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लोकसभा चुनाव 2019: पश्चिम बंगाल : ममता बनर्जी को गढ़ में घेर पाएगी टीम मोदी?

ममता बनर्जी को सत्ता में आने के बाद पहली बार चुनावों में कड़ी चुनौती मिल रही है. लेकिन ममता का पूरा राजनीतिक करियर ही ऐसी चुनौतियों से जूझते ही गुजरा है. ऐसे में इस बार भी वो एक इंच जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं. लेकिन इससे राज्य के कई, ख़ासकर सीमावर्ती इलाकों में भारी हिंसा का अंदेशा है."

By BBC News हिन्दी
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ममता बनर्जी
Sanjay Das
ममता बनर्जी

इस युद्ध की ज़मीन तो बहुत पहले से ही तैयार हो रही थी लेकिन चुनावों के एलान के बाद से ही दोनों सेनाएं अपने हथियारों और रणनीति के साथ मैदान में डटने लगीं हैं.

इस युद्ध में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, ये कहना मुश्किल है. साथ ही यह बताना भी मुश्किल है कि कौन 'कौरव' साबित होगा और कौन 'पांडव'. लेकिन एक बात जो पक्के तौर पर कही जा सकती है वो ये है कि पश्चिम बंगाल इस बार के लोकसभा चुनाव में कुरुक्षेत्र के मैदान में बदलता जा रहा है.

इस चुनावी समर में राज्य की सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने हैं. दोनों दलों के बीच तेज़ होती ज़ुबानी जंग से ये तो पहले ही साफ़ हो गया है कि देश के जिन राज्यों में दो प्रतिद्वंद्वियों के बीच इस बार कांटे की टक्कर होनी है उनमें पश्चिम बंगाल शीर्ष पर है.

अमित शाह
Sanjay Das
अमित शाह

राज्य की 42 सीटों पर महज दोनों दलों की ही निगाहें नहीं टिकी हैं बल्कि, दूसरे राजनीतिक दल, चुनावी पंडित और देशी-विदेशी मीडिया भी बेहद दिलचस्पी से इस युद्ध पर नज़रें गड़ाए बैठी है. और ऐसा हो भी क्यों नहीं? इस बार केंद्र की सत्ता का एक मज़बूत रास्ता पश्चिम बंगाल से ही निकलने की उम्मीद है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी जहां अपनी सीटों की तादाद 34 से बढ़ाकर विपक्षी महागठजोड़ में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर अपना दावा मज़बूत करने का प्रयास कर रही हैं, वहीं बीजेपी उत्तर भारतीय राज्यों में होने वाले संभावित नुक़सान की भरपाई बंगाल से करना चाहती है. ऐसे में दोनों पार्टियां साम-दाम-दंड-भेद का सहारा लेते हुए इस पुरानी कहावत को चरितार्थ करने में जुटी हैं कि 'युद्ध और प्यार में सबकुछ जायज है'.

आख़िर ये चुनाव उनके लिए किसी युद्ध से कम नहीं है.

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ममता बनर्जी
Sanjay Das
ममता बनर्जी

लेफ़्ट का 'लाल किला' ढहाने वाली ममता

तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी राजनीति की बहुत पुरानी खिलाड़ी हैं. कांग्रेस से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाने के बाद उन्होंने महज 13 साल के भीतर जिस तरह उसे बंगाल की सत्ता में पहुंचाया उसकी दूसरी मिसाल कम ही देखने को मिलती है. उस दौर में बंगाल में लेफ़्ट के 'लाल किले' को ढहाना तो दूर उसमें सुराख़ तक बनाने की कल्पना नहीं की जा सकती थी. लेकिन ममता ने तृणमूल कांग्रेस के गठन के बाद बंगाल के इस 'लाल किले' को ढहाते हुए अपनी पार्टी को शून्य से शिखर तक पहुंचा दिया.

विपक्ष में रहते हुए वो हमेशा लेफ़्टफ़्रंट पर वैज्ञानिक तरीके से धांधली करने और बूथ लूटने के आरोप लगाती रही थीं. शुरुआती नाकामियों के बाद आखिर उन्होंने लेफ़्ट के फ़ॉर्मूले से ही सबसे मजबूत गढ़ में उसे शिकस्त देने में कामयाबी हासिल की. इसके साथ कई अन्य वजहें भी रहीं. आम लोगों से ममता के भावनात्मक संबंधों की भी इस कामयाबी में अहम भूमिका रही.

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ममता बनर्जी
Sanjay Das
ममता बनर्जी

नोटबंदी हो या जीएसटी, सब पर घेरा

चाहे नोटबंदी हो, जीएसटी हो या अन्य मुद्दे, ममता केंद्र की एनडीए सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ सबसे मुखर नेताओं में से एक रही हैं.

उन्होंने बीते साल ही एनडीए के खिलाफ विपक्ष के महागठजोड़ की कवायद शुरू की थी और बीती 19 जनवरी को कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में तमाम विपक्षी नेताओं और लाखों की भीड़ जुटा कर अपनी ताकत का भी प्रदर्शन कर दिया.

ममता अब राज्य की तमाम 42 सीटों पर जीत के दावे कर चुकी है और अगर अतीत के पन्ने पलटें तो उनके दावे अक्सर सही साबित होते रहे हैं.

ममता बीजेपी पर राजनीतिक बदले की भावना से काम करने और विपक्ष के खिलाफ़ केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करने के आरोप लगाती रही हैं. शारदा चिटफ़ंड घोटाले के सिलसिले में कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से सीबीआई की पूछताछ की कोशिशों के विरोध में वे 48 घंटे तक धरने पर भी बैठी थीं.

ये अपने आप में एक अप्रत्याशित फैसला था. ममता का मक़सद केंद्र को ये संदेश देना था कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस किसी भी हालत में अपनी एक इंच जमीन छोड़ने के लिए भी तैयार नहीं है.

दूसरी ओर, साल 2014 के लोकसभा चुनावों में दो सीटें जीतने के बाद से ही हर चुनाव में बीजेपी यहां कांग्रेस और सीपीएम को धकेलते हुए नंबर दो के तौर पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराती रही है. ये बात अलग है कि नंबर एक और नंबर दो के बीच का फ़ासला बहुत ज्यादा रहा है. लेकिन इन चुनावों को सेमीफ़ाइनल और 2021 के विधानसभा चुनावों को फ़ाइनल बताने वाली बीजेपी ने अबकी यहां अपनी सीटों की ताकत बढ़ाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है.

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पश्चिम बंगाल में बीजेपी
Sanjay Das
पश्चिम बंगाल में बीजेपी

ममता का फ़ॉर्मूला आजमा रही है बीजेपी

दिलचस्प बात ये है कि अब बीजेपी भी ममता बनर्जी के खिलाफ़ उनके ही आज़माए फ़ॉर्मूले का इस्तेमाल कर रही है. इसके लिए वह राज्य सरकार, पुलिस औरर प्रशासन के खिलाफ़ चुनाव आयोग में लगातार शिकायतों का अंबार लगा कर दबाव बढ़ाने में जुटी है. बीजेपी की दलील है कि सात चरणों में चुनाव कराने के आयोग के फ़ैसले से साफ़ है कि राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह ध्वस्त हो गई है. पार्टी ने अपनी दलील के समर्थन में बीते साल हुए पंचायत चुनावो के दौरान हुए भारी हिंसा की भी मिसाल दी है.

बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा कहते हैं, "सात चरणों में चुनाव कराने की वजह यह है कि आयोग मुक्त व निष्पक्ष चुनावों के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती कर सके."

बीजेपी चुनाव प्रबंधन समिति के प्रमुख मुकुल रॉय कहते हैं, "सात चरणों में चुनाव कराने के फैसले से साफ है कि बंगाल में लोकतंत्र और हिंसा की स्थिति कितनी गंभीर है. हमने चुनाव आयोग को सौंपी रिपोर्ट में बताया था कि पंचायत चुनावों के दौरान 34 फ़ीसदी सीटों पर उम्मीदवार निर्विरोध जीते थे. विपक्ष को नामांकन पत्र तक दायर नहीं करने दिया गया और 100 से ज्यादा लोग हिंसा की बलि चढ़ गए."

बीजेपी प्रमुख अमित शाह ने प्रदेश नेतृत्व को राज्य की कम से कम 23 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है. लेकिन प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "मुक्त और निष्पक्ष चुनाव होने की स्थित में हम यहां 26 सीटें जीत सकते हैं. बीते साल पंचायत चुनावो के दौरान हुई भारी हिंसा के निशान अब तक सूखे नहीं हैं."

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पश्चिम बंगाल
Sanjay Das
पश्चिम बंगाल

बीजेपी की हिंसा और बूथ लूट की आशंका

बीजेपी इस बार भी बड़े पैमाने पर हिंसा और बूथ लूट का अंदेशा जता रही है. इसी सप्ताह बीजेपी के एक प्रतिनिधमंडल ने चुनाव आयोग से पश्चिम बंगाल को 'अति संवेदनशील क्षेत्र' की श्रेणी में रखने की अपील की है. पार्टी ने आयोग से राज्य के हर मतदान केंद्र में बड़े पैमाने पर केंद्रीय बल के जवानों को तैनात करने और मीडिया पर निगाह रखने के लिए भी पर्यवेक्षक नियुक्त करने का अनुरोध किया है. विपक्षी दलों के बढ़ते दबाव की वजह से ही उप-चुनाव आयुक्त सुदीप जैन शनिवार को तमाम राजनीतिक दलों और पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों के साथ के साथ मुलाकात करने कोलकाता आएंगी..

चुनाव आयोग से बीजेपी की मुलाकात, उसकी शिकायतों और आरोपों से ममता बेहद नाराज़ हैं. वो कहती हैं, "राज्य को अति संवेदनशील करार देने की मांग बंगाल के लोगों का अपमान है और लोग ही बीजेपी को इस अपमान का करारा जवाब देंगे."

ममता कहती हैं कि क़ानून और व्यवस्था राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है. लेकिन केंद्र सरकार हर मामले में टांग अड़ाने का प्रयास कर रही है.

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ममता बनर्जी
Sanjay Das
ममता बनर्जी

ममता का सवाल, इतना क्यों डर रकही है बीजेपी?

ममता बनर्जी ने कहा, "बीजेपी मानसिक रोग से पीड़ित मरीज़ के तौर पर व्यवहार कर रही है. तमाम केंद्रीय एजंसियां उसके हाथों में है. ऐसे में वह इतना डर क्यों रही है? ममता ने कहा है कि लोग इस अपमान का जवाब बीजेपी को ज़रूर देंगे. बंगाल में राष्ट्रपति शासन नहीं है. यहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई एक सरकार सत्ता में है."

ममता ने बीजेपी को चेतावनी दी है कि वो बंगाल के लोगों को क़मतर आंकने की गलती मत करे. लोग उसका सूपड़ा साफ कर देंगे.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस बार पूरे देश में पश्चिम बंगाल ही सबसे गंभीर चुनावी घमासान का गवाह बनेगा. इसकी ज़मीन तो बहुत पहले से ही तैयार हो रही थी. लेकिन अब इस युद्ध में अचानक तेजी आ गई है और दोनों पक्षों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है.

राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ पंडित कहते हैं, "ममता बनर्जी को सत्ता में आने के बाद पहली बार चुनावों में कड़ी चुनौती मिल रही है. लेकिन ममता का पूरा राजनीतिक करियर ही ऐसी चुनौतियों से जूझते ही गुजरा है. ऐसे में इस बार भी वो एक इंच जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं. लेकिन इससे राज्य के कई, ख़ासकर सीमावर्ती इलाकों में भारी हिंसा का अंदेशा है."

उत्तर बंगाल के एक कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मोहित चंद्र दास कहते हैं, "अपने पैरों तले की ज़मीन मजबूत करने के इरादे से तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने एक-दूसरे खिलाफ़ अपने तरकश से तीरों के हमले शुरू कर दिए हैं. बंगाल में लोकसभा के चुनाव इतने अहम कभी नहीं रहे. दरअसल, दोनों दावेदारों ने इसे निजी साख़ का सवाल बना लिया है. इसके अलावा ऐसा करना उनकी मजबूरी भी है."

पर्यवेक्षकों का कहना है कि दोनो पक्षों के युद्ध हुंकार की वजह से अबकी राज्य में चुनाव दिलचस्प तो होंगे ही, उनके हिंसक होने का भी अंदेशा है. आख़िर राज्य की 42 सीटें किसी भी पार्टी या गठजोड़ का भविष्य तय करने में अहम भूमिका जो निभा सकती हैं.

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English summary
Lok Sabha Elections 2019 West Bengal Will Mamata Banerjee be able to surround her in the fort
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