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सीपीएम के खिलाफ एक भी शब्द न कहकर राहुल ने दिया कैसा संदेश

By आर एस शुक्ल
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नई दिल्ली। विपक्ष के महागठबंधन की कोशिशें भले ही परवान न चढ़ पाई हों, लेकिन बसपा प्रमुख मायावती जैसे कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो इन बातों को बल मिलता दिख रहा है कि चुनाव बाद यह कोई रूप अख्तियार कर सकता है और उसके लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। जेडीयू से अलग होकर अपनी पार्टी बना लेने वाले वरिष्ठ नेता शरद यादव और टीएमसी प्रमुख व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार यह दावा कर रहे हैं कि चुनाव के बाद पूरा विपक्ष एकजुट हो जाएगा। इन्हीं कोशिशों के तहत विपक्ष की तकरीबन हर बड़ी पार्टी और नेता अपने भविष्य के साथियों को लेकर ऐसा कुछ भी बोलने से बच रहे हैं जिससे उनके बीच किसी तरह की दरार बढ़े तथा दिखने लगे।

राहुल लेफ्ट के खिलाफ नहीं बोलेंगे

राहुल लेफ्ट के खिलाफ नहीं बोलेंगे

इस मामले में केवल मायावती ही हैं जो अक्सर कांग्रेस पर हमलावर रहती हैं। इसके अलावा वामदलों में माकपा कुछ मुखर दिखती है जिसका पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं हो सका। माकपा के बड़े नेताओं की ओर से जरूर कांग्रेस को हराने की बातें की गई हैं, लेकिन उसमें भी मुख्य विरोध राहुल गांधी के केरल की वायनाड सीट से उम्मीदवारी को लेकर ही है। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह कहकर सबको एक तरह से चौंका दिया कि वह माकपा के खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोलेंगे।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इससे पहले अमेठी से चुनाव लड़ते और जीतते रहे हैं। इस चुनाव में भी वह वहां से लड़ेंगे। राहुल के दो सीटों से चुनाव लड़ने को दो पार्टियों भाजपा और माकपा ने अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया। जहां भाजपा यह बताना चाह रही थी कि अमेठी से इस बार राहुल गांधी को हार का डर सता रहा है, इसलिए सुरक्षित सीट तलाशी गई ताकि वह संसद पहुंच सकें। दूसरी तरह माकपा ने इसे इस रूप में देखा कि वह वामदलों के खिलाफ लड़ने आ गए हैं। इसके मद्देनजर ही माकपा के पूर्व महासचिव प्रकाश करात और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कह दिया कि वामदल राहुल गांधी को हराएंगे। इसमें भाजपा की आलोचना को समझा जा सकता है क्योंकि उसके लिए कांग्रेस हमेशा से मुख्य विरोधी रही है। यह भी कि लंबी लड़ाई के बाद कांग्रेस को हराकर भाजपा केंद्र की सत्ता में आई है और उसकी एक बार फिर कोशिश है कि कांग्रेस को करारी शिकस्त दी जा सके।

पढ़ें वायनाड लोकसभा क्षेत्र का प्रोफाइल, जहां से राहुल गांधी लड़ रहे हैं

कांग्रेस और लेफ्ट के रिश्ते बदलेंगे

कांग्रेस और लेफ्ट के रिश्ते बदलेंगे

भाजपा की ओर से राहुल गांधी का तीखा विरोध भी किसी से छिपा नहीं है। माकपा और अन्य वामदलों के लिए हमेशा ऐसा नहीं रहा है। पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल में हालांकि वामदल काफी पहले से कांग्रेस के खिलाफ लड़ते रहे हैं और सत्ता भी छीनी थी, लेकिन इनके बीच उस तरह का झगड़ा नहीं रहा है जैसे भाजपा और कांग्रेस के बीच रहा है। कांग्रेस और भाजपा मिलकर कभी सत्ता में नहीं रहे जबकि कांग्रेस और वामदल बहुत सारे मौकों पर साथ रहे हैं और सत्ता में भी प्रतक्ष अथवा अप्रत्यक्ष भागीदारी की है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में माकपा के भीतर कांग्रेस विरोध कुछ ज्यादा नजर आने लगा जिसके पीछे सबसे बड़ा कारण पूर्व पार्टी महासचिव प्रकाश करात माने जाते हैं। तब करात ही पार्टी महासचिव थे, जब मनमोहन सिंह सरकार से परमाणु समझौते के मुद्दे पर वामदलों ने समर्थन वापस ले लिया था। हालांकि वर्तमान महासचिव सीताराम येचुरी को राजनीतिक हलकों में व्यावहारिक नेता के रूप में माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि वह कांग्रेस के साथ अच्छे संबंधों के हिमायती लगते हैं। हालांकि वह माकपा और वामदलों के बीच इस तरह की सहमति नहीं बना पा रहे हैं। संभवतः इसी वजह से पश्चिम बंगाल में दोनों दलों के बीच गठबंधन नहीं हो पाया।

लेकिन लगता है कि राहुल गांधी भविष्य की किसी संभावना को खत्म नहीं करना चाहते हैं। शायद इसीलिए वायनाड से नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद पत्रकारों के सवालों के जवाब में बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि वह माकपा के खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोलेंगे। इसका साफ मतलब निकाला जा सकता है कि माकपा की ओर से उन्हें और उनकी पार्टी के बारे में चाहे जो कुछ भी कहा या किया जाए, उनकी ओर से उस तरह की बातें नहीं की जाएगी। इसके पीछे की स्पष्ट रणनीति आसानी से समझी जा सकती है। कांग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि चुनाव बाद अगर विपक्षी दलों की सरकार बनाने की स्थिति बनी तो वामदलों की भी जरूरत पड़ेगी। इसलिए अभी भले ही किसी कारणवश गठबंधन नहीं हो पाया हो, चुनाव बाद किसी तरह की अड़चन न आए। वैसे भी राहुल गांधी की वायनाड से उम्मीदवारी की घोषणा के समय ही कांग्रेस की ओर से इस बारे में स्पष्ट किया गया था कि दूसरी सीट का चुनाव क्यों किया गया है।

वायनाड से तीन राज्यों पर नजर

वायनाड से तीन राज्यों पर नजर

इस स्पष्टीकरण में भाजपा और माकपा के सवालों का जवाब दिए जाने की कोशिश की गई थी। इसमें कहा गया था कि केरल की वायनाड सीट दक्षिण के तीन राज्यों से तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के बीच में है, इसलिए वहां से चुनाव लड़कर राहुल गांधी दक्षिण भारत के तीन राज्यों का प्रतिनिधित्व कर पाएंगे। यह भी कहा गया था कि उत्तर भारत और दक्षिण भारत के खानपान और संस्कृति में काफी अंतर है। ऐसे में राहुल गांधी वहां से लड़कर इन दो इलाकों की एकता को और मजबूती प्रदान करने की कोशिश करेंगे। राहुल ने भी वायनाड से नामांकन दाखिल करने के बाद कहा कि उत्तर हो अथवा दक्षिण, पूरब हो या पश्चिम पूरा देश एक है। देश की संस्कृति पर हमले हो रहे हैं। यह भी कहा कि दक्षिण भारत में एक भावना है कि भाजपा और संघ संस्कृति और भाषाओं पर हमले कर रहे हैं। इसलिए उनकी लड़ाई भाजपा से है। इस तरह शायद उन्होंने यह साफ करने की कोशिश की कि उनकी लड़ाई माकपा से नहीं है।

वैसे भी वायनाड सीट एक तरह से कांग्रेस की मानी जाती है क्योंकि बीते दो चुनावों से इस सीट पर कांग्रेस को ही जीत मिलती रही है। ऐसे में एक तरह से यह समझा जा सकता है कि राहुल गांधी ने माकपा के खिलाफ एक भी शब्द न बोलने की बात कहकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की है कि वह किसी भी विपक्षी साथी के खिलाफ ऐसा कुछ भी नहीं कहेंगे जिससे भविष्य में संबंधों में किसी तरह की कड़ुवाहट रहे बल्कि उनकी पूरी कोशिश सबको साथ बनाए रखने की ही ज्यादा लग रही है। भविष्य में ही इसका जवाब छिपा होगा कि चुनाव बाद कैसी परिस्थितियां बनती हैं और इस तरह की रणनीति कितनी कामयाब होती है।

पढ़ें लोकसभा चुनाव की विस्तृत कवरेज

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English summary
lok sabha elections 2019 Rahul Gandhi in Wayanad statement over cpm
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