जानिए, बंगाल में कांग्रेस और दीदी की नूरा कुश्ती के पीछे की असली वजह
नई दिल्ली- पश्चिम बंगाल की चुनावी सियासत दिलचस्प मोड़ ले चुका है। जिस आरएसएस (RSS) को तीन दशकों से ज्यादा के शासन में वामपंथियों ने कभी विस्तार का मौका नहीं दिया, वही आरएसएस (RSS) और बीजेपी आज वहां की राजनीति के केंद्र में आ चुकी है। हालांकि,अभी भी बीजेपी और संघ के लिए वहां अपनी ताकत का अहसास कराना बाकी है, लेकिन उसको लेकर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) एवं कांग्रेस में सिर फुटौवल बहुत ज्यादा बढ़ चुका है। कांग्रेस के नेता ममता बनर्जी पर आरएसएस से साठगांठ का आरोप लगा रहे हैं, तो दीदी कांग्रेस का लिंक संघ के साथ जोड़ रही हैं। जबकि, मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों की परख रखने वाला कोई भी व्यक्ति समझ सकता है कि इन दोंनों के आरोपों में जरा भी दम की गुंजाइश नहीं लगती। तो आखिर दोनों पार्टियों के बीच ये नूरा कुश्ती हो क्यों रही है? दरअसल, इस सबके पीछे वह वोट बैंक पॉलिटिक्स है, जिसे अपने पक्ष में गोलबंद रखना दोनों के लिए बड़ी चुनौती है। इसे विस्तार से समझने के लिए आइए समझने का प्रयास करते हैं कि बंगाल की जमीन पर क्या सियासी खेल चल रहा है?
क्या कह रही हैं दीदी?
टीएमसी नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री इन दिनों चुनावी रैलियों में बार-बार यह कह रही हैं कि कांग्रेस का आरएसएस (RSS) के साथ मिलीभगत है। मुख्य रूप से उनके निशाने पर जंगीपुर के मौजूदा सांसद और कांग्रेस उम्मीदवार अभिजीत मुखर्जी और बहरामपुर के सांसद अधीर रंजन चौधरी हैं। दीदी कांग्रेस को संघ के साथ जोड़ने के लिए पूर्व राष्ट्रपति प्रणब दा के बेटे अभिजीत मुखर्जी को इसलिए निशाना बना रही हैं, क्यों प्रणब मुखर्जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक (RSS) के हेडक्वार्टर जाकर एक कार्यक्रम में शामिल हो आए हैं। इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक मंगलवार की एक रैली में ममता ने कहा था कि जंगीपुर में खाकी शॉर्ट्स पहना आदमी आरएसएस का एजेंट है, जो कांग्रेस कैंडिडेट मुखर्जी की मदद कर रहा है। जबकि, बहरामपुर में भी बीजेपी कांग्रेस के सीटिंग एमपी की मदद कर रही है।
बीजेपी ने क्या किया है?
दरअसल, दीदी के गुस्से की वजह ये है कि वो किसी भी सूरत में मुस्लिम वोट बंटने नहीं देना चाहतीं। खासकर, मुर्शिदाबाद, जंगीपुर और बहरामपुर में जहां 70% से ज्यादा मुस्लिम वोट है। इन तीन में से दो सीटों पर बीजेपी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इनमें से एक सीपीएम की बागी माफुजा खातून हैं, जो बीजेपी की इकलौती महिला प्रत्याशी भी हैं। पार्टी ने उन्हें अभिजीत मुखर्जी के मुकाबले जंगीपुर से उतारा है। दीदी के जवाब में खातून कहती हैं कि, "मुख्यमंत्री जो कहना चाहती हैं कहें, लेकिन मैं यहां किसी को भी वॉक ओवर देने नहीं आई हूं। मुर्शिदाबाद पर भाजपा ने एक और मुस्लिम प्रत्याशी पर भाग्य आजमाया है। हुमायूं कबीर पार्टी के दूसरे मुस्लिम प्रत्याशी है, जो टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं।" पार्टी को उम्मीद है कि ताकतवर मुस्लिम उम्मीदवार और गैर-मुस्लिम मतदाताओं के ध्रुवीकरण के दम पर वह विरोधियों को कड़ी टक्कर दे सकती है।
कांग्रेस क्या कह रही है?
ममता बनर्जी से उलट कांग्रेस आरएसएस को लेकर ही उनके खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठी है। बरहामपुर से पार्टी उम्मीदवार अधीर रंजन चौधरी की दलील है कि, "मुर्शिदाबाद में अल्पसंख्यक वोटर्स का दबदबा है और उन्हें आरएसएस के बारे में कोई आइडिया नहीं है। ममता बनर्जी के कारण ही आरएसएस ने अपनी शाखाओं की संख्या 400 से बढ़ाकर 2000 कर ली है।" उनके मुताबिक ममता की सोची-समझी मदद के चलते ही बीजेपी-आरएसएस पूरे राज्य में दिखाई दे रहे हैं। उनके अनुसार इस जिले में संघ को कोई नहीं जानता था। वे आरोप लगाते हैं कि अब तो टीएमसी और ममता बनर्जी आरएसएस के एजेंडे पर ही चल पड़ी हैं। अगर बीजेपी राम नवमी यात्रा निकालती है, तो टीएमसी उससे भी ज्यादा रैली निकालकर उसे मात देना चाहती है। वे कहते हैं कि राम कभी बंगाल की राजनीति पर नहीं छाए थे। चौधरी ही नहीं, पश्चिम बंगाल के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सोमेन मित्रा भी दीदी को संघ और बीजेपी की बड़ी और सबसे भरोसेमंद सहयोगी करार दे चुके हैं। वो तो कह चुके हैं कि ममता, बीजेपी और संघ की बंगाल में ही नहीं पूरे भारत में विस्तार करने में सहायता पहुंचा रही हैं।
राहुल पर कभी ममता, कभी सख्ती
हालांकि, मौजूदा चुनावी तल्खी से कुछ समय पहले ही दीदी की भाषा कांग्रेस को लेकर इतनी तल्ख नहीं थी। जब राहुल गांधी ने उनके राज्य में विकास का कोई भी काम नहीं होने का आरोप लगाया था, तब भी दीदी ने अपनी आदत के खिलाफ जाकर उसे हल्के में उड़ा दिया था। तब ममता बनर्जी ने राहुल के बारे में सिर्फ इतना कहा था कि ‘वह अभी बच्चे हैं'। लेकिन, जब चुनाव शुरू हुए तो दीदी को दबंग दिखने की मजबूर हो गई। अभी हाल ही में पश्चिम बंगाल की सरकार ने सिलिगुड़ी में नियमों का हवाला देकर राहुल के हेलिकॉप्टर उतरने की इजाजत नहीं दी, जिसके चलते उनकी प्रस्तावित चुनावी सभाएं तक रद्द करनी पड़ गईं।
आरोप तो बहाना है, 'वोट बैंक' पर निशाना है
दरअसल, पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 27 फीसदी से ज्यादा है। वहां के 19 में से तीन जिलों मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर में मुसलमान बहुसंख्या में हैं। कई जिलों में वे औसत से ज्यादा हैं। तृणमूल और कांग्रेस को डर है अगर मुस्लिम वोटों का जरा भी बंटवारा हुआ तो इसबार उनका सियासी खेल बिगड़ सकता है। इसलिए, वे आरएसएस का डर दिखाकर मुसलमानों को अपने पक्ष में गोलबंद करना चाहते हैं। ये पार्टियां मुर्शिदाबाद, जंगीपुर, रायगंज, मालदा उत्तर और मालदा दक्षिण को लेकर ज्यादा आशंकित हैं। इसमें मुर्शिदाबाद और जंगीपुर में बीजेपी का उम्मीदवार धाकड़ भी है और मुस्लिम भी। जबकि, बाकी सीटों पर भी उसने बहुत सोची-समझी रणनीति के आधार पर प्रत्याशियों का चुनाव किया है। ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक गैर-मुस्लिम वोटर्स पर भाजपा ने अपनी पकड़ बहुत मजबूत कर ली है। ऐसे में अगर मुस्लिम मतदाताओं के वोट बंटे, तो टीएमसी एवं कांग्रेस दोनों को ही नुकसान हो सकता है।
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