जहानाबाद में जदयू और राजद दोनों क्यों हैं परेशान?
पटना। जहानाबाद लोकसभा सीट पर सातवें और आखिरीचरण में 19 मई को चुनाव है। चुनावी तस्वीर एक हद तक शक्ल लेने लगी है। इस सीट पर जदयू और राजद, दोनों की परेशानी झेलनी पड़ रही है। दोनों अपनों के विरोध से परेशान हैं। राजद की मुसीबत दोहरी है। इस सीट पर भाकपा माले के चुनाव लड़ने का खामियाजा राजद को ही उठाना होगा क्यों कि दोनों ही गरीब, पिछड़े और दलित वोटों को अपना मानते हैं। जदयू से भूमिहार वोटर नाराज चल रहे हैं। यहां के मौजूदा सांसद अरुण कुमार अपनी खुद की पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि उनकी स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है। लेकिन वे अपने स्वजातीय भूमिहार वोटरों की नाराजगी का फायदा उठाना चाहते हैं।
क्या है जदयू की चिंता ?
जदयू एनडीए का हिस्सा है। इस चुनाव में जदयू ने टिकट वितरण में अतिपिछड़ों पर अधिक फोकस किया है। जहानाबाद में जदयू ने अति पिछड़े समुदाय से आने वाले चंद्रेश्वर चंद्रवंशी को टिकट दिया है। एनडीए के तीनों दलों ने केवल-एक एक भूमिहार प्रत्याशी को टिकट दिया है। अपनी उपेक्षा से भूमिहार समुदाय जदयू से नाराज है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने खुद उनकी नाराजगी को दूर करने की कोशिश की। लेकिन जहानाबाद में अभी भी बात नहीं बन पायी है। जहानाबाद में भूमिहार वोटरों की संख्या करीब ढाई से पौने तीन लाख के बीच है। इस सीट पर सर्वाधिक वोटरों की यह दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। पहले पायदान पर यादव हैं। इस सीट पर या तो यादव या फिर भूमिहार प्रत्याशी की जीत होती रही है। भूमिहार एनडीए के परम्परागत वोटर रहे हैं। भूमिहार वोटरों की नाराजगी से जदयू का खेमा सहमा हुआ है। जदयू अपने भूमिहार नेताओं को गांव-गांव भेज रहा है। भाजपा के भूमिहार नेता भी जदयू के लिए बैटिंग कर रहे हैं। लेकिन एनडीए के नेताओं से यही पूछा जा रहा है कि जब जदयू ने 2009 में यहां से भूमिहार प्रत्याशी को टिकट दिया था तब इस बार क्यों भूला दिया गया। 2009 में इस सीट पर जदयू के जगदीश शर्मा जीते थे। चारा घोटाला में सजायाफ्ता होने के बाद अब वे चुनाव राजनीति से दूर हैं। 2014 में भी जदयू ने इस सीट भूमिहार समुदाय के अनिल कुमार शर्मा को टिकट दिया था।
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सांसद अरुण कुमार की विकट स्थिति
2014 के लोकसभा चुनाव में अरुण कुमार रालोसपा के टिकट पर जीते थे। वे भूमिहार समुदाय से आते हैं। अब अरुण कुमार रालोसपा के अलग हो चुके हैं। जब महागठबंधन में उनको जगह नहीं मिली तो अब वे अपनी नयी नवेली पार्टी राष्ट्रीय समता पार्टी सेक्यूलर के बेनर पर चुनाव लड़ रहे हैं। वे एक तरह निर्दलीय ही चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी पार्टी की कोई हैसियत नहीं है। फिलहाल उनको अपनी जाति के अलावा कोई और मददगार नहीं दिख रहा। अरुण कुमार जहानाबाद के प्रभावशाली नेता रहे हैं। लेकिन एनडीए के बिना उनकी ताकत कुछ भी नहीं। अब उनकी नजर जदयू से नाराज भूमिहार वोटरों पर टिकी हुई है। अरुण मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ये आसान नहीं है। अभी तक सवर्ण वोटरों ने एनडीए को ही अपना समर्थन दिया है।
राजद की परेशानी
राजद ने इस सीट पर अपने दबंग विधायक सुरेन्द्र यादव को खड़ा किया है। पिछले दो लोकसभा चुनाव से सुरेन्द्र यादव की हार हो रही है। लालू के बड़े पुत्र तेजप्रताप यादव ने इसी को मुद्दे बना कर सुरेन्द्र यादव का विरोध किया है। तेज का कहना है कि दो बार हारने वाले को प्रत्याशी बनाने की बजाय किसी नये चेहरे को मौका दिया जाना चाहिए था। तेज ने इस सीट से अपनी पसंद के उम्मीदवार चंद्रप्रकाश को खड़ा किया है। राबड़ी देवी के समझाने पर तेजप्रताप, चंद्रप्रकाश के नामांकन में तो नहीं आये लेकिन अब उनकी बगावत और भड़क गयी है। चुनाव प्रचार के लिए जब तेजस्वी के हेलीकॉप्टर में तेजप्रताप को जगह नहीं मिली तब से वे और भड़के हुए हैं। तेज का बगावती अंदाज सुरेन्द्र यादव के लिए नुकसनदेह हो सकता है। इस सीट पर भाकपा माले की कुंती देवी चुनाव लड़ रही हैं। पिछले चुनाव में माले को यहां 35 हजार से अधिक वोट मिले थे। लेकिन इस बार माले ने दलित और पिछड़े वोटरों को गोलबंद करने के लिए बहुत मेहनत की है। माले को जितना अधिक वोट आएगा, राजद को उतना नुकसान उठाना पड़ेगा।