आखिर क्यों अखिलेश के खिलाफ आजमगढ़ में शिवपाल ने नहीं उतारा अपना प्रत्याशी?
लखनऊ। देशभर में चुनावी पारा चरम पर है, एक-दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लग रहे हैं, इस कड़ी में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके चाचा और पार्टी छोड़कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया (पीएसपीएल) दल का गठन करके चुनावी रण में उतरे शिवपाल यादव भी अछूते नहीं हैं, दोनों ही दलों की ओर से एक-दूसरे पर बयानबाजी तेज है लेकिन इन तल्खी के बीच एक बात चौंकाने वाली है और वो यह कि शिवपाल यादव ने आजमगढ़ सीट पर अखिलेश यादव के खिलाफ कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा किया है, बताते चलें कि आजमगढ़ सीट से बीजेपी ने भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को अपना उम्मीदवार बनाया है।
शिवपाल ने अखिलेश को दिया 'वॉकओवर'
मंगलवार को इस सीट पर नामांकन की प्रक्रिया खत्म हो गई, वैसे पार्टी सूत्रों के मुताबिक शिवपाल यादव ने यह कदम कुछ वरिष्ठ नेताओं की सलाह पर उठाया है, जिन्होंने कहा था कि आजमगढ़ में अखिलेश के खिलाफ प्रत्याशी खड़ा करने पर भाजपा का फायदा होगा इसलिए शिवपाल ने वॉक ओवर दे दिया है।
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यहां से मुलायम की जगह अखिलेश लड़ रहे हैं चुनाव
गौरतलब है कि समाजवादियों का गढ़ माने जाने वाली आजमगढ़ सीट से इस बार अखिलेश यादव मैदान में हैं, अखिलेश यादव के नामांकन के समय इलाके में भारी भीड़ पहुंची थी। दूसरे जिलों से भी अखिलेश के समर्थक वहां पहुंचे थे। अखिलेश ने कहा कि समाजवादियों को आजमगढ़ की जनता का आशीर्वाद है।
मुलायम सिंह यादव हैं यहां से सांसद
गौरतलब है कि जिस आजमगढ़ की सीट से अखिलेश ने नामांकन भरा है वहां से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव सांसद हैं। साल 2014 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने यहां भाजपा के बाहुबली कैंडिडेट रमाकांत यादव, बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली और काग्रेंस के उम्मीदवार अरविंद कुमार जायसवाल को भारी मतों से हराया था।
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मुलायम सिंह यादव ने
1952 से 1971 तक हुए आमचुनावों में कांग्रेस ने यहां लगातार पांच बार जीत दर्ज की है, 1977 के चुनावों में कांग्रेस का विजय रथ जनता पार्टी के राम नरेश यादव ने रोका था लेकिन अगले ही साल यहां उपचुनाव हुए और कांग्रेस की मोहसिना किदवई ने निर्वाचित होकर यहां इतिहास रचा , वो आजमगढ़ की पहली महिला सांसद बनी। 1980 में जनता पार्टी(सेक्युलर) ने जीत दर्ज की। 1984 में संतोष कुमार ने जीत हासिल करके कांग्रेस का इन्तज़ार ख़त्म किया। 1989 में यहां से राम कृष्ण यादव बहुजन समाज पार्टी और 1991 में चंद्रजीत यादव जनता पार्टी की टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1996 से 2004 तक कभी सपा ने बसपा को हराकर तो कभी बसपा ने सपा को हराकर आजमगढ़ की सीट पर कब्ज़ा किया। 2008 में यहां उपचुनाव हुए जिसमें बसपा के अकबर अहमद निर्वाचित हुए। 2009 में समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद रमाकांत यादव भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर लड़े और आज़मगढ़ में भाजपा को पहली बार जीत दिलाई। साल 2014 में मैनपुरी की सीट के साथ-साथ मुलायम सिंह यादव ने आज़मगढ़ से चुनाव लड़ा और जीत का नया इतिहास भी लिखा।
मैनपुरी और आजमगढ़ जीतने में सफल रहे थे मुलायम
आजमगढ़ की 84 प्रतिशत जनसंख्या हिंदुओं की और 15 प्रतिशत आबादी मुस्लिमों की है। 2014 में मोदी की आंधी में सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव अपने आभामंडल से सपा के लिए दो सीटें मैनपुरी और आजमगढ़ जीतने में सफल रहे थे।
बाद में मुलायम ने मैनपुरी सीट छोड़ दी थी
हालांकि उन्होंने बाद में मैनपुरी की सीट छोड़ आजमगढ़ को अपनाने का फैसला लिया था क्योंकि इसके जरिए वो पार्टी का दायरा पूर्वांचल में बढ़ाना चाहते थे , वैसे भी यहां यादवों के लगभग 30 फीसदी मत हैं, मुस्लिम और यादव वोटों के जरिए ही मुलायम यहां विजयी हुए थे लेकिन क्या ये गणित इस बार के चुनावों में भी काम आएगा और सपा दोबारा यहां से जीत पाएगी या भाजपा की फिर से यहां वापसी होगी, यही यक्ष प्रश्न हर किसी के जेहन में चल रहा है, जिसका उत्तर हमें और आपको चुनावी नतीजे देंगे।
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