पश्चिम बंगाल में अंतिम चरण में भी हिंसा और भाजपा के आरोपों का मतलब
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में आखिरी चरण के मतदान के दौरान भी हिंसा की वारदातें हुईं। यह तब हुई जब कुछ ही दिन पहले हुई व्यापक हिंसा के बाद चुनाव आयोग ने काफी सख्ती दिखाई थी। आयोग ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अनुच्छेद 324 का भी इस्तेमाल किया और चुनाव प्रचार भी काफी पहले समाप्त कर दिया था। कई बड़े अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी की थी। इसके बाद यह अनुमान लगाया जाने लगा था कि कम से कम अंतिम चरण में ऐसे इंतजाम किए जाएंगे कि हिंसा न होने पाए। लेकिन शांतिपूर्ण मतदान के बजाय इस चरण में भी हिंसा हुई और एक तरह से कहा जाए कि चुनाव आयोग हिंसा रोकने में नाकामयाब ही साबित हुआ। इस हिंसा को लेकर रक्षा मंत्री औऱ भाजपा नेता निर्मला सीतारमन का बहुत सख्त बयान भी आया जिसमें उन्होंने आशंका जताई है कि चुनावों के बाद पश्चिम बंगाल में व्यापक नरसंहार को अंजाम दिया जा सकता है। जाहिर है इस तरह की आशंका के पीछे के कारणों का उन्हें अंदाजा होगा और अगर वाकई ऐसा कुछ है तो हालात की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन अगर यह केवल एक राजनीतिक वक्तव्य है तो यह भी समझा जा सकता है कि इसके पीछे की रणनीति क्या हो सकती है।
अंतिम चरण में भी हिंसा को नहीं रोका जा सका
इस सब के बारे में विस्तार में जाने से पहले यह देख लेने की जरूरत है कि आखिर अंतिम चरण के मतदान के दौरान पश्चिम बंगाल में क्या हुआ। वैसे तो आम तौर पर यह माना जा रहा था कि शायद इस चरण में चुनाव आयोग की ओर से ऐसे पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे कि हिंसा को रोका जा सके और मतदान शांतिपूर्वक संपन्न कराया जा सके। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और कई जगहों से हिंसा की खबरें सामने आईं। कोलकाता में रविंद्रनाथ टैगोर के पैतृक आवास के पास एक क्रूड बम विस्फोट किया गया। इस कारण इलाके के मतदान केंद्रों पर कुछ समय के लिए मतदान रोकना पड़ा जिसे बाद में फिर शुरू कर दिया गया। एक अन्य वारदात में डायमंड हार्बर से भाजपा प्रत्याशी नीलांजन राय की कार पर डोंगरिया इलाके में हमला किया गया। कुछ बूथों पर फर्जी मतदान और कई इलाकों में मतदाताओं को मतदान से रोकने की शिकायतें भी की गईं। इससे साफ पता चलता है कि अंतिम चरण में भी हिंसा को रोका नहीं जा सका। भाजपा की ओर से हालांकि इस हिंसा के लिए तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराया गया। यह अलग बात है कि टीएमसी की ओर से इस सबके लिए भाजपा पर आरोप लगाया जा रहा है।
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'सभी चरणों में हिंसा के लिए ममता बनर्जी जिम्मेदार'
इस बीच भाजपा नेता निर्मला सीतारमण ने पश्चिम बंगाल में अंतिम चरण के मतदान के दौरान हुई हिंसा को लेकर बहुत ही गंभीर आरोप लगाए हैं। उनकी ओर से कहा गया है कि राज्य के सभी चरणों में हिंसा के लिए ममता बनर्जी जिम्मेदार हैं। निर्मला ने साफ तौर पर कहा है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी लगातार खुलेआम बदला लेने की बात करती हैं। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता लोगों की पिटाई कर रहे हैं जिससे भय का माहौल बन गया है। उन्होंने यह आशंका भी जताई है कि मतदान के बाद वे मतदाताओं को निशाना बना सकते हैं। इस सबके आधार पर ही सीतारमण ने चुनाव आयोग से मांग की है कि 27 मई तक पश्चिम बंगाल में केंद्रीय सुरक्षाबलों की अतिरिक्त तैनाती की जाए। ध्यान देने की बात है कि भाजपा लगातार टीएमसी और ममता बनर्जी पर आरोप लगाती रही है। इसके अलावा चुनाव आयोग से भी लगातार शिकायतें करती रही है। हालांकि टीएमसी और ममता बनर्जी की ओर से उल्टे भाजपा पर आरोप लगाए जाते रहे हैं कि राज्य में उनकी ओर से अराजकता की स्थिति उत्पन्न करने की सुनियोजित कोशिशें की जा रही हैं। कारण चाहे जो भी हों और जिम्मेदार कोई भी हो लेकिन पूरे देश में यह संदेश गया है कि पश्चिम बंगाल में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। चुनावों के दौरान इसे देखने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर थी जिसमें वह असफल ही साबित हुआ है।
भाजपा लगातार टीएमसी और ममता बनर्जी पर लगाती रही है आरोप
यह सब तब हो रहा है जब चुनावों से पहले ही इसकी आशंका जताई जा रही थी। पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा की आशंका हर किसी को थी क्योंकि इससे पहले के चुनावों में भी यह होती रही है। भाजपा की ओर से भी वहां लगातार आक्रामक रवैया अख्तियार किया गया था। तृणमूल कांग्रेस इसके लिए पहले से ही ख्यात रही है। ऐसे में चुनाव आयोग को इस राज्य के लिए अलग रणनीति बनानी चाहिए थी जिसके कोई लक्षण चुनावों के दौरान नहीं दिखे। चुनाव आयोग की ओर से इतना लंबा चुनाव कार्यक्रम बनाने के पीछे भी यही बताया गया था ताकि सब कुछ शांतिपूर्वक और निष्पक्ष तरीके से संपन्न कराया जा सके। लेकिन दोनों ही लक्ष्य अधूरे ही साबित हुए लगते हैं क्योंकि राज्य में लगातार हिंसा की वारदातें होती रहीं और भेदभाव आदि की शिकायतें भी की जाती रहीं। इतना ही नहीं, जब अब से कुछ दिन पहले एक रोड शो के दौरान व्यापक हिंसा की वारदातें हुईं और ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा को तोड़ा गया, तब जरूर चुनाव आयोग हरकत में नजर आया। लेकिन उसका परिणाम कुछ नहीं दिखा।
हिंसा के पीछे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता हो सकता है बड़ा कारण
जिस तरह सभी चरणों में और अंतिम चरण के दौरान भी पश्चिम बंगाल में हिंसा की वारदातें हुई हैं, उससे इस आशंका को बल मिलना स्वाभाविक है कि चुनावों के बाद भी इसका रंग-रूप दिख सकता है। इसके पीछे आपसी राजनितिक प्रतिद्वंद्विता को बड़ा कारण माना जा सकता है जो अक्सर देश के विभिन्न हिस्सों में सामने आता रहा है। लेकिन क्या इस मामले में भाजपा नेता के आरोपों को ही सही माना जा सकता है। पश्चिम बंगाल में जो कुछ भी हो रहा है वह निश्चित रूप से गलत हो रहा है। आने वाले दिनों में हालात और ज्यादा खराब होने की आशंकाओं को भी खारिज नहीं किया जा सकता। लेकिन यह भी जरूर समझने की कोशिश की जानी चाहिए कि क्या इसके लिए किसी एक को जिम्मेदार ठहराना उचित होगा। क्या ज्यादा अच्छा यह नहीं होगा कि सब कुछ सत्ता की खातिर सोचने-करने के बजाय कुछ आम जनता और राज्य व देश के हित में भी सोच कर किया जा सके। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि पश्चिम बंगाल में सब कुछ सत्ता हासिल करने अथवा उसे बनाए रखने के लिए किया जा रहा है। इसमें न वहां के लोगों के लिए कोई चिंता नजर आती है और न ही संस्कृति-सभ्यता की और हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। ज्यादा उचित यह होगा कि हर पक्ष अपने बारे में भी नए सिरे से कुछ सोचे और फिर आम जनता के हितों को लेकर काम करे। चुनावों में हार-जीत होती रहती है और सरकारें भी आती-जाती रहती हैं, लेकिन अगर शांति और सौहार्द खत्म हो गया, तो अन्य किसी चीज का क्या मतलब रह जाएगा। फिलहाल राजनीतिज्ञों से केवल उम्मीद ही की जा सकती है क्योंकि करना उन्हें ही है।