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लोकसभा चुनाव 2019 : कांग्रेस के टिकट से दूर भाग रहे हैं पार्टी के दो दिग्गज नेता

By डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी
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नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में 15 साल भारतीय जनता पार्टी की सरकार रहने के बाद अनेक संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है। नेताओं की आपसी खींचतान से कांग्रेस और भी कमजोर हो चुकी है। विधानसभा चुनाव में सरकार बनने के बाद कांग्रेस को नया जीवन मिला है, जो प्रभावशाली नेता अपने क्षेत्र में सक्रिय थे। वे विधानसभा चुनाव में जोर आजमाइश कर चुके हैं और विधायक भी बन चुके हैं। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के नजदीकी विधायक मंत्री बन गए हैं और महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो संभाल रहे हैं। अब उनकी दिलचस्पी लोकसभा चुनाव में नहीं है। जब कांग्रेस हाईकमान ने यह घोषणा की कि प्रदेश के विधायकों को लोकसभा चुनावों में नहीं उतारा जाएगा, तब कई मंत्रियों ने राहत महसूस की है कि उनका मंत्री पद सुरक्षित है। पार्टी आलाकमान यह सोचता है कि अगर ये विधायक लोकसभा चुनाव में खड़े हुए, तो पार्टी की अंदरूनी खींचतान बढ़ सकती है और मुश्किलों के बाद बनी कांग्रेस की सरकार के सामने खतरा पैदा हो सकता है।

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चुनाव लड़ने के मूड में नहीं अरुण यादव

चुनाव लड़ने के मूड में नहीं अरुण यादव

मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और केन्द्र में राज्य मंत्री रह चुके अरुण यादव लोकसभा चुनाव लड़ने के मूड में नहीं है, लेकिन कांग्रेस उन्हें टिकट देना चाहती है। अरुण यादव को लेकर दो सीटों पर चर्चा है एक तो उनकी पुरानी सीट खंडवा-बुरहानपुर और दूसरी मंदसौर। मंदसौर में स्थानीय नेता उनका विरोध कर रहे है और खंडवा-बुरहानपुर में भी कांग्रेस के कई स्थानीय नेता उनसे अपना पूरा हिसाब चुकता करने को तैयार बैठे है। खंडवा बुरहानपुर संसदीय क्षेत्र में खरगोन जिले के दो विधानसभा क्षेत्र भी है। बुरहानपुर के विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा की अरुण यादव से पुरानी प्रतिस्पर्धा है। विधायक शेरा अब चुनाव जीतकर महत्वपूर्ण स्थिति में है और अगर अरुण यादव को टिकट मिलता है, तो वे उनके सामने परेशानियां खड़ी कर सकते है। सुरेंद्र सिंह शेरा अपनी पत्नी को लोकसभा टिकट दिलाने के लिए भी प्रयत्नरत है।

सुरेंद्र सिंह शेरा अपनी पत्नी को टिकट दिलाने के लिए प्रयत्नरत

सुरेंद्र सिंह शेरा अपनी पत्नी को टिकट दिलाने के लिए प्रयत्नरत

सुरेंद्र सिंह शेरा के भाई शिवकुमार सिंह उस क्षेत्र के दिग्गज कांग्रेसी नेता रहे है और पूरे क्षेत्र में उनकी अपनी खास पकड़ है। निर्दलीय रहते हुए उनका चुनाव जीतना साबित करता है कि वे कितनी प्रभावशाली है। भाजपा की दिग्गज नेता अर्चना चिटनिस को हराना कोई मामूली बात नहीं मानी जाती, क्योंकि अर्चना चिटनिस के पिता ब्रजमोहन मिश्र भी इस क्षेत्र के दिग्गज नेता थे और मध्यप्रदेश विधानसभा के स्पीकर रह चुके थे। कांग्रेस को समर्थन देते वक्त सुरेंद्र सिंह शेरा ने मंत्री बनने की शर्त रखी थी, लेकिन कमलनाथ ने उन्हें मंत्री नहीं बनाया। बदले में शेरा ने यह वादा लिया कि लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी को टिकट दिया जाएगा। अब अगर शेरा की पत्नी को टिकट नहीं मिलता, तो वे उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा में उतार सकते हैं। इस तरह खंडवा में यह दो दिग्गज नेताओं की आपसी प्रतिस्पर्धा है, जिसके कारण कांग्रेस की सांस अटकी हुई है।

राहुल की करीबी मीनाक्षी भी अनमनी

राहुल की करीबी मीनाक्षी भी अनमनी

राहुल गांधी की करीबी मानी जाने वालीं मीनाक्षी नटराजन की भी स्थिति डांवाडोल है। अपनी हार की संभावनाओं को देखते हुए मीनाक्षी मैदान में उतरना नहीं चाहतीं, लेकिन कांग्रेस के सामने और कोई विकल्प भी नहीं है। राहुल गांधी से नजदीकी होने के कारण मीनाक्षी खुलकर यह भी नहीं कह पा रही हैं कि वे चुनाव लड़ना नहीं चाहती। कांग्रेस आलाकमान और कमलनाथ दोनों ही राहुल गांधी को खुश करने के लिए मीनाक्षी को चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। मीनाक्षी जब भी विरोधी गुटों की बात करती हैं, तब मुख्यमंत्री कमलनाथ आश्वासन देने लगते है कि वे असंतुष्ट कांग्रेसजनों को समझा लेंगे। भारतीय जनता पार्टी यहां से पिछली बार जीती थी, लेकिन इस बार भाजपा यहां से सुधीर गुप्ता के बजाय रतलाम के विधायक चैतन्य काश्यप को टिकट दे सकती है, जो भाजपा के शीर्ष नेताओं के करीबी है और संकट के दिनों में वे भाजपा के पालनहार बने हुए थे।

प्रदेश भाजपा के महामंत्री बंशीलाल गुर्जर भी इस संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तमन्ना रखते है। भारतीय जनता पार्टी उनके नाम पर भी गंभीरता से विचार कर रही है। रतलाम-मंदसौर संसदीय क्षेत्र की 8 में से 7 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव जीती थी। एक मात्र सीट पर कांग्रेस का उम्मीदवार केवल 350 वोटों से जीत सका था। भाजपा की इस गढ़ में कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री सुभाष सोजतिया और पूर्व मंत्री नरेन्द्र नाहटा भी हार चुके है। मीनाक्षी नटराजन 2009 में इस संसदीय क्षेत्र से भाजपा के दिग्गज नेता लक्ष्मीनारायण पाण्डे को हराकर लोकसभा पहुंची थीं। उनके खाते में यही एकमात्र उपलब्धि मानी जाती है। कार्यकर्ता मानते है कि अगर उन्हें टिकट मिला, तो वह राहुल गांधी की पसंद हो सकती है, स्थानीय कांग्रेस की नहीं।

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English summary
Lok Sabha Elections 2019: Two senior party leaders are distnaces from Congress ticket
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