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चुनाव के स्लॉग ओवर्स में गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी?

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narendra modi

नई दिल्ली। आप नरेंद्र मोदी के समर्थक हों या न हों, चाहे उनकी खूब तारीफ करते हों या फिर भरपूर आलोचना, उन्हें केंद्र में रखे बगैर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करने पर इस चुनाव का ज़ायका फीका ही रहेगा। इस लोकसभा चुनाव में मोदी अपनी पार्टी के वन मैन आर्मी हैं। भाजपा के प्रत्याशी अपने-अपने लोकसभा क्षेत्र में अपने चेहरे की जगह मोदी के चेहरे पर वोट मांग रहे हैं।

वैसे तो अब यह चुनाव अपने अंतिम पड़ाव पर है। अब तक के हुये चुनावी चरणों में मोदी की सक्रियता जबरदस्त रही है। इससे पहले के लोकसभा चुनावों में ऐसी चुनावी सक्रियता किसी भी प्रधानमंत्री की शायद ही रही है। बात चाहे नेहरू, राजीव गांधी, गुजराल, देवगौड़ा, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मनमोहन सिंह तक की ही क्यों न हो।

इस लोकसभा चुनाव में मोदी ने किसे मुख्य मुद्दा बनाया है?)

इस लोकसभा चुनाव में मोदी ने किसे मुख्य मुद्दा बनाया है?)

इस लोकसभा चुनाव को मोदी ने शुरुआत में ही राष्ट्रवाद के मुद्दे पर सीमित करने की कोशिश की थी। और इसमें काफी हद तक कामयाब भी हुए। जैसे जैसे लोकसभा चुनाव के चरण बढ़ते गए, मोदी राष्ट्रवाद पर और मुखर होते गए। लेकिन अब मोदी अचानक से उन मुद्दों को उछालने लगे हैं जिसे बीते एक जमाना हो चुका है। हालांकि इन मुद्दों में भी मोदी के राष्ट्रवाद का तड़का लगा हुआ है।

मोदी ने अब किन मुद्दों को उछाला है और माजरा क्या है ?

मोदी ने अब किन मुद्दों को उछाला है और माजरा क्या है ?

मोदी इंदिरा गाँधी की सरकार में हुये सिख दंगों की बात कर रहे हैं। राजीव गाँधी की सरकार में हुए बोफोर्स कांड पर बात कर रहे हैं। INS विराट पर राजीव गाँधी के हॉलिडे पर प्रश्न कर रहे हैं। जबकि बोफ़ोर्स घोटाला 1986 में हुआ था और इसी के चलते 1989 में राजीव गांधी की सरकार गिर गई थी। इस बात को हुए करीब 32 साल हो चुके हैं। राजीव गांधी की INS विराट में हॉलिडे प्रकरण की बातें भी 1987 की है। उसके बाद अबतक 8 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। खुद राजीव गांधी की हत्या हुए 28 साल हो चुके हैं। इतने सालों में इस दौरान कांग्रेस तीन बार अपनी सरकार भी बना चुकी है। यानी कि सोच कर देखें तो लोकतंत्र की मालिक जनता ने कांग्रेस को उसे उसके किये गलत की सज़ा भी दे चुकी है और उसे माफ भी कर चुकी है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ऐतिहासिक हार का कारण आम जनता की नजर में कांग्रेस सरकार की 2009 से 2014 तक के कार्यकाल की विफलता रही है। अगर ऐसी बात नहीं होती तो फिर 1984 के सिख दंगों के बाद के किसी भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार नहीं बननी चाहिए थी।

आखिर मोदी इन गड़े मुर्दे को क्यों उखाड़ रहे हैं?

आखिर मोदी इन गड़े मुर्दे को क्यों उखाड़ रहे हैं?

मोदी राजनीति के धुरंधर हैं। उनकी हर एक गतिविधि किसी खास मायने से होती है। उनकी नॉन पॉलिटिकल बातें भी पॉलिटिकल हो जाती हैं। उनकी नज़र भीड़ को वोट में बदलने के लिये हमेशा चौकस रहती है। वैसे इस मसले पर प्रधानमंत्री की आलोचना भी हुयी है यह कहकर की प्रधानमंत्री हमेशा इलेक्शन मोड में ही रहते हैं।

इस बार के लोकसभा चुनाव में युवा मतदाताओं की संख्या पिछले लोकसभा चुनाव के मतदाताओं से तुलनात्मक रूप में ज्यादा है। और उससे भी बड़ी बात यह है कि इन युवा मतदाताओं में लगभग आधे ऐसे युवा हैं जो पहली बार वोट डालेंगे। वो 'फर्स्ट टाइम वोटर' हैं।

इसमें कोई संशय नहीं कि राष्ट्रवाद का मुद्दा खून में उबाल ला देने वाला मुद्दा है। इन मुद्दों पर जोश हिलोरें मारने लगता है। युवाओं को 'सेंसेशनल' मुद्दे लुभाते भी हैं। मोदी युवाओं के इस मनोविज्ञान को समझते हैं। निश्चय ही इन मुद्दों को उछालकर वो युवाओं को अपने पक्ष में गोलबंद करना चाहते हैं। अपनी चुनावी सभा में उन्होंने डंके की चोट पर पहली बार वोट करने जा रहे युवाओं से अपील भी की है कि आप लोग अपना वोट पुलवामा हमले में शहीद हुये सैनिकों को समर्पित करने के लिये भाजपा को वोट दें। ऊपर से पुराने पड़े इन सारे प्रकरणों को सामने लाकर मोदी कांग्रेस के लिये राष्ट्रवाद के मुद्दे पर मुखर होने का कोई स्कोप छोड़ना नहीं चाहते हैं।

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मोदी के इन मुद्दों पर किये गये वार में कितनी धार है?

मोदी के इन मुद्दों पर किये गये वार में कितनी धार है?

कुल मिलाकर देखें तो ना ना करते हुये भी अंतिम चरण के चुनाव का मुद्दा गड़े मुर्दे उखाड़ कर उन पर फिर से बातें करने का हो गया है। आम जनता के मूल मुद्दे कहीं पीछे छूट गए हैं। विपक्षी पार्टियां हालांकि आम जनता के सरोकार की बातें जैसे किसान, गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा आदि की बातें कर रही हैं लेकिन मोदी के उछाले मुद्दे उनके मुद्दों पर हावी हो जा रहे हैं। अब सच में ऐसा ही है या नहीं यह कहना बहुत मुश्किल है। लेकिन कम से कम दिखने से तो ऐसा लगता है।

अधिकतर युवा मोदी को सपोर्ट करते दिखते हैं भले वो सपोर्ट करने की कोई तथ्यात्मक वजह नहीं बता पा रहे हों। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दे भाजपा के मंच से गायब हैं। इन सब पर राष्ट्रवाद का मुद्दा मुखर है। अब इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी की सरकार में घटित घटनाओं पर राष्ट्रवाद का तड़का लगाकर मोदी विपक्षी पार्टियों पर जो वार कर रहे हैं, उसका कितना फायदा उनकी पार्टी को मिलता है और उसमें कितनी धार है, चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा। लेकिन मोदी के छेड़े इन मुद्दों ने फिर से एक नई बहस की शुरुआत तो कर ही दी है।

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English summary
Lok sabha Elections 2019: Why Narendra Modi is unearthing the past in the last phases?
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