जिस इंदौर सीट से सुमित्रा महाजन आठ बार जीती, वो कांग्रेस के लिए क्यों बनी प्रतिष्ठा का सवाल
नई दिल्ली। इंदौर लोकसभा सीट से कांग्रेस ने पंकज संघवी का नाम तय किया है, जो कभी भाजपा के पार्षद हुआ करते थे। पार्षद रहते उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के प्रभाव में आकर कांग्रेस की सदस्यता ली थी। इसके बाद वे विधायक, महापौर और लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन किसी में भी उन्हें जीत हासिल नहीं हुई। कई लोग उनसे कहते है कि अगर आप भाजपा में ही होते, तो कब के सांसद बन चुके होते।
सुमित्रा महाजन इस दफा उम्मीदवार नहीं
सुमित्रा महाजन इस बार इंदौर से लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रही हैं। भाजपा के टिकट पर वे आठ बार उम्मीदवार बनी और आठों बार अच्छे खासे वोटों से जीतीं। सत्यनारायण पटेल और उनके पिता रामेश्वर पटेल दोनों बारी-बारी से सुमित्रा महाजन से हारे। सुमित्रा महाजन ने 1984 और 1989 में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाशचन्द सेठी को चुनाव हराया था, जिसके बाद प्रकाशचन्द सेठी का राजनीतिक वजूद ही खत्म हो गया।
चर्चा थी कि इंदौर से कांग्रेस जीतू पटवारी को उम्मीदवार बनाएगी, जो विधायक हैं और प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी रह चुके हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ जीतू पटवारी के पक्ष में नहीं थे और अंतत: पंकज संघवी ने बाजी मार ली।10 साल पहले इंदौर में हुए महापौर के चुनाव में पंकज संघवी कांग्रेस के सशक्त उम्मीदवार थे। भाजपा के दिग्गज नेता कृष्णमुरारी मोघे और संघवी ने महापौर के लिए टक्कर थी, जिसमें करीब 3 हजार वोटों से पंकज संघवी हार गए थे। इसके बाद वे इंदौर 5 विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार बनें, लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा के महेन्द्र हार्डिया से 14 हजार वोटों से हार गए।
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कांग्रेस ने पंकज संघवी को क्यों उतारा
कांग्रेस ने पंकज संघवी को जिन खूबियों के कारण टिकट दिया है, उनमें एक मुख्य बात यह मानी जाती है कि वे कांग्रेस की गुटीय राजनीति से अलग रहते है। इंदौर में गुजराती समाज एक प्रभावशाली समाज है। वे उसके प्रमुख हैं। गुजराती समाज इंदौर में प्राइमरी स्कूल से लेकर महाविद्यालय तक अनेक संस्थाएं संचालित करता है, जिनमें 1 लाख से भी अधिक विद्यार्थी पढ़ते है। पिछले तमाम चुनावों में इन शिक्षा संस्थाओं के कर्मचारी पंकज संघवी के पक्ष में कार्यकर्ता की तरह सक्रिय थे। इन कर्मचारियों को वे अपनी टीम का सदस्य मानते है। यही शायद उनकी प्रमुख शक्ति भी है।
पंकज संघवी का परिवार इंदौर में जैन समाज में भी सक्रिय है। उनका परिवार इंदौर का प्रमुख व्यवसायिक परिवार है और धन बल में वे किसी से कम नहीं है। छात्र राजनीति से चुनावी राजनीति में आए पंकज मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेहद विश्वसनीय थे। अर्जुन सिंह के निधन के बाद वे उनके बेटे राहुल सिंह के भी करीबी हैं। पंकज संघवी का इंदौर में एक दैनिक अखबार भी कई दशक से प्रकाशित हो रहा है और उसके माध्यम से वे मीडिया में अपनी पकड़ बनाए रहते है। कांग्रेस ने उन्हें टिकट देने के पहले इन सब बातों पर विचार किया होगा और जीतू पटवारी के प्रभाव का भी आंकलन किया होगा।
कांग्रेस से टिकट मांगने वालों की थी लंबी लाइन
इंदौर में गत 8 चुनाव में कांग्रेस नहीं जीती, लेकिन फिर भी कांग्रेस की तरफ से टिकट मांगने वालों की लंबी कतार थी। जीतू पटवारी, उनकी पत्नी रेणुका पटवारी, महिला कांग्रेस की शोभा ओझा, अर्चना जायसवाल, गजेन्द्र वर्मा, मोती सिंह पटेल, पूर्व विधायक अश्विन जोशी, अरविंद बागड़ी, अमय खुरासिया, स्वप्निल कोठारी, प्रीति अग्निहोत्री आदि कई दावेदार थे। कई लोग तो लोकसभा चुनाव लड़कर पार्टी में अपना कद बढ़ाना चाहते थे। कांग्रेस को भरोसा है कि इस बार सुमित्रा महाजन के न रहने से उनके लिए चुनाव आसान होगा। जिले की 9 में से 4 सीटें कांग्रेस के पास है। सोनकच्छ से जीतने वाले सज्जन सिंह वर्मा भी इंदौर के निवासी है और बाला बच्चन भी इंदौर में ही रहते है। इन सब बातों से कांग्रेस को लगता है कि वह ज्यादा शक्ति सम्पन्न है और चुनाव जीत सकती है।
सुमित्रा महाजन के बाद भाजपा के भीतर की लड़ाई पर भी कांग्रेस ललचाई हुई है। सुमित्रा महाजन के हिस्से आने वाले थोक के मराठी समुदाय के वोटों पर भी कांग्रेस की निगाहें है। पंकज संघवी अपने सामाजिक कार्यों का हवाला देते हुए चुनाव के मैदान में जुट गए है और दावा कर रहे है कि इस बार वे जीतेंगे ही। अगर वे जीते तो उनका एक 21 साल का इतिहास बदल जाएगा।
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