जगन्नाथ की नगरी, मोदी लहर और 90 फीसदी हिंदू आबादी में भी क्यों नहीं जीत सके संबित पात्रा?
भाजपा के प्राइम टाइम प्रवक्ता संबित पात्रा अपने हाई-वोल्टेज चुनाव प्रचार के बावजूद हार गए। जानिए क्यों हारे संबित पात्रा
नई दिल्ली। 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के साथ ही देश में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का डंका बज चुका है। मोदी लहर पर सवार भाजपा ने देश की 542 लोकसभा सीटों (एक सीट पर अभी चुनाव होना बाकी है) में से 303 सीटें हासिल कर इतिहास की एक नई इबारत लिख दी है। वहीं, एनडीए का आंकड़ा भी पहली बार 350 के पार पहुंचा है। मोदी की आंधी में कांग्रेस 17 राज्यों से पूरी तरह समाप्त हो गई। कांग्रेस के 9 पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी इस चुनाव हार का मुंह देखना पड़ा। हालांकि प्रचंड मोदी लहर के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के एक दिग्गज नेता को भी शिकस्त का स्वाद चखना पड़ा है। बात हो रही है भाजपा के प्राइम टाइम प्रवक्ता संबित पात्रा की, जो ओडिशा की पुरी लोकसभा सीट से चुनाव हार गए। भगवान जगन्नाथ की नगरी, मोदी लहर और इस सीट पर 90 फीसदी हिंदू आबादी होने के बावजूद आखिर संबित पात्रा कैसे चुनाव हार गए?
हाई-वोल्टेज रहा संबित का चुनाव प्रचार
संबित पात्रा को पुरी सीट पर बीजेडी के दिग्गज नेता और तीन बार के सांसद पिनाकी मिश्रा ने 11714 वोटों के अंतर से हराया है। संबित पात्रा राजनीतिक अनुभव के मामले में बीजेडी के उम्मीदवार पिनाकी मिश्रा से कम अनुभवी थे। इसके बावजूद अपने हाई-वोल्टेज चुनाव प्रचार के जरिए संबित पात्रा ने काफी हद तक अपने पक्ष में मौहाल बनाया। उन्होंने खुद को एक साधारण प्रत्याशी के तौर पर पेश किया। माथे पर चंदन का तिलक, भगवा धोती-कुर्ता और उड़िया गमछे के साथ संबित पात्रा ने 90 फीसदी हिंदू आबादी वाले इस लोकसभा क्षेत्र में अपनी हिंदुवादी नेता की छवि को उजागर किया। संबित पात्रा उस समय भी विवादों में घिरे, जब चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपने प्रचार वाहन में भगवान जगन्नाथ के नाम का इस्तेमाल किया और उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। पुरी में भगवान जगन्नाथ का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है, जिसके दर्शनों के लिए हर साल लाखों लोग आते हैं।
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ये थी हार की सबसे बड़ी वजह
पुरी में चुनाव प्रचार के दौरान संबित पात्रा के बाहरी व्यक्ति होने का भी मुद्दा उठा। इसके जवाब में संबित पात्रा ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान अप्रैल की झुलसाती गर्मी में बाइक की सवारी की, जनसभाओं में तेलुगु भाषा में गाने गाए, तालाबों में डुबकी लगाई और स्थानीय लोगों से जुड़ने के लिए ग्रामीणों के घरों में जाकर खाना खाया। हालांकि इन कोशिशों को बावजूद संबित पात्रा को हार का मुंह देखना पड़ा। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि पुरी सीट से सांसद पिनाकी मिश्रा लगातार पिछले 10 सालों से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और उनकी छवि एक अनुभवी नेता की है। पिनाकी 1996 में कांग्रेस के टिकट पर भी इस सीट से सांसद चुने गए थे। हालांकि कुछ लोगों में उन्हें लेकर नाराजगी भी थी, लेकिन सीएम नवीन पटनायक की लोकप्रियता ने उस नाराजगी को दबा दिया। बीजेडी का कोर वोटर चुनाव की शुरुआत से ही पिनाकी मिश्रा के साथ जुड़ा रहा, जिसने संबित पात्रा की हार में एक बड़ी भूमिका निभाई।
ऐसे बढ़ा भाजपा में संबित का कद
आपको बता दें कि पेशे से सर्जन संबित पात्रा भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख प्रवक्ताओं में से एक है। न्यूज चैनलों पर प्राइम टाइम डिबेट में संबित पात्रा ही भाजपा और सरकार का पक्ष रखते हुए नजर आते हैं। एक तरह से वो भाजपा के टेलिविजन स्टार हैं। संबित पात्रा को सबसे पहले 2010 में दिल्ली भाजपा का प्रवक्ता नियुक्त किया गया था। टीवी डिबेट में विरोधियों पर तीखे हमले और सरकार का बचाव करने की उनकी शैली को देखते हुए भाजपा ने 2014 में उनका कद बढ़ाते हुए उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया। इस लोकसभा चुनाव में संबित पात्रा को 526607 और बीजेडी के पिनाकी मिश्रा को 538321 वोट मिले। कांग्रेस प्रत्याशी सत्य प्रकाश नायक यहां तीसरे नंबर पर रहे और उन्हें महज 44599 वोट ही मिल पाए।
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