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लोकसभा चुनाव 2019: बंगाल की जुबान पर फिर चढ़े दीवार पर लिखे नारे

पंश्चिम बंगाल में इस बार भी दीवारों पर होने वाली पेंटिंग का जलवा बरक़रार है. राज्य में दीवार लेखन की परंपरा काफ़ी पुरानी रही है. इस बार के लोकसभा चुनाव भी इसका अपवाद नहीं हैं.

By प्रभाकर एम.
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दीवार लेखन, पश्चिम बंगाल, चुनावी नारे, चुनाव 2019, मतदान, 11 अप्रैल, पहले चरण का चुनाव
SANJAY DAS/BBC
दीवार लेखन, पश्चिम बंगाल, चुनावी नारे, चुनाव 2019, मतदान, 11 अप्रैल, पहले चरण का चुनाव

पश्चिम बंगाल में दीवारें जब नेताओं के कार्टूनों और चुभते नारों से रंगी नज़र आने लगें तो समझना चाहिए कि यहां चुनावों का मौसम आ गया है.

11 अप्रैल को राज्य की दो सीटों कूचबिहार और अलीपुरदुआर में मतदान हुए हैं. यहां पहले चरण में 81 फ़ीसदी वोट पड़े हैं.

पंश्चिम बंगाल में इस बार भी दीवारों पर होने वाली पेंटिंग का जलवा बरक़रार है. राज्य में दीवार लेखन की परंपरा काफ़ी पुरानी रही है. इस बार के लोकसभा चुनाव भी इसका अपवाद नहीं हैं.

इससे साफ़ है कि सोशल मीडिया के बढ़ते असर के बावजूद राज्य में दीवार लेखन अब भी वोटरों को लुभाने का बेहद प्रभावी हथियार है.

यह वर्ष 1952 से ही राज्य में होने वाले हर चुनाव का अभिन्न हिस्सा रहा है. दीवारों पर ऐसे-ऐसे चुभते नारे लिखे जाते हैं जो आम लोगों की जुबान पर चढ़ जाते हैं.

इस दौरान बनाए गए कई कार्टून भी काफ़ी चोट करते हैं. राजनीतिक दलों का कहना है कि दीवार लेखन से जहां पर्यावरण का संदेश जाता है वहीं इस पर लिखे नारों और कार्टूनों का आम लोगों में बहुत गहरा असर होता है.

कई नारे और कार्टून तो 'देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर' को चरितार्थ करते नज़र आते हैं. नक्सल आंदोलन के दिनों में 'आमार बाड़ी, तोमार बाड़ी नक्सलबाड़ी-नक्सलबाड़ी' यानी 'हमारा घर, तुम्हारा घर-नक्सलबाड़ी' हिट रहा था.

आम लोगों पर इनका काफ़ी असर होता है. हर राजनीतिक दल में कुछ लोग चुनावों के एलान के बहुत पहले से ही नारे लिखने लगते हैं.

चुनावी नारे, दीवार लेखन, चुनाव 2019
SANJAY DAS/BBC
चुनावी नारे, दीवार लेखन, चुनाव 2019

2006 विधानसभा चुनाव में दीवार लेखन पर लगी थी पाबंदी

इसी तरह कार्टूनों की कल्पना करते हुए उनका स्केच बना लिया जाता है. दीवार लेखन की कला यहां बहुत पुरानी है. नब्बे के दशक के शुरुआती दौर तक हज़ारों लोग इससे जुड़े थे.

चुनाव हो या कोई राजनीतिक रैली, तमाम दल इन दीवारों का ही सहारा लेते थे. चुनावों के दौरान तो तमाम दीवारें सतरंगी हो जाती थीं.

वर्ष 2006 के विधानसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने दीवार लेखन पर पाबंदी लगा दी थी. आयोग ने तब वेस्ट बंगाल प्रिवेंशन ऑफ़ प्रापर्टी डिफेसमेंट एक्ट, 1976 के तहत यह पाबंदी लगाई थी.

बाद में इस क़ानून को कुछ शिथिल बनाया गया.

सत्तर से नब्बे के दशक तक महानगर कोलकाता की तमाम दीवारें ताज़ातरीन मुद्दों पर राजनीतिक दलों की टिप्पणियों से भरी होती थी.

तब कांग्रेस की ओर से दीवारों पर लिखे गए उस नारे को भला कौन भूल सकता है कि 'ज्योति बसुर दुई कन्या, खरा आर वन्या' यानी 'ज्योति बसु की दो बेटियां हैं, सूखा और बाढ़.'

बसु सरकार तब लगातार केंद्र के ख़िलाफ़ राज्य की उपेक्षा का आरोप लगाती रहती थी. कांग्रेस ने इसके जवाब में लिखा था- 'राज्येर हाथे आरो मोमबाती आर केरोसीन चाई' यानी 'राज्य को और अधिक मोमबत्तियां और मिट्टी का तेल चाहिए.'

उन दिनों राज्य बिजली कटौती के भयावह दौर से गुजर रहा था. राजधानी कोलकाता में रोजाना आठ-नौ घंटे की कटौती आम थी.

चुनावी नारे, दीवार लेखन, चुनाव 2019
SANJAY DAS/BBC
चुनावी नारे, दीवार लेखन, चुनाव 2019

वियतनाम युद्ध के दौर में मशहूर हुआ था दीवार पर लिखा वो नारा

वाम मोर्चा उस दौर में जहां दीवार लेखन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी नीतियों को निशाना बनाता था, वहीं वह अपनी नीतियों का भी प्रचार-प्रसार करता था. वियतनाम युद्ध के दौर में कोलकाता की दीवारों पर उसका एक नारा काफ़ी मशहूर हुआ था- 'आमरा नाम तोमार नाम, वियतनाम, वियतनाम.'

तब राजनीतिक दल जटिल से जटिल राजनीतिक मुद्दों को भी सरलता से दीवारों पर उकेर देते थे ताकि आम लोग उनको आसानी से समझ सकें.

तृणमूल कांग्रेस नेता सुब्रत मुखर्जी कहते हैं, ''आम लोगों तक पहुंचने के लिए दीवार लेखन का कोई सानी नहीं है. प्रचार के इस पारंपरिक तरीक़े का वोटरों के दिमाग़ पर गहरा असर होता है.''

सीपीएम नेता सुजन चक्रवर्ती भी यह बात मानते हैं. वे कहते हैं, ''सोशल मीडिया के इस दौर में भी दीवार लेखन, दोहों और कार्टूनों का तत्काल असर होता है.''

सीपीएम के प्रदेश सचिव नेता सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, ''वोटरों तक पहुंचने का यह पारंपरिक तरीका अब भी काफी लोकप्रिय है.''

बीजेपी नेता राहुल सिन्हा कहते हैं, ''बंगाल में नारों के जरिए प्रचार का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध रहा है. इसका आम लोगों पर असर तो होता ही है, पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचता.''

महानगर के एक कार्टूनिस्ट मनोरंजन मंडल कहते हैं, "पहले ऐसे कलाकार थे जो हमारे कार्टूनों को जस का तस दीवारों पर उतार देते थे. अब ऐसे लोग धीरे-धीरे कम हो रहे हैं."

चुनावी नारे, दीवार लेखन, चुनाव 2019
SANJAY DAS/BBC
चुनावी नारे, दीवार लेखन, चुनाव 2019

धीरे-धीरे सिमट रहा है दीवार लेखन का काम

दीवार लेखन का काम करने वाले ज़्यादातर कलाकार अब पोस्टर-बैनर और झंडे बनाने के धंधे में लग गए हैं.

कलाकारों के मोहल्ले चितपुर में बीरेन दास कहते हैं, "अब दीवार लेखन का काम पहले की तरह नहीं मिलता. फिर भी कोलकाता और आसपास के इलाकों में यह अब भी लोकप्रिय है. इंटरनेट और सोशल मीडिया ने इस पर कुछ हद तक असर डाला है."

राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ पंडित कहते हैं, "इंटरनेट और सोशल मीडिया के मौजूदा दौर में भी दीवार लेखन की प्रासंगिकता बनी हुई है."

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English summary
Lok Sabha Elections 2019: Slogans written on wall of Bengal again in flow of bangalis tongue
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