था। यानी मतदाताओं में 2014 जैसा उत्साह नहीं था। 2019 के चुनाव में अगर मतदान प्रतिशत में दस या उससे अधिक अंकों का इजाफा होता है, जैसी कि उम्मीद है, तो गठबंधन की सारी गणित फेल हो सकती है।

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मतदान प्रतिशत बढ़ा तो बीजेपी को फायदा?

मतदान प्रतिशत बढ़ा तो बीजेपी को फायदा?

जाटलैंड की एक महत्वपूर्ण सीट है मुजफ्फरनगर। इस बार मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से सपा-बसपा और आरएलडी गठबंधन ने जाटों के कद्दावर नेता अजित सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी ने एकबार फिर संजीव बालियान पर ही भरोसा जताया है। इसका एक बड़ा कारण है। 2014 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में सहारनपुर (74.2 प्रतिशत), कैराना (73.1 प्रतिशत) और अमरोहा(70.9 प्रतिशत) के बाद सबसे ज्यादा (69.7 प्रतिशत) मतदान मुजफ्फरनगर में हुआ था। भारी मतदान के चलते संजीव बालियान चार लाख ग्यारह सौ से भी अधिक वोटों के अंतर से जीते थे। जीत का यह मार्जिन गाज़ियाबाद सीट पर वीके सिंह (567260), बुलंदशहर सीट पर भोला सिंह (421973) के बाद तीसरा सबसे बड़ा मार्जिन था। इस बार भी अगर मुजफ्फरनगर में मतदान प्रतिशत 65 से अधिक रहा तो परिणाम अप्रत्याशित हो सकते हैं। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें बुढ़ाना, चरथावल, मुजफ्फरनगर, खतौली, सरधना सीट आती हैं। वर्तमान में यह पांचों सीटें भारतीय जनता पार्टी के पास हैं। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर करीब 17 लाख मतदाता हैं. इनमें पुरुष वोटर 9 लाख और साढे सात लाख महिला वोटर हैं। इस सीट पर करीब 28 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं।

माया और अखिलेश को लगता है कांग्रेस से डर?

माया और अखिलेश को लगता है कांग्रेस से डर?

मुजफ्फरनगर सीट पर हालाँकि कांग्रेस ने कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा किया है लेकिन पश्चिम उत्तर प्रदेश में गठबंधन की चिंता मुस्लिम वोटबैंक को लेकर है। अखिलेश और मायावती, दोनों को कांग्रेस से डर लगता है। उन्हें आशंका है कि कहीं मुस्लिम मतदाता कांग्रेस की तरफ न चले जाएं। इसी डर के चलते 7 अप्रेल को देवबंद रैली में मायावती ने मंच से अपील की कि मुसलमान सोच समझ कर एक दल को वोट दें। मायावती की इस अपील पर चुनाव आयोग ने प्रशासन से रिपोर्ट तलब की है। अखिलेश यादव ने भी देवबंद के साझा मंच से कहा था कि बीजेपी और कांग्रेस में कोई अंतर नहीं है, दोनों की नीतियाँ एक जैसी हैं।

मुज़फ्फरनगर के मौजूदा भाजपा सांसद डॉ. संजीव बालियान 2014 से 2017 तक केंद्र सरकार में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय में राज्य मंत्री रह चुके हैं। संजीव बालियान पर 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों का दाग भी लगा था लेकिन 2014 में उन्होंने भारी मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। इस बार भी उनको उम्मीद है कि गन्ना किसानों की नाराजगी कम होगी और मतदाताओं के ध्रुवीकरण का लाभ उनकी पार्टी को मिलेगा।

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English summary
lok sabha elections 2019 why west up and jaat politics is important
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