जब बाढ़ में हारते-हारते बचे नीतीश तो वाजपेयी ने किया था फोन
पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बाढ़ संसदीय क्षेत्र से आत्मीय संबंध रहा है। परिसीमन के बाद यह मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। 29 अप्रैल को यहां लोकसभा चुनाव होने वाला है। इस सीट पर जदयू के ललन सिंह का मुकाबला बाहुबली विधायक अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी से है। यहां कांटे की लड़ाई है। ऐसे में नीतीश कुमार बाढ़ से अपने पुराने सरोकारों की याद दिला कर ललन सिंह के लिए वोट मांग रहे हैं। नीतीश के मुतबिक अगर इस इलाके के वोटरों ने उनकी राष्ट्रीय पहचान नहीं बनायी होती तो वे कभी नहीं मुख्यमंत्री बनते।
नीतीश का बाढ़ से क्या है पुराना रिश्ता
नीतीश कुमार का बचपन बख्तियारपुर में गुजरा है। उनके पिता यहां के चर्चित वैद्य थे। बख्तियारपुर पहले बाढ़ संसदीय क्षेत्र का हिस्सा था। अब यह मुंगेर सीट का हिस्सा है। नीतीश कुमार 1985 में पहली बार नालंदा के हरनौत से विधायक बने थे। इसके पहले वे दो चुनाव हार चुके थे। 1989 में जब वीपी सिंह के नेतृत्व में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव के खिलाफ जन मोर्चा ने चुनावी बिगुल फूंका तो उसमें नीतीश कुमार भी शामिल हुए। उस समय लालू यादव बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। नीतीश कुमार विधायक थे और जनता दल के महासचिव भी। दोनों में तब गहरी दोस्ती थी। नीतीश बाढ़ लोकसभा क्षेत्र चुनाव मैदान में उतरे तो लालू यादव छपरा से मैदान में कूदे। नीतीश कुमार 1989 में पहली बार बाढ़ संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गये। पहली बार सांसद बने और केन्द्र में मंत्री भी बनाये गये। वी पी सिंह के मंत्रिपरिषद में उन्हें कृषि राज्यमंत्री के रूप में शामिल किया गया। इसके बाद ही वे राष्ट्रीय राजनीति में पहचान बना पाये। नीतीश कुमार लगातार पांच बार 1989,1991,1996,1998 और 1999 में यहां से सांसद चुने गये।
इसे भी पढ़ें:- जब ट्रेन में आमने-सामने की सीट पर बैठे रो रहे थे शत्रुघ्न और पूनम सिन्हा
1999 में निर्णायक मोड़
1999 के लोकसभा चुनाव में नीतीश इस सीट पर हारते-हारते बचे थे। वे वाजपेयी सरकार में मंत्री थे। लेकिन उस समय बिहार में राबड़ी देवी की सरकार थी। राजद मजबूत स्थिति में था। तब तक नीतीश और लालू में आर-पार की लड़ाई शुरू हो चुकी थी। उस समय बैलेट पेपर पर चुनाव होता था। मतों की गिनती कई दिनों तक चलती थी। इस चुनाव में नीतीश का मुकाबला राजद के विजय कृष्ण से था। मतों की गिनती में कभी नीतीश आगे रहते तो कभी विजय कृष्ण। आखिरी लम्हों में नीतीश के हारने का अंदेशा होने लगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, नीतीश कुमार से आत्मीय लगाव रखते थे। जब उन्हें इस बात का पता चला तो उन्होंने नीतीश कुमार फोन किया और चुनावी स्थिति के बारे में पूछा, क्या कोई चिंता की बात है ? तब नीतीश ने उन्हें आश्वस्त किया कि जीत उनकी ही होगी। जब मतों की गिनती समाप्त हुई तो नीतीश कुमार 1335 मतों के मामूली अंतर से ही जीत पाये।
2004 में नीतीश का टूट गया था दिल
नीतीश कुमार बाढ़ संसदीय क्षेत्र को अपना दूसरा घर मानते थे। उनका गृह जिला नालंदा है। 2004 के लोकसभा चुनाव के समय नीतीश को पिछले चुनाव के कड़वे अनुभव ने विचलित कर दिया था। उनके मन में हार का भय समा गया। तब उन्होंने दो सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला किया। उनको अपने पुस्तैनी घर की याद आयी। नीतीश ने बाढ़ और नालंदा दो सीटों से पर्चा दाखिल किया। इसकी वजह से नालंदा सीट से जार्ज फर्नांडीस को हटना पड़ा था। जब चुनाव का रिजल्ट निकला तो उनकी आशंका सच साबित हुई। दरअसल 2004 में एनडीए के खिलाफ हवा थी। वाजपेयी सरकार की हार हुई थी। विजय कृष्ण बाढ़ में लगातार सक्रिय थे। नीतीश कुमार बाढ़ लोकसभा सीट पर चुनाव हार गये उन्हें विजय कृष्ण ने करीब 36 हजार वोटों से हरा दिया। वो तो गनिमत थी कि नालंदा ने नीतीश की लाज बचा ली वर्ना वे 2004 में सांसद भी नहीं बन पाते। यह चुनाव बाढ़ सीट के लिए आखिरी चुनाव साबित हुआ। 2009 में परिसीमन के बाद यह सीट मुंगेर हो गयी।
2019 में पुराने दिनों की याद दिला कर मांग रहे वोट
2005 में नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में ऐसा पांव जमाया कि आज तक कोई उसे उखड़ा नहीं पाया। वे जब मुख्यमंत्री बने तो अपने पुराने चुनाव क्षेत्र को भूले नहीं। 2004 में हार के बाद भी उन्होंने बाढ़-मोकामा टाल के विकास के लिए बहुत कुछ किया। पहले टाल इलाके में सड़कें नहीं थीं। चुनाव के दौरान उन्हें वोट मांगने के लिए 18 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा था। जब से सीएम बने तो उन्हें ये बात याद थी। आज इस इलाके में न केवल सड़कें हैं बल्कि घर-घर तक बिजली पहुंच गयी है। वे मुख्यमंत्री इस लिए बन सके क्यों कि उनको इस इलाके ने राजनीति में एक पहचान दिलायी। वाजपेयी सरकार में मंत्री बनने के बाद उनके कद में इजाफ हुआ। लोकप्रियता बढ़ी। 2005 तक आते-आते नीतीश बिहार में सबसे बड़ा चुनावी चेहरा बन गये। नीतीश अब इस चुनाव क्षेत्र (मुंगेर) में घूम-घूम कर जनता के अपार समर्थन के लिए आभार जता रहे हैं और ललन सिंह के लिए वोट मांग रहे हैं। नीतीश की ये अदा बाहुबली अनंत सिंह के लिए चुनौती बनी हुई है।
अपने पसंदीदा नेता से जुड़े रोचक फैक्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें