महागठबंधन के बावजूद कन्नौज में क्यों हारीं डिंपल यादव, जानिए पर्दे के पीछे की वजह
BSP के साथ गठबंधन के बावजूद सपा के मजबूत गढ़ कन्नौज में डिंपल यादव की हार के पीछे अंदर की एक गहरी वजह निकलकर सामने आ रही है।
नई दिल्ली। तमाम सियासी पंडितों की भविष्यवाणियों को पीछे छोड़ते हुए नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर इतिहास रच दिया है। 'मोदी मैजिक' और पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की रणनीति ने भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव में उस बुलंदी पर पहुंचा दिया है, जिसकी कल्पना शायद उनकी पार्टी के नेताओं ने भी नहीं की थी। यूपी में भाजपा का विजय रथ रोकने के लिए बना सपा-बसपा और आरएलडी का महागठबंधन भी मोदी की आंधी में नहीं टिक पाया। इस चुनाव में सपा के तीन मजबूत किले- बदायूं, कन्नौज और फिरोजाबाद ढह गए। कन्नौज सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव चुनाव लड़ीं थी, जिन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। चुनाव परिणाम बीतने के बाद अब कन्नौज में डिंपल यादव की हार के पीछे एक बड़ी वजह निकलकर सामने आ रही है।
तो ये है डिंपल यादव की हार की वजह
कन्नौज सीट पर डिंपल यादव को भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रत पाठक ने 12353 वोटों से हराया है। सुब्रत पाठक को 563087 और डिंपल यादव को 550734 वोट मिले। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव ने इसी सीट पर सुब्रत पाठक को 19907 वोटों के अंतर से हराया था और इस जीत में सबसे बड़ा योगदान अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव का था। दरअसल कन्नौज सीट पर हर चुनाव में मैनेजमेंट संभालने की जिम्मेदारी शिवपाल यादव को ही मिलती थी। शिवपाल यादव ना केवल जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं से लगातार संवाद बनाए रखते थे, बल्कि उनकी समस्याओं को सुनकर उनका तुरंत समाधान भी कराते थे। 2014 में भी शिवपाल यादव ने ही कन्नौज सीट पर मैनेजमेंट संभाला था और इसी की बदौलत मोदी लहर के बावजूद डिंपल यादव ने यहां जीत दर्ज की। 2019 के चुनाव में शिवपाल का ना होना डिंपल यादव की हार का एक बड़ा कारण बना।
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वो नेता, जिनकी नाराजगी सपा को ले डूबी
इसके अलावा कन्नौज सीट पर सपा के पुराने और स्थानीय नेताओं की नाराजगी भी डिंपल यादव की हार का कारण बनी। सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे शिवकुमार बेरिया, पूर्व ब्लॉक प्रमुख कुलदीप यादव, ब्लॉक प्रमुख अजय वर्मा और पूर्व विधायक अरविंद प्रताप सिंह ये वो नाम हैं, जो कभी सपा के खासमखास नेताओं में गिने जाते थे। इन सभी नेताओं की अपने-अपने इलाके में मजबूत पकड़ है। लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में इन नेताओं को अखिलेश यादव ने पार्टी से बाहर कर दिया, जिनकी नाराजगी का खामियाजा सपा को कन्नौज सीट पर भुगतना पड़ा। भाजपा ने इन्हीं नाराज नेताओं के साथ मिलकर रणनीति बनाई और सुब्रत पाठक की जीत की दहलीज तक पहुंचाया।
मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र भी हारे
आपको बता दें कि कन्नौज सीट के अलावा सपा ने इस चुनाव में बदायूं और फिरोजाबाद सीट भी गंवा दी है। बदायूं सीट से पूर्व सांसद और मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव को हार का सामना करना पड़ा है। बदायूं में भाजपा की महिला नेता संघमित्रा मौर्य ने धर्मेंद्र यादव को 18384 वोटों के अंतर से हरा दिया। संघमित्रा मौर्य को 510343 और धर्मेंद्र यादव को 491959 वोट मिले। चुनाव नतीजों के दिन इस सीट पर कांटे का मुकाबला देखने को मिला। कभी संघमित्रा मौर्य आगे निकलतीं तो कभी धर्मेंद्र यादव उनपर लीड हासिल कर लेते। हालांकि अंतिम राउंड की गिनती में संघमित्रा मौर्य ने बदायूं सीट पर जीत हासिल करते हुए सपा के इस मजबूत किले पर भगवा परचम लहरा दिया। कांग्रेस ने यहां से पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम इकबाल शेरवानी को टिकट दिया था, जो तीसरे नंबर पर रहे और उन्हें महज 51896 वोट ही मिल पाए।
हार के बाद नए मिशन में जुटे अखिलेश
वहीं, लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद अखिलेश यादव ने शनिवार को कार्यकर्ताओं को दिए अपने पहले संदेश में कहा, 'समाजवादी पार्टी का हर कार्यकर्ता अब 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट जाए और यह काम आज से ही शुरू कर दें। सपा कार्यकर्ता घर-घर जाएं और अभियान चलाकर प्रदेश व केंद्र सरकार की जन-विरोधी नीतियों के बारे में लोगों को बताकर उन्हें जागरुक करें। देश और प्रदेश में महापरिवर्तन लाने के लिए हमारी कोशिशें जारी रहेंगी। पार्टी के कार्यकर्ता समाज के हर वर्ग, खासकर गरीब और कमजोर तबके तक पहुंचे और उन्हें जागरूक करें। आज प्रदेश के युवा गंभीर संकट में हैं। इसके लिए हमें कॉलेज, यूनिवर्सिटी हर जगह जाना होगा, उनकी बातें सुननी होंगी। सपा की सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान सबसे ज्यादा विकास किया और विकास के दम पर 2022 में हम फिर से सत्ता में लौटेंगे।'
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