हंगामा है क्यों बरपा, मायावती ने प्रधानमंत्री पद पर आरक्षण तो नहीं मांगा
नई दिल्ली। मायावती ने प्रधानमंत्री पद के लिए कोई आरक्षण तो मांगा नहीं, फिर हंगामा क्यों बरपा है? हुआ सिर्फ इतना कि बीएसपी प्रमुख मायावती ने अपने जन्म दिन पर समर्थकों से कामयाबी का तोहफा मांगा। शुभचिन्तकों ने उनके प्रधानमंत्री बनने की कामना की। प्रधानमंत्री के तौर पर मायावती का नाम भर उछलने से विरोधियों को मानो सांप सूंघ गया हो। ऐसा लगा मानो राजनीति के मैदान में एक महिला दलित नेता ने घोड़े की सवारी करने की हिम्मत दिखायी हो। कुछ लोगों की शान में गुस्ताखी कर दी हो। आखिर वो कौन लोग हैं जिन्हें यह बात हजम नहीं हो रही है?
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बहुमत होगा तभी कोई बन सकता है प्रधानमंत्री
इस देश में लोकतंत्र है। यहां चाह लेने भर से कोई प्रधानमंत्री नहीं बन सकता। प्रधानमंत्री वही बन सकता है जिसके पास सांसदों की संख्या होगी या समर्थन होगा। बल्कि, अगर सोनिया गांधी का केस याद करें तो यूपीए की नेता चुनी जाने के बावजूद और पीएम बनने के लिए आवश्यक संख्या होने पर भी वह प्रधानमंत्री नहीं बन सकी थीं।
आडवाणी क्यों रह गये पीएम इन वेटिंग?
अगर चाह लेने भर से प्रधानमंत्री कोई बन जाता, तो लाल कृष्ण आडवाणी क्या पीएम इन वेटिंग ही रह जाते? ज्योति बसु (अब दिवंगत) को कांग्रेस का खुला ऑफर था और उन्होंने चाहा भी था कि प्रधानमंत्री बनें, लेकिन उनकी पार्टी की चाहत से उनकी चाहत मिल नहीं सकी। इसलिए वे प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। मुलायम सिंह यादव की भी हमेशा से चाहत रही है प्रधानमंत्री बनने की। एक मौका आया भी था, मगर लालू प्रसाद ने अड़ंगा लगा दिया और मुलायम सिंह प्रधानमंत्री नहीं बन सके।
प्रणब मुखर्जी पीएम नहीं बन पाए, राष्ट्रपति बन गये
प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री नहीं बन पाने का कितना दुख हुआ था, यह भी देश पता है। कांग्रेस तक उन्होंने छोड़ दिया। अलग पार्टी बना ली। यह बात अलग है कि सोनिया गांधी ने उन्हें राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचा दिया। मनमोहन सिंह ने तो राहुल गांधी के लिए पीएम की कुर्सी छोडने की पहल ही कर डाली। मगर, राहुल गांधी का संकोच आड़े आ गया।
एक चायवाला पीएम उम्मीदवार भी बना, पीएम भी
लोकतंत्र में ऐसा भी होता है जब बगैर चाहत के ही एक चाय वाला प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बन जाता है, फिर प्रधानमंत्री भी। इससे पहले वही चायवाला मुख्यमंत्री भी बन चुके होते हैं। बगैर चाहत के ही एचडी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, पीवी नरसिम्हाराव, मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल जाता है। एक्सिडेन्टल पीएम के नाम से ऐसे वाकयों को अब याद किया जाने लगा है।
एक पीएम गुलजारी लाल नन्दा भी थे
गुलजारी लाल नन्दा को कौन भुला सकता है। वे तब भी कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने जब पंडित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु हुई। उस समय भी उन्होंने यह दायित्व निभाया जब लाल बहादुर शास्त्री की असामयिक मृत्यु हो गयी।
पटेल को कौन भुला सकता है!
वल्लभ भाई पटेल को भी कोई भुला नहीं सकता है जिन्हें कांग्रेस की 15 में से 12 कमेटियों का समर्थन होने के बावजूद प्रधानमंत्री का पद नहीं मिल पाया। गांधीजी की इच्छा के सामने उन्होंने अपनी दावेदारी पंडित जवाहर लाल नेहरू के लिए छोड़ दी। ये सारे उदाहरण इसलिए हैं कि हिन्दुस्तान में प्रधानमंत्री का पद किसी के चाहने से नहीं मिलता। फिर मायावती को बीएसपी के कार्यकर्ता प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं, ऐसी ख्वाहिश रखने का अधिकार उनसे कौन छीन सकता है? मायावती को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने की घोषणा क्या कोई दूसरी पार्टी करेगी?
पासवान को क्यों लगी मायावती के नाम पर मिर्ची
सबसे ज्यादा मिर्ची तो दलित नेता राम विलास पासवान को ही लग गयी। वे बीएसपी को लोकसभा में खाता खोलने की चुनौती देने लगे। ऐसा लगा मानो एक महिला दलित नेता के प्रधानमंत्री बनने की इच्छा ने उनके ही अरमानों पर पानी फेर दिया हो।
अखिलेश बरत रहे हैं खामोशी
अखिलेश यादव जन्मदिन की शुभकामना देने मायावती के घर पहुंचे। पत्रकार लगातार अखिलेश यादव से पूछ रहे हैं कि क्या वे मायावती को प्रधानमंत्री के रूप में देखते हैं? अखिलेश यादव का जवाब एक जैसा है कि सबको पता है कि वे किनका समर्थन करेंगे। उत्तर प्रदेश एक बार फिर देश को प्रधानमंत्री दे, तो उन्हें खुशी होगी। कहने का मतलब ये है कि अखिलेश यादव भी मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की दो टूक घोषणा नहीं कर रहे है मगर इनकार भी नहीं कर रहे। जाहिर है इस सवाल का उत्तर स्थिति-परिस्थिति पर निर्भर करता है।
क्या अखिलेश भी बन सकते हैं 'हिन्दुस्तान का कुमारस्वामी'?
अगर बीएसपी को पर्याप्त सीटें नहीं आएंगी, तो उन्हें समर्थन देने के लिए दूसरे दलों को पास कोई ऐसी स्थिति भी होनी चाहिए। हो सकता है एसपी को ही इतनी सीटें आ जाएं कि वह कांग्रेस के समर्थन से ‘हिन्दुस्तान का कुमारस्वामी' बन जाएं। यानी प्रधानमंत्री बन जाएं। ऐसे में वे अपना मुंह अभी से क्यों खोलें। इसलिए उन्होंने मुंह भी खोला तो कुछ इस तरह जिससे खुद उनकी सम्भावना खारिज नहीं होती हो। असल बात है केन्द्र में वैकल्पिक सरकार बनने की स्थिति पैदा होती है या नहीं अगर ऐसी स्थिति पैदा हुई तो देखा ये जाएगा कि किस नाम या दल पर व्यापक सहमति बनती है। तभी वह चुनाव पूर्व या चुनाव बाद गठबंधन का नेता चुना जा सकेगा और प्रधानमंत्री पद पर उनका शपथग्रहण हो सकेगा। मायावती को पूरा अधिकार है कि वह इस पद पर अपनी दावेदारी पेश करे।
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