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जब वाजपेयी की सभा फ्लॉप कराने के लिए इंदिरा ने दूरदर्शन पर दिखवाई फिल्म बॉबी

By अशोक कुमार शर्मा
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नई दिल्ली। क्या किसी नेता की रैली के फ्लॉप करने के लिए फिल्म का सहारा लिया जा सकता है ? आज के दौर में ये बात बेतुकी लग सकती है लेकिन 42 साल पहले भारत की राजनीति में ऐसा हुआ था। उस जमाने में फिल्मों का आकर्षण किसी जादू की तरह था। फिल्मों के लिए दिवानगी ऐसी थी कि लोग टिकट के लिए सुबह से ही भूखे-प्यासे लाइन में लग जाते थे। 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोगों के इस जुनून का सियासी फायदा उठाने की कोशिश की थी। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी और बिहार के चर्चित नेता जगजीवन राम ने अपनी काबिलियत से इस कोशिश को नाकाम कर दिया था।

18 जनवरी 1977 : राजनीतिक परिदृश्य -1

18 जनवरी 1977 : राजनीतिक परिदृश्य -1

18 जनवरी 1977, मुकाम दिल्ली। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो पर राष्ट्र के नाम एक संदेश प्रसारित किया। अपने संबोधन में इंदिरा गांधी ने अचनाक घोषणा कर दी कि मार्च 1977 में आम चुनाव कराया जाएगा। उन्होंने लोकसभा भंग करने का भी एलान कर दिया। उस समय देश में इमरजेंसी जारी थी। विपक्ष के सभी प्रमुख नेता जेल में बंद थे। जेल में बंद नेताओं ने एक सुर से कहा कि इमरजेंसी के रहते निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं है। इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा कर संसद का कार्यकाल दो साल तक के लिए बढ़ा दिया था। इस हिसाब लोकसभा चुनाव मार्च 1978 में संभावित था। लेकिन इंदिरा गांधी ने मार्च 1977 में ही चुनाव कराने की घोषणा कर दी। दिल्ली का तिहाड़ जेल उस समय विपक्षी नेताओं की गतिविधियों केन्द्र बन गया। जॉर्ज फर्नांडीस ने इमरजेंसी में चुनाव को धोखा करार दिया और उसके बहिष्कार की बात कही। कुछ नेता चुनाव लड़ने के पक्ष में थे और इसको इमरजेंसी के खिलाफ एक हथियार बनाना चाहते थे। इस बीच जयप्रकाश नारायण को स्वास्थ्य के आधार पर जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से बाहर आते ही जेपी ने चुनाव लड़ने का समर्थन किया और एक संगठित विपक्षी दल बनाने की वकालत की। विपक्ष के प्रमुख दल एक पार्टी बनाने के लिए राजी हो गये। बहुत से नेता जेल से रिहा कर दिये गये। जनता पार्टी का गठन हुआ। जॉर्ज फर्नांडीस और नानजी देशमुख को तब तक जेल में रखा गया जब तक कि चुनाव खत्म नहीं हो गये।

30 जनवरी 1977 : राजनीतिक परिदृश्य - 2

30 जनवरी 1977 : राजनीतिक परिदृश्य - 2

अटल बिहारी वाजपेयी और मोरारजी देसाई 30 जनवरी को दिल्ली के चांदनी चौक में एक रैली करने वाले थे। रैली की मंजूरी के लिए जब स्थानीय प्रशासन को आवेदन दिया गया तो उसे खारिज कर दिया गया। इमरजेंसी का खौफ जारी था लेकिन उसका विरोध भी बढ़ गया था। सरकार विपक्ष को मजबूत होते नहीं देखना चाहती थी। प्रशासन ने विधि व्यवस्था का हवाला देकर सभा के लिए मंजूरी नहीं दी। यह रैली रामलीला मैदान में शिफ्ट कर दी गयी। इंदिरा गांधी ने ऐसा कर के खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। अटल बिहारी वाजपेयी को सुनने के लिए लोगों की भारी भीड़ जुटी। वाजपेयी ने अपने चिरपरिचित अंदाज में मंत्रमुग्ध करने वाल भाषण शुरू किया-

बड़ी मुद्द्त के बाद मिले हैं दीवाने,

कहने सुनने को बहुत हैं अफसाने,

आओ जल्दी से कर लें दो बातें,

ये आजादी कब तक रहेगी, कौन जाने।

इमरजेंसी के निरंकुश शासन के बावजूद इस रैली में लोगों की जो भीड़ उमड़ी उससे इंदिरा गांधी विचलित हो गयीं। विपक्ष का पहला तीर ही निशाने पर जा बैठा। इंदिरा सरकार घबरा गयी।

2 फरवरी 1977 : राजनीतिक परिदृश्य - 3

2 फरवरी 1977 : राजनीतिक परिदृश्य - 3

2 फरवरी 1977 को कांग्रेस के दिग्गज नेता और बिहार के सासाराम से सांसद जगजीवन राम ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। उनके साथ हेमवती नंदन बहुगुणा और नंदिनी सतपथी ने भी कांग्रेस छोड़ दी। इंदिरा गांधी को जोरदार झटका लगा। इंदिरा गांधी ने जगजीवन राम को खूब खरी खोटी सुनायी। उन्होंने जगजीवन राम से सवाल किया कि जब सरकार में मंत्री थे तब इमरजेंसी के बारे में क्यों नहीं कुछ कहा, अगर कहीं ज्यादती हो रही थी तो क्यों नहीं बताया ? इंदिरा गांधी को जवाब देने के लिए जगजीवन राम ने 6 फरवरी को रामलीला मैदान में एक रैली बुलायी। इसमें जनता पार्टी के अटल बिहार बाजपेयी समेत अन्य प्रमुख नेताओं को भी बुलाया। इस सभा के प्रस्ताव से इंदिरा गांधी भयभीत हो गयीं। वे 30 जनवरी को वाजपेयी और मोरारजी देसाई की एक सफल सभा देख चुकी थीं। अब तो कांग्रेस एक मजबूत धड़ा टूट कर जनता पार्टी के साथ आ गया था। लोग इमरजेंसी से त्रस्त थे। जगजीवन राम की रैली के लिए जबर्दस्त माहौल तैयार हो चुका था।

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6 फरवरी 1977 - राजनीतिक परिदृश्य - 4

6 फरवरी 1977 - राजनीतिक परिदृश्य - 4

उस समय विद्या चरण शुक्ल केन्द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री थे। उन्होंने इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि अगर इस रैली के समय कोई सुपर हिट फिल्म दूरदर्शन पर दिखायी जाए तो ये फ्लॉप हो सकती है। नौजवानों को प्रभावित करने के लिए सुपर हिट फिल्म बॉबी को दिखाने का फैसला लिया गया। दूरदर्शन पर फिल्म बॉबी के प्रदर्शन का खूब प्रचार किया गया। इसके अलावा सरकार ने उस दिन दिल्ली में बसों के परिचालन पर भी रोक लगा दी थी। इंदिरा गांधी हर हार में रैली को फेल करना चाहती थी। फिल्म बॉबी दिखायी गयी। बसें भी नहीं चलीं। लेकिन इसके बावजूद ये रैली बेहद कामयाब रही।

रामलीला मैदान में अपार जनसमूह उमड़ चुका था। इतनी भीड़ पहले कभी नहीं देखी गयी। मंच पर जगजीवन राम, अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य प्रमुख नेता आसन ग्रहण कर चुके थे। जगजीवन राम ने भाषण शुरू किया सबसे पहले उन्होंने इंदिरा गांधी के सवाल का जवाब दिया। उन्होंने कहा - मैं इमरजेंसी की गलतियों को कैसे बताता ? अगर बता देता तो ‘जगजीवन' कहीं होते और ‘राम' कहीं और। इतना कहते ही सभा में कई मिनट तक शोर उभरता रहा। फिर वाजपेयी ने ऐसा समां बांधा कि लोग देर शाम तक सभा में जमे रहे।

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English summary
lok sabha elections 2019 when Indira Gandhi tried to flop atal bihari vajpayee rally Bobby on doordarshan
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