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टिकट में नहीं, सुमित्रा महाजन ने चिट्ठी लिखने में देर की?

By प्रकाश हिंदुस्तानी
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नई दिल्ली। करीब 2 महीने तक अपने लोकसभा क्षेत्र में सक्रिय रहने और कार्यकर्ताओं के बीच चुनाव प्रचार करने के बाद काफी पशोपेश के बाद सुमित्रा महाजन ने लिखा कि अब मुझे चुनाव नहीं लड़ना। पत्रकार उनसे बार-बार पूछते थे कि ताई (सुमित्रा महाजन को इंदौर में ताई ही पुकारा जाता है), आपकी चुनाव की तैयारियां कैसी चल रही है? और फिर जब उनसे यह पूछा जाने लगा कि अभी तक इंदौर के प्रत्याशी का नाम भाजपा ने घोषित क्यों नहीं किया है, तो सुमित्रा महाजन मुस्कुरा कर टाल जाती और कहती कि यहां से नरेन्द्र मोदी चुनाव लड़ेंगे या फिर उनके द्वारा तय उम्मीदवार, लेकिन पत्रकारों के सवालों और पार्टी के असमंजस से हैरान होकर सुमित्रा महाजन ने मीडिया में प्रकाशनार्थ चिट्ठी भेज दी।

आखिरकार सामने आईं सुमित्रा महाजन, लिखी चिट्ठी

आखिरकार सामने आईं सुमित्रा महाजन, लिखी चिट्ठी

चिट्ठी किसी को भी संबोधित नहीं है, बस ‘सादर प्रकाशनार्थ' लिखा है और आगे मजमून है - भारतीय जनता पार्टी ने 5 अप्रैल तक इंदौर में अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। यह अनिर्णय की स्थिति क्यों है? संभव है कि पार्टी को निर्णय लेने में कुछ संकोच हो रहा है। हालांकि मैंने पार्टी के वरिष्ठों से इस संदर्भ में बहुत पहले ही चर्चा की थी और निर्णय उन्हीं पर छोड़ दिया था। लगता है उनके मन में अब भी कुछ असमंजस है, इसीलिए मैं यह घोषणा करती हूं कि अब मुझे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना है। अत: पार्टी अपना निर्णय मुक्त मन से करें, निसंकोच होकर करें। इसके बाद सुमित्रा महाजन ने इंदौर के लोगों का धन्यवाद ज्ञापित किया और आने वाले दिनों में पार्टी के कार्यकर्ताओं को मिल-जुलकर काम करने की सलाह दी।

पत्र पर 5 अप्रैल 2019 दिनांक लिखा है। इंदौर में 19 मई को लोकसभा चुनाव है, इंदौर से लगे हुए संसदीय क्षेत्रों में भी इसी तारीख को चुनाव है। भारतीय जनता पार्टी उज्जैन, खंडवा, खरगोन, मंदसौर, देवास से तो अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है, लेकिन इंदौर के नाम पर अभी भी अटकी हुई है। कुछ दिन पहले यह अफवाह उड़ी थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बार गुजरात की किसी संसदीय सीट के साथ ही इंदौर संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार हो सकते हैं।

अटकलबाजी करने वालों का अनुमान था कि भाजपाध्यक्ष इस बारे में विचार कर रहे हैं कि अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इंदौर संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवारी जताते हैं, तो उसका प्रभाव मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात आदि राज्यों की सीटों पर भी पड़ेगा। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार हुई और कांग्रेस की सरकार बनी। अगर नरेन्द्र मोदी यहां से चुनाव लड़ते हैं, तो उसका असर पूरे क्षेत्र पर पड़ेगा।

नरेन्द्र मोदी के नाम पर चर्चा का एक और उद्देश्य शायद यह भी था कि अगर यहां से नरेन्द्र मोदी चुनाव में खड़े होते हैं, तो उनकी जीत ऐतिहासिक होगी। क्योंकि इंदौर संसदीय क्षेत्र से आठ बार लगातार भारतीय जनता पार्टी विजयी होती आई है। बाद में कुछ लोगों ने कहा कि यह सब अटकलबाजियां सुमित्रा महाजन के इशारे पर चल रही हैं, ताकि वे अपने नाम का टिकट ना मिलने पर कुछ बहाना बना सकें।

जानें इंदौर लोकसभा सीट का इतिहास

इसलिए छलका सुमित्रा महाजन का दर्द

इसलिए छलका सुमित्रा महाजन का दर्द

सुमित्रा महाजन का दर्द यही है कि जब उन्हें टिकट नहीं देना था, तो पहले बताया क्यों नहीं? नाहक ही वे अपने चुनाव क्षेत्र में इतनी सक्रिय हुईं। अगर उन्हें इशारा मिलता, तो वे खुद पहले कह देती कि मैं चुनाव लड़ने की इच्छुक नहीं हूं। भारतीय जनता पार्टी का टिकट वितरण का फॉर्मूला उन पर भी तो लागू होता है। भाजपा ने 75 साल से बड़े लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, करिया मुंडा, बीसी खंडूरी आदि का भी तो टिकट काटा है। अब ताई भी उन्हीं बुजुर्गों में शामिल हो गई है, जिन्हें हाशिये पर पहुंचा दिया गया है।

सुमित्रा महाजन को टिकट न मिलने से भारतीय जनता पार्टी का एक गुट खुशियां मना रहा है। उन्हें इस बात की तो खुशी है ही कि सुमित्रा महाजन उर्फ ताई का पत्ता कटा, इस बात की भी खुशी है कि उनके इशारे पर किसी और को टिकट मिलने का ऐलान नहीं किया गया। विरोधी को जब भी किसी के नाम का प्रस्ताव लगता, तो सुमित्रा महाजन अपने वीटो पावर का उपयोग करके उसका पत्ता कटवा देती। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के नाम की चर्चा हुई, तब उनकी तरफ से संदेश आया कि वे खुद मंत्री बने थे। फिर उन्होंने अपने बेटे को टिकट दिलाया। अब पार्टी में सक्रिय हैं और लोकसभा चुनाव भी लड़ना चाहते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए।

जब इंदौर की महापौर श्रीमती मालिनी गौड़ को टिकट देने की बात आई, जब उन्होंने कहा कि उनके पति मंत्री रहे थे, उनके निधन पर उन्हें सहानुभूति वोट के लिए टिकट दिया गया। वे विधायक बनीं। फिर महापौर चुनाव हुए, तो महापौर भी बनीं और अभी दो-दो पदों पर एक साथ हैं। उस पर उन्हें लोकसभा की सदस्यता भी चाहिए। क्या पार्टी में वे कार्यकर्ता भाड़ झोंक रहे हैं, जो 30-30 साल से जी-जान एक कर रहे हैं। सुमित्रा महाजन की शिकायत काफी हद तक जायज भी है, क्योंकि जब उन्होंने अपने बेटे को विधानसभा टिकट देने की वकालत की थी, तब विरोधी गुट के लोगों ने यही बात दोहराई थी।

सुमित्रा महाजन को टिकट का हो रहा था विरोध

सुमित्रा महाजन को टिकट का हो रहा था विरोध

इंदौर के विधायक रहे सत्यनारायण सत्तन सुमित्रा महाजन को टिकट देने के खिलाफ खुलकर मैदान में थे। उनसे मिलने के लिए कई दिग्गज नेता भी आए, लेकिन वे माने नहीं। उनका कहना था कि हर बार सुमित्रा महाजन को ही टिकट क्यों? नए चेहरों को मौका क्यों नहीं मिलना चाहिए? इस बार तो उन्होंने यहां तक कहा था कि सुमित्रा महाजन को फिर से टिकट दिया गया, तो मैं खुद उनके खिलाफ निर्दलीय खड़ा होऊंगा। अब यह नौबत नहीं आ पाएगी।

2009 के लोकसभा चुनाव में सुमित्रा महाजन बहुत संघर्षों के बाद मामूली 11 हजार 480 वोटों से जीती थी, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में वे शानदार 4 लाख 66 हजार 901 वोटों से विजयी हुई थीं। लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें आशा थी कि मंत्रीमंडल में स्थान दिया जाएगा, क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व में वे मंत्री रही थीं। जब नरेन्द्र मोदी ने मंत्रीमंडल के नामों के घोषणा नहीं की, तब सुमित्रा महाजन बहुत दुखी हुई और नाराज होकर अपने संसदीय क्षेत्र में लौट आई। इसी बीच चर्चा छिड़ी की उन्हें वरिष्ठता के आधार पर लोकसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी देने पर विचार चल रहा है, तब उन्होंने राहत की सांस ली। जब उन्हें स्पीकर बनने का मौका आया, तब यह उनके राजनैतिक जीवन का सर्वोच्च शिखर था। स्पीकर के रूप में उन्होंने अनेक निर्णय किए, जिनमें से कुछ निर्णय बेहद विवादास्पद भी रहे।

अब भाजपा में इस बात की चर्चा है कि इंदौर से किसे मौका मिलेगा। कांग्रेस भी अभी तक इंदौर से अपने प्रत्याशी का चयन नहीं कर पाई है। इस बार भाजपा के पक्ष में वैसी लहर नहीं है, जैसी 2014 में थी। इसलिए कांग्रेस भी इंदौर सीट को लेकर उत्साहित नजर आ रही है, लेकिन इंदौर में कांग्रेस के पास ऐसे चेहरे नहीं है, जो लोकसभा सीट के लिए जीत की ग्यारंटी हो। ले-देकर कांग्रेस पुराने पत्ते फेंट रही है। कुल मिलाकर इंदौर संसदीय क्षेत्र पर पूरे मध्यप्रदेश की निगाहें टिकी हुई है। कांग्रेस ने भोपाल से दिग्विजय सिंह और जबलपुर से विवेक तन्खा के नाम की घोषणा कर पहले ही भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। अब कांग्रेस इंदौर और ग्वालियर से भी किसी धमाकेदार उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर सकती है।

यहां क्लिक करें और पढ़ें लोकसभा चुनाव 2019 की विस्तृत कवरेज

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English summary
Sumitra Mahajan letter to party not to contest Lok Sabha polls
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